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फर्जी जाति प्रमाण पत्र से विधायक बनीं शकुंतला सिंह पोर्ते?

• आदिवासी समाज में बवाल – होगी FIR, जाएगी कुर्सी?
छत्तीसगढ़ की राजनीति में मचा हड़कंप!…

रायपुर। प्रतापपुर विधानसभा की भाजपा विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते एक ऐसे आरोप के शिकंजे में फँस गई हैं, जिसने पूरी राजनीति की रफ्तार बदल दी है। आरोप भी मामूली नहीं – फर्जी जाति प्रमाण पत्र का।

यह विस्फोट किया है प्रदेश के वरिष्ठ आदिवासी नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने।
टेकाम ने आदिवासी समाज की एक बड़ी सभा में मंच से खुलेआम कहा-

“शकुंतला पोर्ते का जाति प्रमाण पत्र प्रथम दृष्टया फर्जी दिखता है। यह आदिवासी समाज का अपमान है।”

सबसे बड़ा खुलासा “विधायक मूल रूप से उत्तर प्रदेश की निवासी” : सभा में टेकाम ने गंभीर आरोप लगाया कि—

  • शकुंतला सिंह पोर्ते का मूल निवास उत्तर प्रदेश में है।
  • ऐसे में छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति (ST) का प्रमाण पत्र हासिल करना और उसी के आधार पर चुनाव लड़ना पूर्णतः गैरकानूनी है।
  • यह न सिर्फ़ कानूनी धोखाधड़ी, बल्कि पूरे आदिवासी समाज के अधिकारों का खुला हनन है।

सभा में मौजूद सैकड़ों आदिवासी प्रतिनिधियों ने इस आरोप पर भारी आक्रोश जताया।

समाज की बड़ी कार्रवाई – ‘खोजबीन समिति’ गठित, FIR की उलटी गिनती शुरू : सभा में सर्वसम्मति से फ़ैसला:

  • विधायक के हर दस्तावेज़—जाति प्रमाण पत्र, जन्म स्थान, मूल निवास, स्कूल रिकॉर्ड, आवेदन फॉर्म—सबकी जांच।
  • समाज की खोजबीन समिति रिपोर्ट तैयार कर जिला प्रशासन, Tribal Commission और अन्य संवैधानिक संस्थाओं को सौंपेगी।
  • और यदि फर्जीवाड़ा साबित होता है तो –

“समाज स्वयं FIR दर्ज करेगा और विधायक पद रद्द करने की कानूनी लड़ाई लड़ेगा।”

ST आयोग की चेतावनी – “मामला बेहद गंभीर, कार्रवाई होगी” : अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भानू प्रताप सिंह ने मामला उठते ही इसे “बेहद गंभीर और संवैधानिक अपराध” बताया।

उन्होंने सख्त शब्दों में कहा –

“यदि कोई जनप्रतिनिधि फर्जी दस्तावेज़ से चुनाव जीतता है तो यह सिर्फ़ समाज ही नहीं, संविधान का भी अपमान है। त्वरित कार्रवाई जरूरी है।”

ST आयोग की दखल के बाद मामला हाई-प्रोफाइल हो गया है।

विपक्ष का तीखा हमला – “भाजपा ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र को संरक्षण दिया?” : विपक्ष ने भाजपा को सीधा कटघरे में खड़ा कर दिया है-

  • क्या पार्टी को उम्मीदवार की पृष्ठभूमि की जानकारी नहीं थी?
  • यदि थी, तो फर्जी दस्तावेज़ वाली विधायक को संरक्षण क्यों दिया गया?
  • क्या भाजपा आदिवासी सीट पर फर्जी प्रतिनिधि थोपने की कोशिश कर रही है?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद अब एक विधायक का नहीं रहा- यह भाजपा की पूरी उम्मीदवार चयन प्रणाली पर सवाल खड़ा कर रहा है।

वाड्रफनगर से रायपुर तक भड़की ‘राजनीतिक आग’ : वाड्रफनगर में उठी चिंगारी अब-

  • प्रतापपुर
  • बलरामपुर
  • अंबिकापुर
  • और सीधा रायपुर तक पहुँच चुकी है।

आदिवासी समाज इस मामले को
सम्मान, अस्तित्व और अधिकारों के सीधा उल्लंघन से जोड़कर देख रहा है।

बड़ा सवाल – क्या अब होगी FIR? गिरेगी कुर्सी? : इस पूरे विवाद के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है-

  • क्या जिला प्रशासन दस्तावेज़ों की निष्पक्ष जांच करेगा?
  • क्या FIR, गिरफ्तारी और पद अमान्यता जैसी कार्रवाई होगी?
  • या एक बार फिर राजनीतिक दबाव में फाइलें दबा दी जाएँगी?

अभी तक प्रशासन चुप है—और यही चुप्पी संदिग्ध भी।

निष्कर्ष -खेल बड़ा है, दांव ऊँचा है

  • आरोप बेहद गंभीर — फर्जी ST प्रमाण पत्र।
  • आदिवासी समाज का गुस्सा चरम पर।
  • खोजबीन समिति सक्रिय।
  • ST आयोग ने चेताया।
  • विपक्ष हमलावर।

यह मामला आने वाले दिनों में
छत्तीसगढ़ की राजनीति को हिला सकता है
और संभव है कि राज्य में पहली बार किसी विधायक पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर
सीधी FIR और पद-रद्दीकरण की प्रक्रिया शुरू हो।

Admin : RM24

Investigative Journalist & RTI Activist

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