छत्तीसगढ़ संवाद कार्यालय में पत्रकार से मारपीट – ‘बुलंद छत्तीसगढ़’ के संपादक के घर में आधी रात पुलिस की बर्बरता! मीडिया सम्मान परिवार ने मुख्यमंत्री से की निष्पक्ष जांच की मांग…

रायपुर, 17 अक्टूबर। राज्य के संवाद कार्यालय में घटित एक चौंकाने वाली घटना ने पूरे छत्तीसगढ़ मीडिया जगत को झकझोर कर रख दिया है। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में जनसंपर्क संचालनालय के अपर संचालक श्री संजीव तिवारी को एक पत्रकार के साथ गला दबाने और शारीरिक रूप से आक्रामक व्यवहार करते स्पष्ट देखा जा सकता है। इस वीडियो ने न केवल शासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया जा रहा है।

🔹 घटना का सिलसिला –
मामले की शुरुआत 7 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित “बुलंद छत्तीसगढ़” के लेख ‘जनसंपर्क विभाग का अमर सपूत’ से हुई, जिसमें श्री तिवारी के दो दशकों से एक ही पद पर जमे रहने का उल्लेख था।
अगले ही दिन संवाद कार्यालय पहुँचे प्रतिनिधि अभय शाह से श्री तिवारी ने कथित रूप से दुर्व्यवहार और बदसलूकी की। इसके बाद 9 अक्टूबर को अभय शाह जब अपने सहयोगियों के साथ चर्चा के लिए दोबारा पहुँचे, तो मामला हिंसा में बदल गया। वायरल वीडियो में साफ दिखता है कि श्री तिवारी पहले पत्रकार का कॉलर पकड़ते हैं और फिर गले पर हाथ डालकर हमला करते हैं।
🔹 वीडियो प्रमाणिक, कोई एडिटिंग नहीं :
पत्रकार संगठन मीडिया सम्मान परिवार ने मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय को पत्र लिखकर कहा है कि वीडियो पूरी तरह असंपादित एवं प्रमाणिक (forensically intact) है। इसके बावजूद, घटना के तुरंत बाद श्री तिवारी ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए पत्रकारों पर झूठे आरोप लगाकर एफ.आई.आर. दर्ज कराई।
पत्रकार के घर रात में पुलिस की घुसपैठ : पत्रकार मनोज पांडे, संपादक – बुलंद छत्तीसगढ़, के घर रात 1:37 बजे पुलिस द्वारा गेट तोड़कर प्रवेश करने की घटना ने मामले को और गंभीर बना दिया है। परिवार की महिलाओं ने आरोप लगाया कि महिला पुलिसकर्मी मौजूद नहीं थीं, और सीसीटीवी कैमरे व डीवीआर जब्त कर लिए गए।
मीडिया सम्मान परिवार ने इसे “संविधान के अनुच्छेद 21 का घोर उल्लंघन” बताया है और कहा है कि यह पुलिस की बर्बरता एवं सत्ता के रंगीन प्रयोग (colourable exercise of power) का उदाहरण है।

कानूनी विशेषज्ञों का मत: पुलिस कार्रवाई ‘अवैध’ और ‘मनमानी’ : पत्र में सुप्रीम कोर्ट के दो ऐतिहासिक फैसलों का हवाला दिया गया है —
1️⃣ Arnesh Kumar vs. State of Bihar (2014) — जिन अपराधों में 7 वर्ष से कम सजा हो, उनमें गिरफ्तारी अपवाद है, नियम नहीं।
2️⃣ D.K. Basu vs. State of West Bengal (1997) — गिरफ्तारी के दौरान पुलिस को पारदर्शी और मानवोचित व्यवहार करना आवश्यक है।
मीडिया सम्मान परिवार का कहना है कि इन दोनों फैसलों की खुली अवहेलना कर पुलिस ने पत्रकारों के संवैधानिक अधिकारों का हनन किया है।
पत्रकार संगठन की माँगें : पत्र में मुख्यमंत्री से निम्न माँगें की गई हैं –
1️⃣ श्री संजीव तिवारी के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 166, 166A, 307 आदि के तहत आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध किया जाए।
2️⃣ सिविल सेवा आचरण नियमावली के अंतर्गत तत्काल निलंबन एवं विभागीय जाँच प्रारंभ की जाए।
3️⃣ रात में पत्रकार के घर घुसने वाले पुलिसकर्मियों के विरुद्ध धारा 324, 452, 354 भा.दं.सं. के तहत अपराध दर्ज हो।
4️⃣ जनसंपर्क विभाग की विज्ञापन वितरण प्रणाली की स्वतंत्र जाँच समिति गठित की जाए, ताकि Print Media Advertisement Policy 2020 और Digital Policy 2023 के पालन की समीक्षा हो सके।
5️⃣ शासन यह सुनिश्चित करे कि किसी भी अधिकारी को स्थानांतरण अवधि से अधिक समय तक एक ही पद पर न रखा जाए, ताकि “प्रशासनिक एकाधिकार” समाप्त हो।
“यह सिर्फ एक पत्रकार पर हमला नहीं, लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार है”
पत्र में कहा गया है –
“यह मामला सिर्फ अभय शाह या मनोज पांडे का नहीं है, बल्कि यह इस राज्य के लोकतांत्रिक चरित्र और चौथे स्तंभ की स्वतंत्रता की परीक्षा है। अगर शासन इस पर शीघ्र, निष्पक्ष कार्रवाई नहीं करता, तो यह संदेश जाएगा कि ‘शक्ति कानून से ऊपर है।’”
प्रतिलिपि भेजी गई –
➡️ गृह मंत्रालय, छत्तीसगढ़ शासन
➡️ पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ़
➡️ वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, रायपुर
“मीडिया सम्मान परिवार” ने यह स्पष्ट किया है कि यदि शासन ने शीघ्र संज्ञान नहीं लिया, तो संगठन राज्यभर में “पत्रकार सुरक्षा एवं जवाबदेह शासन” अभियान चलाएगा।



