बारिश के बीच ‘हाथियों का आतंक’ – खेतों में तबाही, किसानों की नींद उड़ी, वन विभाग की चेतावनी के बावजूद दहशत कायम…

जशपुर। जिले में लगातार जारी बारिश के बीच अब जंगलों से निकलकर हाथियों का कहर किसानों के सिर पर टूट पड़ा है। पकी हुई धान की फसल जहां पानी में गल रही है, वहीं रात के अंधेरे में हाथियों के झुंड खेतों में धावा बोल रहे हैं। यह स्थिति अब प्राकृतिक नहीं, बल्कि प्राणघातक आपदा बनती जा रही है। ग्रामीणों का कहना है – “अब खेत जाना मौत को न्योता देने जैसा हो गया है।”
जिले में पांच हाथी दलों का कहर – 31 हाथी गांवों के चारों ओर : वन विभाग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार जिले में इस समय 31 हाथियों के पांच दल सक्रिय हैं। इनमें से 20 हाथी ओडिशा की सीमा पर मंडरा रहे हैं, जो किसी भी समय तपकरा वन परिक्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं। वहीं, तपकरा क्षेत्र में पहले से ही 28 हाथी डटे हुए हैं, जो लगातार गांवों और खेतों में घुसपैठ कर रहे हैं।
🔹 तपकरा वन परिक्षेत्र का हाल:
- बनगांव बीट – 1 हाथी
- हाथीबेड़ – 13 हाथियों का बड़ा दल
- खारीबहार – 3 हाथी
- सागजोर – 11 हाथी
🔹 कुनकुरी वन परिक्षेत्र:
- झारखंड सीमा से लगे केंदापानी क्षेत्र में 3 हाथी लगातार विचरण कर रहे हैं।
धान की फसल रौंदी, मुआवजे की आस में किसान : हाथियों ने कई गांवों में किसानों की पूरी फसल चौपट कर दी है। खेतों में सिर्फ टूटी बालियां और कुचली मिट्टी बची है। कुंजरा, मयूरचुंदी, ठोंगाआम्बा और पाकरटोली गांव के किसानों ने बताया –
“हमारी मेहनत का महीनों का पसीना एक ही रात में हाथियों ने बहा दिया। खेत में जाना अब जान जोखिम में डालना है।”
वन विभाग भले ही मुआवजे की बात कर रहा हो, लेकिन किसान सवाल उठा रहे हैं – “मुआवजा तो बाद में मिलेगा, लेकिन अभी पेट कैसे भरेगा?”
हाथी मित्र दल अलर्ट पर, पर निगरानी नाकाफी : तपकरा की रेंजर आकांक्षा लकड़ा ने बताया कि दो ‘हाथी मित्र दल’ सक्रिय हैं, जो लगातार हाथियों की गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं। गांवों में मुनादी, लाउडस्पीकर और सोशल मीडिया के माध्यम से चेतावनी जारी की जा रही है।
लेकिन सच्चाई यह है कि हाथियों की चाल इतनी तेज़ है कि वन विभाग की टीमें उनके कदमों के पीछे रह जाती हैं।
कई बार हाथी रात के समय गांवों में दाखिल हो जाते हैं और सुबह तक फसलें, गोठान और कभी-कभी मकान तक रौंद डालते हैं। ग्रामीण बताते हैं –
“वनकर्मी सुबह आते हैं, जब तक हाथी लौट चुके होते हैं।”
वन विभाग भी मान रहा है – स्थिति नियंत्रण से बाहर :कुनकुरी रेंजर सुरेंद्र होता ने स्वीकार किया –
“कुनकुरी रेंज में तीन हाथी लगातार गांवों की ओर बढ़ रहे हैं। किसानों को मुआवजे के प्रकरण बनाकर भेजे जा रहे हैं, पर अभी तत्काल राहत देना कठिन है।”
विभागीय सूत्रों के अनुसार, ओडिशा सीमा पर मौजूद हाथियों का बड़ा दल कभी भी तपकरा और कुनकुरी क्षेत्र में प्रवेश कर सकता है, जिससे आने वाले दिनों में हाथी–मानव संघर्ष और तेज़ हो सकता है।
“रात की नींद हराम, दिन का चैन गायब” – गांवों में भय का माहौल : तपकरा, सागजोर और हाथीबेड़ के ग्रामीण रातों में ढोल-थाली बजाकर हाथियों को भगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कई बार हाथियों ने हमला भी किया है।
पिछले वर्ष इसी इलाके में हाथियों ने दो ग्रामीणों को कुचलकर मार डाला था। इसी कारण अब गांवों में डर और असुरक्षा का माहौल गहराता जा रहा है।
मौसम, भूख और प्रशासन – तीनों ने मिलकर बनाया संकट : लगातार बारिश के कारण जंगलों में भोजन की कमी हो गई है। यही वजह है कि हाथी अब भोजन की तलाश में गांवों का रुख कर रहे हैं। दूसरी ओर, प्रशासन की धीमी प्रतिक्रिया से ग्रामीण खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं।
आने वाले दिनों में खतरा और बढ़ेगा : वन विभाग की मानें तो अगर बारिश का सिलसिला जारी रहा, तो हाथी दल रायगढ़-जशपुर सीमा के और भीतर तक पहुंच सकते हैं।
“हाथियों का रास्ता कोई नहीं रोक सकता। जब भूख लगती है, तो वे जंगल और गांव की सीमा नहीं देखते।” — वन अधिकारी (नाम न छापने की शर्त पर)
अब यह सिर्फ वन्यजीव संरक्षण का नहीं, बल्कि मानव जीवन और जीविका का संघर्ष बन गया है।
जंगल और खेत के बीच की रेखा मिट चुकी है — और हाथियों के कदमों से कांपती ज़मीन पर किसान अब खड़ा भी नहीं हो पा रहा।




