प्रतापपुर विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते के जाति प्रमाणपत्र पर बवाल, हाईकोर्ट आदेश के बाद भी कार्रवाई नहीं – आदिवासी समाज ने दी आंदोलन की चेतावनी…

सरगुजा। छत्तीसगढ़ की राजनीति में जाति प्रमाणपत्र का मुद्दा एक बार फिर सुलग उठा है। प्रातापपुर विधानसभा क्षेत्र की विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते पर फर्जी जाति प्रमाणपत्र हासिल करने का आरोप गहराता जा रहा है। बिलासपुर हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद प्रशासनिक मशीनरी की चुप्पी ने मामले को और गरमा दिया है। आदिवासी समाज ने चेतावनी दी है कि अगर सात दिनों के भीतर प्रमाणपत्र निरस्त नहीं किया गया तो अनिश्चितकालीन आंदोलन छेड़ा जाएगा।

आरोप है कि विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते का जाति प्रमाणपत्र बिना वैधानिक दस्तावेजों के जारी किया गया। न उनके पिता और न ही पति के पास अनुसूचित जनजाति वर्ग का कोई मूल प्रमाण था, फिर भी प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया। जांच के दौरान अम्बिकापुर एसडीओ और परियोजना कार्यालय दोनों ने स्वीकार किया कि संबंधित दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। समाज का कहना है कि यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि राजनीतिक संरक्षण में किया गया बड़ा फर्जीवाड़ा है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए आदिवासी समाज ने इस मुद्दे को हाईकोर्ट में उठाया था। कोर्ट ने 17 जून 2025 को आदेश जारी करते हुए जिला स्तरीय और उच्च स्तरीय जाति प्रमाणपत्र सत्यापन समितियों को जांच कर कार्रवाई के निर्देश दिए थे। लेकिन चार महीने बीतने के बावजूद अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ। इस देरी पर समाज ने सवाल उठाया है कि “क्या न्यायालय के आदेश भी अब सियासी प्रभाव के आगे कमजोर पड़ रहे हैं?”

जिला स्तरीय समिति ने विधायक को 28 अगस्त, 15 सितंबर और 29 सितंबर को नोटिस जारी कर दस्तावेजों सहित उपस्थित होने के लिए कहा था, लेकिन विधायक तीनों तारीखों पर अनुपस्थित रहीं। समिति की बैठकों से लगातार अनुपस्थित रहने को समाज ने “जांच प्रक्रिया से बचने की कोशिश” बताया है। समाज के नेताओं का कहना है कि प्रशासन का रवैया साफ संकेत दे रहा है कि सत्ता के दबाव में जांच को धीमा किया जा रहा है।
आदिवासी संगठनों ने कहा कि यह मामला केवल एक प्रमाणपत्र का नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता और संवैधानिक अधिकारों के हनन का प्रतीक बन गया है। यदि कोई व्यक्ति फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीट से चुनाव लड़ता है, तो यह सीधे तौर पर सच्चे आदिवासियों के अधिकारों पर हमला है। समाज ने इसे “राजनीतिक धोखाधड़ी” करार दिया है।
गुस्साए समाज ने प्रशासन को सात दिन का अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि तय समयसीमा में कार्रवाई नहीं हुई तो धरना, रैली और घेराव जैसे चरणबद्ध आंदोलन शुरू किए जाएंगे। समाज ने चेतावनी दी है कि यदि आंदोलन के दौरान कोई अप्रिय स्थिति बनती है तो उसकी पूर्ण जिम्मेदारी प्रशासन और शासन की होगी।
वहीं, विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते की ओर से अब तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। उनकी चुप्पी पर सवाल उठाते हुए स्थानीय संगठनों ने कहा है कि “यदि सब कुछ वैध है तो दस्तावेज़ और तथ्यों को सार्वजनिक करने में हिचक क्यों?”
इस पूरे विवाद ने सरगुजा अंचल से लेकर रायपुर तक राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। अब निगाहें जिला स्तरीय सत्यापन समिति की आगे की कार्रवाई पर टिकी हैं। अगर प्रमाणपत्र रद्द होता है तो यह मामला विधायक की विधानसभा सदस्यता तक पहुंच सकता है, वहीं प्रमाणपत्र वैध ठहराया गया तो विरोधी पक्ष दोबारा अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में है।
आदिवासी समाज का कहना है – “यह लड़ाई केवल एक व्यक्ति की नहीं, पूरे आदिवासी समाज के सम्मान और अस्तित्व की है। यदि प्रशासन ने न्याय नहीं किया, तो अब फैसला सड़क पर होगा।”




