
धरती पर जब-जब अन्याय, अधर्म और अहंकार सिर उठाता है, तब-तब विजयादशमी हमें याद दिलाती है कि सत्य और न्याय की ताकत किसी भी दंभ, छल और छलावे से बड़ी होती है।
आज फिर सवाल वही है – क्या हम सचमुच रावण को जलाते हैं, या फिर सिर्फ उसका खोखला पुतला?
धर्म और शक्ति की जीत का प्रतीक : इतिहास गवाह है कि त्रेता युग में भगवान राम ने रावण जैसे साम्राज्यवादी अहंकारी शासक को हराकर यह संदेश दिया कि सत्ता का उपयोग शोषण के लिए नहीं, बल्कि समाज की रक्षा के लिए होना चाहिए। बंगाल से लेकर ओडिशा तक शक्ति की देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर बताया कि स्त्री केवल सहनशीलता की प्रतीक नहीं, बल्कि अत्याचार के खिलाफ प्रतिकार की भी शक्ति है।
समाज के रावण : आज के समय में रावण केवल लंका का राजा नहीं है।
- भ्रष्टाचार : व्यवस्था को खोखला कर देने वाले अधिकारी और नेता।
- शोषण : गरीब और कमजोर वर्गों को दबाने वाले माफिया और ठेकेदार।
- लोभ और लालच : जमीन, खदान और जंगल लूटने वाले कारपोरेट घराने।
- अहंकार : जनता की आवाज को दबाकर शासन करने वाली सरकारें।
ये सब मिलकर आधुनिक ‘रावण’ हैं, जिनके दस सिर लालच, भ्रष्टाचार, अपराध, हिंसा, नशाखोरी, महंगाई, बेरोजगारी, असमानता, जातिवाद और अन्याय के रूप में हमारे सामने खड़े हैं।
विजयादशमी का वास्तविक संदेश :
- केवल रावण का पुतला जलाना कोई समाधान नहीं, असली चुनौती है इन सामाजिक बुराइयों का खात्मा।
- यह पर्व हमें साहस देता है कि हम चुपचाप अन्याय न सहें, बल्कि आवाज उठाएँ।
- सत्ता और सिस्टम से सवाल करना भी उतना ही जरूरी है जितना कि घर के आँगन में दीप जलाना।
वर्तमान दौर में प्रासंगिकता : आज जब किसान कर्ज से मर रहा है, युवा बेरोजगारी से जूझ रहा है, आदिवासी अपनी जमीन से बेदखल किए जा रहे हैं और जनता महंगाई की आग में जल रही है, तब विजयादशमी केवल उत्सव का पर्व नहीं, बल्कि विद्रोह और जागरण का पर्व बन जाता है।
यह वह दिन है जब हमें यह तय करना होगा कि –
- क्या हम पुतलों को जलाकर खुश हो जाएँगे?
- या सचमुच समाज के भीतर जड़े जमा चुके बुराइयों के रावण को खत्म करेंगे?
विजयादशमी का पर्व हमें यह संदेश देता है कि सत्य की जीत निश्चित है, लेकिन तभी जब समाज चुप न बैठे।
आज जरूरत है कि जनता, पत्रकार, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता मिलकर भ्रष्टाचार, शोषण और अन्याय के रावण का दहन करें। तभी यह पर्व अपने सही मायनों में सार्थक होगा।




