घरघोड़ा : ग्राम पंचायत अमलीडीह में ‘गोलमाल’ का बड़ा खेल! RTI की उड़ाई धज्जियां, 2022-23 की ऑडिट रिपोर्ट दबाकर किसे बचाने की हो रही साजिश?…

रायगढ़। क्या ग्राम पंचायत अमलीडीह में सब कुछ “गुम” है या जानबूझकर “गुमराह” किया जा रहा है? घरघोड़ा जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत अमलीडीह में सूचना के अधिकार (RTI) कानून का न केवल मखौल उड़ाया गया है, बल्कि पारदर्शिता की हत्या कर भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की एक सुनियोजित साजिश रची गई है। तत्कालीन जन सूचना अधिकारी शांति बेहरा की भूमिका अब सवालों के घेरे में है।
अधूरी जानकारी या भ्रष्टाचार का कवच? -मामला बेहद गंभीर है। एक आरटीआई आवेदक ने पंचायत की वित्तीय पारदर्शिता को परखने के लिए वर्ष 2022-23 और 2023-24 की ऑडिट रिपोर्ट मांगी थी। नियमतः, यह जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए। लेकिन, जन सूचना अधिकारी ने बड़ी चालाकी से 2023-24 का एक मामूली टुकड़ा थमाकर पल्ला झाड़ लिया, जबकि वर्ष 2022-23 की पूरी ऑडिट रिपोर्ट को रहस्यमयी तरीके से “गायब” कर दिया गया।
सवाल सीधा है- आखिर 2022-23 की फाइलों में ऐसा क्या दफन है जिसे बाहर आने से रोका जा रहा है?
‘दाल में काला’ नहीं, पूरी ‘दाल ही काली’ है! -RTI कार्यकर्ता और ग्रामीणों का आरोप है कि यह महज लापरवाही नहीं, बल्कि “मेजर फाइनेंशियल मिसकंडक्ट” (बड़ी वित्तीय गड़बड़ी) को छिपाने का प्रयास है। आशंका जताई जा रही है कि वर्ष 2022-23 में पंचायत के फंड में बड़ा खेल हुआ है, और ऑडिट रिपोर्ट सामने आते ही कई “सफेदपोशों” के चेहरे बेनकाब हो सकते हैं। इसीलिए, कानून को ठेंगा दिखाकर जानकारी दबाई जा रही है।
प्रशासन की साख दांव पर : क्या अपीलीय अधिकारी करेंगे न्याय? – आवेदक ने अब प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास न्याय की गुहार लगाई है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या रुख अपनाता है।
- क्या अपीलीय अधिकारी उस दबी हुई फाइल को बाहर निकलवा पाएंगे?
- या फिर “लिफाफा संस्कृति” के तहत इस मामले को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?
सुलगते सवाल :
- जब ऑडिट हुआ है, तो रिपोर्ट देने में हाथ क्यों कांप रहे हैं?
- क्या जन सूचना अधिकारी पर किसी “ऊपर वाले” का दबाव है?
- क्या घरघोड़ा प्रशासन अपनी नाक के नीचे हो रही इस मनमानी पर मौन रहेगा?
यह मामला अब केवल एक आवेदक का नहीं, बल्कि पूरे पंचायत राज व्यवस्था की विश्वसनीयता का है। अगर जल्द ही 2022-23 का सच सामने नहीं आया, तो यह साबित हो जाएगा कि अमलीडीह पंचायत में “ईमानदारी” केवल कागजों तक सीमित है।




