सड़क नहीं, दर्द का सफर!” सरगुजा में शव ढोते रहे ग्रामीण, 10 दिन में दो बार दोहराई गई त्रासदी…

सरगुजा। विकास के वादों और सड़कों के नक्शों में चमकते घोषणाओं के बावजूद हकीकत यह है कि सरगुजा के मैनपाट ब्लॉक में आज भी जिंदगी और मौत दोनों सड़क की बाट जोह रही हैं। सुगापानी गांव के लोगों को जब भी किसी अपने का शव गांव तक ले जाना पड़ता है, तो वे सिर्फ दुख नहीं बल्कि व्यवस्था की लाचारी का बोझ भी कंधों पर उठाते हैं।
शव को 3 किलोमीटर तक कंधे पर ढोना पड़ा : धरमजयगढ़ में जेसीबी चलाने वाले अमित किण्डो (26) की सड़क हादसे में मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम के बाद परिजनों को शव सौंपा गया, लेकिन सुगापानी गांव तक शव वाहन नहीं पहुंच सका। मजबूरी में परिवार और ग्रामीणों ने शव को पिकअप से असगवां चौक तक पहुंचाया, और वहां से 3 किलोमीटर तक कंधे पर ढोकर गांव तक ले गए। वहीं, सुगापानी में अंतिम संस्कार के दौरान गांव का हर शख्स यही कह रहा था – “हम मरने के बाद भी सड़क का इंतज़ार करते हैं।”
10 दिन पहले भी दोहराई गई थी यही त्रासदी : सिर्फ दस दिन पहले इसी गांव के पास के सीएएफ जवान लवरेंस बड़ा की मौत के बाद भी यही मंजर दोहराया गया था। परिजनों को जवान का शव भी असगवां से तीन किलोमीटर ढोकर ले जाना पड़ा था। भाई सुलेमान बड़ा ने व्यथित स्वर में कहा –

अमित किण्डो की भाभी जयमणी किण्डो ने विधायक पर आरोप लगाते हुए कहा –

गांव की महिलाएं बताती हैं कि बीमार मरीजों को डोली या चारपाई में ढोकर अस्पताल पहुंचाना यहां आम बात है। बरसात में यह इलाका बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट जाता है।
पूर्व मंत्री अमरजीत भगत ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा –
“पूर्ववर्ती सरकार में सुगापानी-असगवां-नान दमाली सड़क को मंजूरी मिली थी और बजट में शामिल किया गया था। लेकिन सरकार बदलने के बाद यह काम ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब जनता भुगत रही है।”
वर्तमान विधायक रामकुमार टोप्पो ने पलटवार किया –
“अमरजीत भगत 20 साल विधायक और 5 साल मंत्री रहे, उन्होंने सड़क क्यों नहीं बनवाई? अब हमने 50 में से 45 पहुंचविहीन इलाकों की कनेक्टिविटी बहाल की है, बाकी 5 जगहों में भी गर्मी तक काम पूरा कर लिया जाएगा।”
दरअसल, असगवां तक कच्ची सड़क है, लेकिन उससे आगे मछली नदी पर पुल नहीं होने के कारण सुगापानी, ढाबपारा, टिकरापारा, गिर्राडीह और नवलपारा जैसे गांव आज भी सड़क विहीन हैं। बरसात में यह रास्ता दलदल में बदल जाता है और शव वाहन तो दूर, मोटरसाइकिल तक नहीं पहुंच पाती। यही वजह है कि अब ग्रामीण सवाल पूछ रहे हैं –
“क्या सड़क सिर्फ नेताओं के भाषणों तक सीमित है?”
सवाल जो सत्ता से पूछे जाने चाहिए :
- जब सड़क की मंजूरी पहले से थी, तो उसका निर्माण क्यों ठप हुआ?
- क्या शासन के लिए यह विकास की प्राथमिकता नहीं कि लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार सम्मानपूर्वक कर सकें?
- क्या सुगापानी और उसके आसपास के गांव सिर्फ वोट बैंक हैं, नागरिक नहीं?
सरगुजा की यह कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि उस “विकास मॉडल” की हकीकत है जो कागज़ पर दौड़ता है लेकिन ज़मीन पर अब भी रेंग रहा है। यहां लोगों को सड़क नहीं, बल्कि “सम्मानजनक जीवन और मृत्यु का अधिकार” चाहिए।




