रायगढ़ की राजनीति में विस्फोट – कांग्रेस के युवा नेता का सौदेबाज़ी वाला ऑडियो वायरल, भाजपा से ‘सेटिंग’ का खुलासा…

रायगढ़। कांग्रेस संगठन में नए ज़िला अध्यक्ष की नियुक्ति की हलचल के बीच रायगढ़ से एक राजनीतिक बम फटा है। एक युवा कांग्रेस नेता का वायरल ऑडियो पूरे जिले की राजनीति को हिला गया है। ऑडियो में नेता भाजपा के वरिष्ठ विधायक और मंत्री से सीधे ‘सौदेबाज़ी’ करने की बात करते सुनाई दे रहा है – और यह सौदा केवल शब्दों का नहीं, बल्कि कांग्रेस की विचारधारा और ईमानदारी का सौदा साबित हो रहा है।

भाजपा मंत्री से सिफारिश, कांग्रेस से गद्दारी का सौदा : वायरल ऑडियो में कांग्रेस का यह नेता अपने भाई के नगर निगम ठेके से जुड़ी दिक्कतें सुलझाने के लिए भाजपा मंत्री से ‘सिफ़ारिश’ करने की गुहार लगाता है। बदले में वह मंत्रीजी को भरोसा देता है कि आने वाले नगर निगम चुनाव में भाजपा को किसी भी तरह की चुनौती नहीं देगा, बल्कि “आपके हित में काम करूंगा” जैसी भाषा का प्रयोग करता है।

यह वही वार्ड बताया जा रहा है जहाँ बाद में भाजपा प्रत्याशी को बड़ी जीत मिली और कांग्रेस प्रत्याशी को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा।
अब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि-
क्या यह जीत जनादेश की थी या सेटिंग की?
कांग्रेस में वफ़ादार हाशिए पर, सौदेबाज़ नेता सक्रिय : सूत्र बताते हैं कि यह वही युवा नेता है, जो पहले भी विवादों में रहा है।
स्वर्गीय नंदकुमार पटेल के समय में किरोड़ीमल नगर पंचायत चुनाव के दौरान भी इसका एक ऑडियो वायरल हुआ था, जिसमें उसने कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर भाजपा प्रत्याशी का समर्थन करने का दबाव बनाया था।
परिणाम – तब भी कांग्रेस की हार, भाजपा की जीत।
लगातार दो बार एक ही पैटर्न!
यह संयोग नहीं, बल्कि राजनीतिक सौदेबाज़ी की परंपरा का सबूत है।
जिला अध्यक्ष की दौड़ में विवादित चेहरा -कांग्रेस संकट में : अब यही नेता कांग्रेस के शहर ज़िला अध्यक्ष पद का प्रबल दावेदार बताया जा रहा है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि इस ऑडियो के बावजूद कुछ गुटीय नेता इस विवादित चेहरे को आगे बढ़ाने की कोशिश में हैं।
ऐसे में यह सवाल पूरी कांग्रेस के लिए “आत्मघाती” बन चुका है –
क्या कांग्रेस अब भी ऐसे नेताओं को पुरस्कृत करेगी जो भाजपा के लिए ‘बैकडोर एजेंट’ की भूमिका निभा रहे हैं?
कांग्रेस के लिए चेतावनी का वक्त : रायगढ़ से वायरल यह ऑडियो केवल एक व्यक्ति की हरकत नहीं, बल्कि संगठन की कमजोरी का आईना है।
अगर कांग्रेस ने अब भी ऐसे सौदेबाज़ चेहरों पर लगाम नहीं लगाई, तो
2028 के विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस का ‘संगठन’ नहीं, ‘विश्वास’ बिखर जाएगा।
कांग्रेस के लिए अब एक ही रास्ता बचता है –
ईमानदार कार्यकर्ताओं को सम्मान और सौदेबाज़ नेताओं का बहिष्कार।
वरना रायगढ़ से उठी यह गूँज आने वाले चुनावों में पूरे छत्तीसगढ़ की राजनीति को हिला देगी।




