पत्थलगांव : आदिवासी ज़मीन विवाद में SDM का विवादित आदेश, 4 और 5 सितंबर के अवकाश ने खोली प्रशासनिक टालमटोल की पोल??…

पत्थलगांव। जशपुर जिले में आदिवासी ज़मीन पर गैर-आदिवासी कब्ज़े का मामला अब प्रशासनिक कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। अनुविभागीय दंडाधिकारी (SDM) पत्थलगांव ने 4 सितंबर 2025 को दिए गए आदेश में आदिवासी वारिसों की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि मामला “विधि अनुरूप नहीं है।” लेकिन आदेश से ठीक पहले 4 और 5 सितंबर को घोषित अवकाश ने यह संदेह और गहरा कर दिया कि सुनवाई जानबूझकर टालकर गैर-आदिवासी पक्ष को राहत दी गई।

मामला क्या है?
- ग्राम पत्थलगांव की खसरा नंबर 702/1 (0.235 हे.) और 702/3 (0.008 हे.) भूमि मूल रूप से गोंड़ आदिवासी देवसाय के नाम दर्ज थी।
- आरोप है कि इस भूमि को छल और बेनामी सौदेबाजी के जरिए गैर-आदिवासी व्यापारी अरुण कुमार अग्रवाल ने अपने सहयोगी आदिवासी महेश सिंह के नाम दर्ज करवा लिया।
- आवेदक शिवप्रसाद सिदार और कृष्णा सिदार (देवसाय के वारिस) ने दावा किया कि यह सौदा पूरी तरह धोखाधड़ी है।
- ज़मीन पर तारबंदी, मकान निर्माण और पौधों की नर्सरी जैसी गतिविधियों के ठोस प्रमाण पेश किए गए।
4 और 5 सितंबर का अवकाश -सवालों के घेरे में :

- 4 सितंबर को अधिवक्ता संघ के शोक प्रस्ताव के कारण न्यायालय की कार्यवाही स्थगित थी, तो प्रशासन आखिर अधिवक्ताओ के शोक प्रस्ताव पर छुट्टी के दिन आदेश जारी करने की जल्दबाज़ी में क्यों पड़ा? यह मंशा ही प्रशासन की कार्यशैली पर गहरे सवाल खड़े करती है।”
- 5 सितंबर को भी कार्यालय अवकाश घोषित कर दिया गया। उस दिन भी मामले की सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकी और आवेदकों को आगे की तारीख पर बुलाया गया।
- लगातार दो दिन की यह देरी स्वाभाविक न लगकर प्रशासनिक टालमटोल का हिस्सा प्रतीत होती है।
- इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या ये अवकाश महज़ औपचारिक थे या फिर गैर-आदिवासी कब्जेदार को बचाने की सोची-समझी रणनीति?
SDM का विवादित आदेश : लगातार टलती सुनवाई और अवकाश के बाद SDM पत्थलगांव ने अंतिम आदेश में कहा –
- ज़मीन वर्तमान में आदिवासी महेश सिंह के नाम दर्ज है।
- गैर-आदिवासी के कब्ज़े का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
- कपटपूर्वक अंतरण सिद्ध नहीं हो पाया।
इस प्रकार, सभी दस्तावेज़ों और गवाहियों को दरकिनार करते हुए आवेदन खारिज कर दिया गया।
अब उठ रहे हैं गंभीर सवाल :
- क्या 4 और 5 सितंबर का अवकाश महज़ संयोग था या फिर सुनियोजित देरी?
- जब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट तक ने आदिवासी ज़मीन के बेनामी सौदों को अवैध करार दिया है, तो जशपुर में उन्हें क्यों मान्यता दी जा रही है?
- पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र में बिना कलेक्टर अनुमति ज़मीन का अंतरण आखिर कैसे संभव हुआ?
- क्या प्रशासन न्याय की बजाय भूमाफियाओं को संरक्षण देने की भूमिका निभा रहा है?
जशपुर में आदिवासी ज़मीन पर लगातार हमले : जशपुर और सरगुजा अंचल में यह कोई पहला मामला नहीं है। लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं कि गैर-आदिवासी व्यापारी और भूमाफिया, आदिवासियों की ज़मीन पर कब्ज़ा करने के लिए फर्जी सौदों और बेनामी रजिस्ट्री का सहारा लेते हैं। अदालतें बार-बार ऐसे सौदों को अवैध घोषित कर चुकी हैं, फिर भी ज़मीनी स्तर पर अधिकारी कार्रवाई से बचते दिखते हैं।
SDM पत्थलगांव का यह आदेश और उससे पहले 4 व 5 सितंबर को दिए गए अवकाश अब आदिवासी संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए बड़ा सवाल बन गए हैं। क्या यह न्याय की आड़ में भूमाफियाओं को संरक्षण देने का खुला खेल तो नहीं है?…
पार्ट 2 —बहुत जल्द आपके सामने…




