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राष्ट्रीय एकता दिवस : भारत की अखंडता का प्रतीक, लौह पुरुष पटेल को नमन

लेख : फिरोज अहमद खान (पत्रकार)

भारत प्रतिवर्ष 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती का उत्सव मनाता है। यह अवसर एक ऐसे दूरदर्शी नेता को श्रद्धा अर्पित करने का है, जिनकी गहन सोच और अटल इच्छाशक्ति ने एक संयुक्त भारत की मजबूत नींव रखी। ‘लौह पुरुष’ के नाम से प्रसिद्ध पटेल के मार्गदर्शन में आजादी के बाद 560 से अधिक रियासतों का समावेश संभव हुआ, जिससे यह विशाल, स्वायत्त राष्ट्र अस्तित्व में आया। एकता दिवस उनकी स्मृति का सम्मान करने के साथ भारत की बहुलता में एकरूपता की दृढ़ निष्ठा का पुनरुत्थान करता है। यह दिन विविधता को हमारी ताकत मानते हुए सामूहिक एकजुटता की याद दिलाता है।

लौह पुरुष का ऐतिहासिक योगदान : रियासतों का एकीकरण

1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो देश को विरासत में मिला एक उलझा परिदृश्य—560 से ज्यादा रियासतें, प्रत्येक अपनी स्वतंत्रता और भिन्न वफादारियों वाली। सरदार पटेल ने इस कठिन कार्य को हाथ में लिया, जो असाधारण राजनय, निडरता और दृढ़ता की मांग करता था। उनकी अविचलित दृष्टि ने उन्हें ‘लौह पुरुष’ का सम्मान दिलाया। कूटनीतिक विवेक और व्यावहारिक नीतियों के मिश्रण से पटेल ने लगभग सभी रियासतों को भारतीय संघ में विलय कर लिया, जिसमें हैदराबाद, जूनागढ़ तथा जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र शामिल थे। इस प्रयास ने भारत की भौगोलिक अभेद्यता को गारंटी प्रदान की। पटेल का विश्वास था कि राष्ट्र की वास्तविक शक्ति सीमाओं में नहीं, बल्कि उसके निवासियों की सामूहिक एकता में बसती है।

एकता दिवस का महत्व : विरासत और समकालीन प्रासंगिकता

एकता दिवस न केवल पटेल की विरासत को नमन करता है, बल्कि भारत की विविधता में एकता की स्थायी प्रतिबद्धता को पुनर्युष्टि देता है। यह अवसर हमें सिखाता है कि बहुलता हमारी समृद्धि का स्रोत है। पटेल की राजनीतिक बुद्धिमत्ता आज भी प्रासंगिक है, जो सामाजिक सद्भाव और समावेशिता पर जोर देती है। सन 2025 में, उनकी 150वीं जयंती पर ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ थीम के साथ ‘रन फॉर यूनिटी’ दौड़, सांस्कृतिक कार्यक्रम और शपथ समारोह देशभर में हो रहे हैं। गुजरात के स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (182 मीटर ऊंची प्रतिमा) पर भव्य परेड, वायुसेना एयर शो और 16 राज्यों की टुकड़ियां विशेष आकर्षण हैं। स्कूलों में निबंध, वाद-विवाद और ‘भारत पर्व’ (1-15 नवंबर) जैसे आयोजन युवाओं को प्रेरित कर रहे हैं।

पटेल के शब्द आज भी गूंजते हैं: “एकता के बिना शक्ति कोई प्रभावी बल नहीं बनती।” यह दिवस हमें संकल्प दिलाता है कि भारत की एकता-अखंडता हमारी साझा जिम्मेदारी है, ताकि विविधता में एकजुट रहें।

