पाली के अग्रोहा स्टील प्लांट में मौत का कुंड! 19 वर्षीय मजदूर उमेश चौहान गरम डस्ट में जिंदा जल गया सुरक्षा नियमों की धज्जियां उड़ाता उद्योग!…

रायगढ़। जिले के अग्रोहा स्टील एंड पावर प्रा. लि. में मजदूर सुरक्षा की पोल खोलने वाला भयावह हादसा सामने आया है। प्लांट के हीट एक्सचेंजर सेक्शन में काम कर रहे केवल 19 वर्षीय मजदूर उमेश चौहान की गरम डस्ट में जलकर दर्दनाक मौत हो गई। हादसा 24 सितंबर 2025 को हुआ, लेकिन प्लांट प्रबंधन की बेदर्दी और अपराधजनक लापरवाही का सच अब उजागर हो रहा है।
“सुरक्षा उपकरण नहीं, मौत का आदेश मिला था” : जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है ये उमेश को बिना किसी सुरक्षा उपकरण (सेफ्टी सूट, हेलमेट, ग्लव्स या गॉगल्स) के खतरनाक तापमान वाले क्षेत्र में काम कराया जा रहा था।
यहां तक कि उसे किसी प्रकार का सुरक्षा प्रशिक्षण या सुपरवाइजरी निगरानी भी नहीं दी गई थी।
मृतक का भाई प्रदीप चौहान ने बताया_
“मेरा भाई सुपरवाइज़र सीतल कुमार साव के अधीन काम करता था। उसने कई बार सुरक्षा उपकरण मांगे, लेकिन कहा गया — ‘काम करो, कुछ नहीं होगा।’ और अब मेरा भाई चला गया।”
गरम डस्ट में जलकर मौके पर मौत : न जिम्मेदारों को परवाह, न प्रबंधन को शर्म : घटना के वक्त उमेश हीट एक्सचेंजर सेक्शन में कार्य कर रहा था, तभी अचानक गरम डस्ट की भारी मात्रा ऊपर से गिरी, जिससे उसका पूरा शरीर जल गया।
मजदूरों के साथी चीखते रह गए, पर किसी ने मदद नहीं की।
उमेश की मौके पर ही मौत हो गई।
सूचना मिलने पर थाना पूंजीपथरा पुलिस मौके पर पहुंची और मर्ग क्रमांक 58/2025 धारा 194 BNSS के तहत जांच शुरू की।
सुपरवाइज़र पर केस, पर असली जिम्मेदार अब भी खुले घूम रहे हैं : प्रारंभिक जांच में यह साफ हुआ कि जनरल सुपरवाइज़र सीतल कुमार साव (उम्र 48 वर्ष, निवासी मिट्ठूमुड़ा, थाना जूटमिल, रायगढ़) ने ही सुरक्षा नियमों की अनदेखी करते हुए मजदूर से काम कराया।
पुलिस ने उसके खिलाफ धारा 106(1) और 289 बी.एन.एस. के तहत मामला दर्ज किया है।
जांच उप निरीक्षक विजय कुमार एक्का के सुपुर्द की गई है।
लेकिन सवाल है ये
क्या सिर्फ एक सुपरवाइज़र जिम्मेदार है?
कंपनी के सेफ्टी ऑफिसर, प्लांट मैनेजर और हेड ऑफ ऑपरेशन की जिम्मेदारी कौन तय करेगा?
घटनास्थल से मिले वीडियो और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान बताते हैं कि :
- सुरक्षा उपकरण मजदूरों को न के बराबर दिए जाते हैं।
- कार्यस्थल पर सेफ्टी ऑडिट या मॉनिटरिंग का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
- मजदूरों से 12-12 घंटे की शिफ्ट में अत्यधिक गर्मी और धूल के बीच काम कराया जाता है।
यह स्थिति न केवल फैक्ट्री एक्ट 1948 और सेंट्रल इंडस्ट्रियल सेफ्टी कोड 2020 का उल्लंघन है, बल्कि मानवाधिकारों और श्रम कानूनों पर सीधा प्रहार है।
यह मौत एक हादसा नहीं है उद्योगों की अमानवीय सोच का परिणाम है!
मजदूर संगठनों का आरोप है कि रायगढ़ के अधिकांश स्टील और पावर प्लांट्स में “सेफ्टी” सिर्फ नाम की चीज है।
हर साल कई मजदूर घायल या मारे जाते हैं, लेकिन
“प्रबंधन के लोग रसूख और पैसों से हर जांच दबा देते हैं।”
अग्रोहा स्टील में हुई उमेश चौहान की मौत ने यह साबित कर दिया है कि यहां मजदूरों की ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं।
जनता की मांग ये हत्या के समान अपराध माने जाएं ऐसे हादसे!
- मृतक परिवार को कम से कम ₹25 लाख का मुआवजा दिया जाए।
- कंपनी के डायरेक्टर, प्लांट हेड और सेफ्टी ऑफिसर पर धारा 105 बी.एन.एस. (मानव जीवन के प्रति घोर उपेक्षा) के तहत आपराधिक मामला दर्ज हो।
- श्रम विभाग और प्रदूषण नियंत्रण मंडल तुरंत प्लांट का संचालन निलंबित करें और सेफ्टी ऑडिट सार्वजनिक करें।
🔍 सिस्टम पर सवाल ये क्या मजदूर की जान इतनी सस्ती है?
हर औद्योगिक दुर्घटना के बाद वही बयान — “जांच चल रही है।”
पर जवाबदेही कभी तय नहीं होती।
उमेश चौहान की मौत इस बात का प्रतीक बन चुकी है कि छत्तीसगढ़ के कारखानों में “सुरक्षा” अब एक मज़ाक बन चुकी है।
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यह खबर सिर्फ एक मजदूर की मौत नहीं बताती — यह उस व्यवस्था का चेहरा दिखाती है, जहाँ मुनाफे की कीमत ज़िंदगी से वसूली जाती है।




