जान लेने वालों को सहानुभूति, जान बचाने वाले को उपेक्षा – यूकेश चंद्राकर का फूटा आक्रोश ; बस्तर के शहीद पत्रकार मुकेश चंद्राकर के बड़े भाई का बयान वायरल…
नई दिल्ली/बस्तर। बस्तर के शहीद पत्रकार मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या एक बार फिर राष्ट्रीय बहस के केंद्र में है। न्याय की लड़ाई अपने सबसे नाजुक मोड़ पर है – और इसी बीच उनके बड़े भाई यूकेश चंद्राकर का तीखा, तड़ित और व्यवस्था को बेनकाब कर देने वाला फेसबुक पोस्ट पूरे देश में तूफान ला रहा है। यूकेश का यह संदेश महज भावनात्मक नहीं, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था, सरकारों, पत्रकार संगठनों और सामाजिक संवेदनशीलता पर करारा हमला है, जिसमें वे साफ कहते हैं-
“ज़िंदगी भर जान बचाने वाले के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक भी वकील नहीं…और ज़िंदगी भर जान लेने वाले के लिए इंडिया गेट पर ज़िंदाबाद चल रहा है।”
25 नवंबर – अल्टीमेटम : यूकेश चंद्राकर ने पोस्ट में चेतावनी देते हुए कहा कि
“यदि 25 नवंबर की रात तक सुप्रीम कोर्ट में मुकेश के लिए कोई वकील नहीं खड़ा होता, तो एक जनवरी 2026 को मुकेश को श्रद्धांजलि देना ढोंग बन जाएगा।”
यह बयान साफ संदेश देता है – परिवार अब खामोश नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था से लड़ने के लिए तैयार है।
हत्यारे अब सुप्रीम कोर्ट में – 26 नवंबर को सुनवाई : यूकेश के अनुसार, हत्या के आरोपी अब सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँच चुके हैं, जहां उन्होंने टेंडर प्रकरण में एक रिट पिटिशन दायर की है। 26 नवंबर की सुबह इस याचिका पर सुनवाई होनी है।
यूकेश को आशंका है कि –
“यदि इस रिट में उन्हें राहत या जमानत मिल जाती है, तो टुकड़े-टुकड़े कर हत्या कर शव को सेप्टिक टैंक में फेंकने वाले केस में भी जमानत की राह खुल जाएगी।”
यह कथन न सिर्फ़ सदमे में डालता है, बल्कि न्यायिक प्रक्रियाओं की गंभीर खामियों पर उंगली भी उठाता है।
“मुकेश, तुम बेवकूफ थे…” – सिस्टम पर यूकेश की सीधी चोट : यूकेश का आक्रोश यहाँ और तीखा हो जाता है। उन्होंने लिखा-
“मुकेश चंद्राकर, तुम बेवकूफ थे… अब देख लो, सबूत है यह देश और इसकी व्यवस्था।”
और आगे…
“आज मैं सभी पत्रकार संगठनों, सरकारों, न्याय व्यवस्था और पूरे समाज की औक़ात बताने जा रहा हूँ… बहुत प्रेम से।”
ये शब्द न केवल पीड़ा, बल्कि गहरी निराशा और व्यवस्था से मोहभंग को भी उजागर करते हैं।
“मेरी अगली लड़ाई किसी भी क्रांतिकारी से ज़्यादा पसंद आएगी” – यूकेश की घोषणा
इस पोस्ट में यूकेश ने अपने अगले कदम का संकेत देते हुए साफ लिखा—
“आप जितने भी उपेक्षित, ग़रीब, संघर्षशील, बेरोज़गार, पीड़ित लोग हैं… मेरे अगले क़दम आपको बहुत पसंद आएँगे। मैं अकेला लड़ बैठूंगा इस पूरे सिस्टम से। वादा है।”
और अंत में एक सीधी चेतावनी –
“आज की मेरी वीडियो मत देखिएगा… मैं आप सभी के खिलाफ़, देश के खिलाफ़, मानवजाति के खिलाफ़ बहुत बड़े सच बोलने जा रहा हूँ।”
यह बयान सोशल मीडिया पर एक गहरी बेचैनी पैदा कर रहा है।
मुकेश चंद्राकर कौन थे? – मुकेश बस्तर के उन बहादुर पत्रकारों में से थे, जो नक्सल प्रभावित इलाकों में
भ्रष्टाचार,
टेंडर माफिया,
स्थानीय प्रशासन की अनियमितताएँ,
और जमीनी सच को जनता के सामने लाते रहे। उनकी हत्या ने न सिर्फ़ बस्तर, बल्कि पूरे पत्रकार समुदाय को हिला कर रख दिया था।
क्यों उठ रहा है सवाल?
मुकेश के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में कोई वरिष्ठ वकील खड़ा नहीं हुआ।
यूकेश का दावा—पत्रकार संगठन केवल बयानबाज़ी कर रहे हैं, वास्तविक मदद नगण्य।
हत्या के आरोपी लगातार अलग-अलग मामलों से राहत पा रहे हैं।
यह पूरी स्थिति एक खतरनाक उदाहरण पेश कर रही है—
अपराधियों को सहानुभूति,
और पीड़ित को उपेक्षा।
पत्रकार समुदाय में आक्रोश – “यह सिर्फ़ एक परिवार का मामला नहीं”
जैसे ही पोस्ट वायरल हुआ, प्रदेश एवं देशभर के पत्रकारों में गुस्से की लहर दौड़ गई। कई वरिष्ठ पत्रकारों ने भी यह कहा –
“यह सिर्फ़ मुकेश चंद्राकर का मामला नहीं—यह पत्रकारिता की सुरक्षा, सम्मान और न्याय के भविष्य का सवाल है।”
यूकेश चंद्राकर का यह पोस्ट सिर्फ़ भावनाओं का विस्फोट नहीं— यह पत्रकार सुरक्षा, न्यायपालिका की क्षमता, सरकारी निष्क्रियता, और समाज की संवेदनहीनता पर सीधा प्रश्न है।
26 नवंबर की सुनवाई पर अब पूरे देश की नज़र रहेगी – क्योंकि यह फैसला सिर्फ़ एक केस नहीं, बल्कि यह तय करेगा कि भारत में पत्रकारों की जान की कीमत कितनी है।