योजनाओं के नाम पर गरीबों से वसूली ; चरखापारा पंचायत में सचिव पर गंभीर आरोप, गरीब मजदूरों से बसूले 1900-1900 रुपए…

धरमजयगढ़। सरकार बार-बार यह दावा करती है कि उसकी योजनाएं गरीबों और भूमिहीन मजदूर-किसानों तक सीधे पहुंच रही हैं। लेकिन ग्राम पंचायत चरखापारा का मामला इन दावों की सच्चाई उजागर कर रहा है। यहां पंचायत सचिव विजय पैंकरा पर आरोप है कि उन्होंने योजनाओं का लाभ दिलाने के नाम पर गरीब मजदूर-किसानों से सीधे कैश वसूली की। ग्रामीणों का कहना है कि उनसे भूमिहीन योजना के तहत लाभ दिलाने के लिए 1000 रुपए और मकान टैक्स के नाम पर 900 रुपए वसूले गए, यानी कुल 1900 रुपए प्रति परिवार।
गरीबों से वसूली, रसीद गायब : ग्रामीणों ने बताया कि सचिव ने रकम लेने के बाद कोई रसीद तक नहीं दी। भूमिहीन मजदूर मुल्कीबाई ने खुलासा किया –
“सचिव ने मुझसे 1000 रुपए भूमिहीन योजना के नाम पर और 900 रुपए मकान टैक्स के नाम पर वसूल लिए। लेकिन इसका कोई सबूत या पर्ची नहीं दिया।”
बसोड़ जाति के परिवार निशाने पर : इस पंचायत के अधिकतर लोग बसोड़ जाति से आते हैं। ये लोग बांस से बने सामान – सुपा, बिजबोनी, डलिया आदि बनाकर किसी तरह परिवार का गुज़ारा करते हैं। शासन की मंशा इन्हें सहारा देने की है, लेकिन योजनाओं की आड़ में इन्हीं गरीबों की जेब काट ली गई। सवाल उठता है कि –
- क्या यही है “गरीब कल्याण योजना” की असलियत?
- क्या यही है गांव-गांव विकास का चेहरा?
सचिव के गोलमोल जवाब : जब इस मामले में पंचायत सचिव विजय पैंकरा से सवाल किया गया तो उन्होंने साफ-साफ जवाब देने के बजाय गोलमोल तरीके से कहा –
“ऐसा कुछ नहीं है, यह जांच का विषय है।”
यानी आरोपों को खारिज भी नहीं किया और साफ कबूल भी नहीं किया।
अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल : अब बड़ा सवाल है कि इस पूरे खेल में केवल सचिव ही जिम्मेदार हैं या फिर ऊपर बैठे अधिकारी भी आंखें मूंदे हुए हैं?
- क्या जनपद पंचायत और जिला पंचायत को ग्रामीणों की यह पुकार सुनाई नहीं दे रही?
- क्या यह पूरा मामला मिलीभगत का हिस्सा है?
- गरीबों से वसूले गए पैसे आखिर गए कहां?
विकास या शोषण? – यह मामला सिर्फ चरखापारा गांव का नहीं है, बल्कि यह उस सोच को उजागर करता है जिसमें विकास योजनाओं को गरीबों पर बोझ बनाने का हथियार बना दिया गया है।
जहां सरकार गरीबों को योजनाओं का लाभ देकर संबल देने की बात करती है, वहीं जमीनी स्तर पर योजनाएं सचिव और बाबुओं के लिए कमाई का साधन बन रही हैं।
अब कार्रवाई या लीपापोती? – चरखापारा के गरीब मजदूरों ने आवाज उठाकर यह साफ कर दिया है कि अब वे और वसूली बर्दाश्त नहीं करेंगे। लेकिन असली परीक्षा अब प्रशासन की है—
- क्या अधिकारी इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करेंगे?
- या फिर हर बार की तरह यह मामला भी “जांच जारी है” के बहाने ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?
चरखापारा की यह कहानी सिर्फ गांव की एक पंचायत की नहीं, बल्कि शासन और प्रशासन की खोखली नीतियों का आइना है। गरीबों की आहें अगर अनसुनी रह गईं तो यह केवल भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि शासन की नाकामी का खुला सबूत होगा।