पटेल की दृष्टि और एकता का संकल्प

सरदार वल्लभभाई पटेल का मानना था कि राष्ट्र की वास्तविक ताकत भौगोलिक सीमाओं में नहीं, बल्कि उसके नागरिकों की सामूहिक एकजुटता में निहित है। उन्होंने कहा था, “एकता के बिना जनशक्ति कोई प्रभावी बल नहीं बन पाती, जब तक वह समुचित ढंग से समन्वित और व्यवस्थित न हो जाए ; तब वह आध्यात्मिक ऊर्जा का रूप धारण कर लेती है।” यह कथन उनकी दूरदृष्टि को प्रतिबिंबित करता है, जहां एकता को आध्यात्मिक शक्ति का आधार माना गया। पटेल के लिए एकीकृत भारत केवल राजनीतिक इकाई नहीं, बल्कि लोगों के सामंजस्य का प्रतीक था।

एकता दिवस का आरंभ : विरासत का पुनरुत्थान

2014 में भारत सरकार ने पटेल की जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस घोषित किया। इसका मुख्य लक्ष्य जनमानस में एकरूपता की भावना को पुनर्स्थापित करना और उनके ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के आदर्श को सम्मान देना था। इस अवसर पर पूरे देश में ‘रन फॉर यूनिटी’ दौड़, सांस्कृतिक उत्सव, प्रदर्शनियां तथा प्रतिज्ञा सभाएं आयोजित होती हैं— शिक्षण संस्थानों से लेकर सशस्त्र बलों और सामुदायिक समूहों तक। 2025 में, 150वीं जयंती पर विशेष थीम ‘एक भारत, आत्मनिर्भर भारत’ के साथ युवा कार्यक्रम, एनएसएस/एनसीसी गतिविधियां और डिजिटल निबंध प्रतियोगिताएं जोड़ी गईं।

मुख्य समारोह गुजरात के एकता नगर में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (182 मीटर ऊंची पटेल की प्रतिमा) पर होता है। यह भव्य स्मारक भारत की दृढ़ता, निडरता और सामूहिक इच्छाशक्ति का जीवंत प्रतीक है। इस वर्ष भव्य परेड, वायुसेना एयर शो, 16 राज्यों की पुलिस टुकड़ियां तथा महिला अधिकारियों की गार्ड ऑफ ऑनर ने विविधता में एकता को रेखांकित किया। ‘भारत पर्व’ (1-15 नवंबर) जैसे आयोजन राज्यों की सांस्कृतिक झलकियां पेश करेंगे।

एकता दिवस पटेल की विरासत को जीवंत रखते हुए हमें संकल्प दिलाता है कि सामूहिकता ही राष्ट्र की अमर शक्ति है।

पटेल की दूरदृष्टि और सामाजिक समरसता का संदेश

सरदार वल्लभभाई पटेल की राजनीतिक कुशलता और दूरगामी सोच आज भी स्वतंत्रता काल जितनी ही सान्रक्षिक बनी हुई है। उनका सामाजिक सद्भाव तथा समावेशी दृष्टिकोण वर्तमान के खंडित वैश्विक परिदृश्य में प्रेरणा का स्रोत है। पटेल ने कहा था, “धर्म का पथ अपनाओ, सत्य तथा न्याय का मार्ग क्योंकि यही सभी के लिए सही दिशा है।” ये वचन भारत के सामाजिक ढांचे में न्याय, पारस्परिक आदर और शांति को स्थायी रखने की हमारी सामूहिक उत्तरदायित्व की स्मृति दिलाते हैं। पटेल जाति-भेदभाव, छुआछूत तथा अस्पृश्यता के कट्टर विरोधी थे; उनके अनुसार, समाज में समानता और न्याय ही एकता का आधार है। उन्होंने अंग्रेजी सिविल सेवा को पुनर्गठित कर आईएएस-आईपीएस जैसी सेवाओं को राष्ट्रीय समर्पण से जोड़ा, ताकि प्रशासनिक एकता राष्ट्र को मजबूत बनाए।

