“सच बोलने की सज़ा” – रायपुर में आधी रात पुलिस की दबंगई, पत्रकार के घर बिना वारंट घुसपैठ, महिलाओं से अभद्रता, मंदिर में जूते समेत चढ़े…

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक बार फिर “सच बोलने की सज़ा” देने की कोशिश सामने आई है।
‘बुलंद छत्तीसगढ़’ के संपादक मनोज पांडे के घर पर शुक्रवार और शनिवार की दरमियानी रात (10 अक्टूबर 2025) करीब 1 बजे पुलिस की बर्बर कार्रवाई शुरू हुई।
बिना किसी वारंट या आदेश के पहुँची पुलिस ने मुख्य गेट तोड़ दिया, जबरन घर में घुसी, महिलाओं से धक्का-मुक्की की, जूते समेत मंदिर में चढ़ गई और CCTV के DVR तक से छेड़छाड़ करने की कोसिस गई।
उस समय घर में केवल महिलाएँ थीं – संपादक की पत्नी और बेटी वंशिका पांडे।
वंशिका ने इस पूरी वारदात को मोबाइल कैमरे में कैद किया और वीडियो सोशल मीडिया पर साझा कर पत्रकार समुदाय को सूचना दी।
“गेट खोलो, नहीं तो तोड़ देंगे” – आधी रात पुलिस की दहशत : वंशिका पांडे ने बताया कि रात लगभग 1 बजे 5–6 पुलिस वाले उनके घर के बाहर आकर रुके।
पुलिसकर्मी लगातार डोरबेल बजाने, दरवाज़ा पीटने और धमकाने लगे।
जब परिवार ने दरवाज़े के अंदर से पूछा कि क्या बात है, तो पुलिसकर्मी बोले –
“हम तुम्हारे पापा को लेने आए हैं, गेट खोलो नहीं तो तोड़ देंगे।”
वंशिका ने जवाब दिया,
“पापा घर पर नहीं हैं, सुबह आएंगे।”
लेकिन पुलिसकर्मियों ने एक भी बात नहीं सुनी। उन्होंने मशीन से मुख्य गेट तोड़ा और ज़बरदस्ती घर में घुस आए।
महिलाओं से बदसलूकी, मंदिर में जूते, घर में तोड़फोड़ : वंशिका के अनुसार पुलिसकर्मी नशे में धुत थे और घर में घुसते ही हर कमरे में तोड़फोड़ शुरू कर दी।
उन्होंने अलमारियाँ खोलीं, सामान बिखेरा, CCTV के DVR से छेड़छाड़ की कोसिस की , और जब विरोध किया गया तो महिलाओं से धक्का-मुक्की की।
“माँ के हाथों की चूड़ियाँ टूट गईं। पुलिसकर्मी शराब के नशे में थे और जूते पहनकर हमारे मंदिर तक में चले गए,” — वंशिका ने कहा।
पूरे घटनाक्रम के दौरान न तो कोई तलाशी वारंट दिखाया गया, न ही कार्रवाई का कारण बताया गया।
किराएदार युवतियों के कमरों में भी घुसे पुलिसवाले : घर की ऊपरी मंज़िल पर किराए से रह रही दो युवतियों के कमरे में भी पुलिसकर्मी जबरन घुस गए।
वंशिका के मुताबिक,
“वे बिना पूछे ऊपर चढ़ गए, कमरों की तलाशी ली और धमकाते हुए बोले – ‘सुबह फिर आएंगे, तब और दिक्कत होगी।’”
करीब ढाई घंटे तक पुलिस घर में हंगामा मचाती रही।
परिवार पूरी तरह दहशत में था। वंशिका ने कहा,
“वे DVR से छेड़छाड़ की कोसिस शायद इसलिए कर रहे थे ताकि सच्चाई सामने न आए। लेकिन हमने कुछ वीडियो अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर लिए, जो अब सोशल मीडिया पर हैं।”
पुलिस की इस कार्रवाई ने यह सवाल और गहरा कर दिया है कि – क्या पुलिस सबूत मिटाकर अपनी करतूत छिपाना चाहती थी?
पत्रकारों में उबाल – “यह लोकतंत्र पर हमला है” : घटना के बाद छत्तीसगढ़ के पत्रकार संगठनों में तेज आक्रोश है। मीडिया जगत ने इस कार्रवाई को लोकतंत्र पर हमला बताया है और रायपुर पुलिस से तत्काल जांच व दोषी पुलिसकर्मियों पर कठोर कार्रवाई की मांग की है।
वंशिका पांडे ने कहा,
“यह सिर्फ हमारे परिवार की नहीं, हर पत्रकार की लड़ाई है।
अगर आज हम चुप रहे, तो कल किसी और के घर पुलिस ऐसे ही घुसेगी।”
अब सवाल बड़ा है…
- क्या छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता करना अब अपराध बन गया है?
- क्या सत्ता की सच्चाई दिखाने की कीमत अब पत्रकारों की महिलाओं की सुरक्षा से चुकाई जाएगी?
- क्या पुलिस और प्रशासन लोकतंत्र के प्रहरी हैं या सत्ता के डरपोक औज़ार बन गए हैं?
जब पुलिस संविधान भूल जाए, तो लोकतंत्र खतरे में है :
- यह घटना किसी एक परिवार या अख़बार की नहीं – बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर सीधा प्रहार है।
- जब “सच” लिखने वाले पत्रकार के घर में आधी रात पुलिस बिना वारंट के घुस जाए,
- महिलाओं से बदसलूकी करे, मंदिर में अपमान करे और सबूत मिटाने की कोशिश करे –
- तो यह स्पष्ट संदेश है कि “सिस्टम अब सवालों से डर गया है।”
अब पूरा प्रदेश देख रहा है कि – क्या छत्तीसगढ़ सरकार इस शर्मनाक घटना पर साहसिक कार्रवाई करेगी, या फिर एक बार फिर “सच्चाई की आवाज़” को कुचलने की कोशिश करेगी?





One Comment