विविधता में एकता का पुनरुत्थान

एकता दिवस उस भारत के स्वप्न को जीवंत करता है जो अपनी बहुलता के कारण ही समृद्ध होता है, न कि उसके प्रतिकूल। यह प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रीय एकजुटता के प्रति निष्ठा की याद दिलाता है। देश की सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करने तथा भाषा, क्षेत्रीयता और धार्मिकता के मध्य संबंधों को सुदृढ़ बनाने का बुलावा देता है। पटेल का मानना था कि विविधता को एकता के सूत्र में बांधना राष्ट्रधर्म है; जाति, भाषा या प्रांत पर आधारित विभाजन शक्ति को क्षीण करता है। 2025 में, 150वीं जयंती पर ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ थीम के साथ ‘रन फॉर यूनिटी’ और एनएसएस/एनसीसी कार्यक्रम विविधता में सामंजस्य को रेखांकित कर रहे हैं। पटेल की विरासत हमें सिखाती है कि सामूहिक विश्वास और सहयोग से ही भारत की एकता अटल बनेगी।

समकालीन चुनौतियों में प्रासंगिक संदेश

वर्तमान में जब भारत क्षेत्रीय विषमताओं, सामाजिक फाटों और वैचारिक असहमतियों जैसी बाधाओं से जूझ रहा है, तब एकता दिवस का संदेश और अधिक सशक्त हो जाता है। यह कोई रस्मी अनुष्ठान नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकरूपता और साझा विकास की चेतना को पुनर्जागृत करने का साधन है। विश्वविद्यालयों में एकता पर चर्चाएं, निबंध स्पर्धाएं, सरकारी प्रतिष्ठानों में परेड तथा सांस्कृतिक आयोजन, और नागरिकों द्वारा राष्ट्र की अभेद्यता की प्रतिज्ञा— ये सभी गतिविधियां सामूहिकता को मजबूत करती हैं। 2025 में, 150वीं जयंती पर ‘एक भारत, आत्मनिर्भर भारत’ थीम के साथ युवा कार्यक्रम और ‘रन फॉर यूनिटी’ दौड़ ने युवाओं को प्रेरित किया।

प्रत्येक वर्ष गुजरात के स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर भव्य समारोह देशप्रेम और आत्माभिमान की ज्वाला प्रज्वलित करते हैं। यह संदेश देते हैं कि भारत कितना ही विस्तृत और बहुआयामी क्यों न हो, उसका हृदय तथा आत्मा एक ही है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “एकता ही इतिहास रचने की कुंजी है।” पटेल की विरासत हमें सिखाती है कि चुनौतियों के बीच सामूहिक संकल्प से ही राष्ट्र अटल बनेगा। ‘भारत पर्व’ (1-15 नवंबर) जैसे आयोजन विविधता को एकजुट रखेंगे।

पटेल के शब्द आज भी प्रेरणादायक हैं-
मेरी केवल एक इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक बने और देश में कोई भूखा न रहे। किसी की आँखों में आँसू न हों।

एकता की अमर विरासत : राष्ट्रीय एकता दिवस केवल स्मरण का दिन नहीं है – उस शक्ति की याद दिलाता है जो एकता से आती है।

यह भारत के संविधान, धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र और उस कालातीत विचार का प्रतिबिंब है कि एकता ही बड़ी संपत्ति की सबसे राष्ट्र एक विभाजित होती दुनिया में पटेल का उदाहरण हमें अनुशासन, एकजुटता और सामूहिक नियति में विश्वास का संदेश देता है। हर वर्ष 31 अक्टूबर को जब भारत एकता दिवस मनाता है, तब यह हमें याद दिलाता है कि पटेल की कल्पित एकता कोई स्थिर आदर्श नहीं, बल्कि एक जीवंत शक्ति है।

सरदार वल्लभभाई पटेल की विरासत इतिहास से परे है – वह भारत की आत्मा में जीवित है। हर वर्ष एकता दिवस यह सुनिश्चित करता है कि यह भावना कभी मंद न पड़े, भारत सदैव एक रहे और पटेल का स्वप्नित सामंजस्य सदैव हमारा मार्गदर्शक बना रहे।

Feroz Ahmed Khan

संभाग प्रभारी : दुर्ग

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