
फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद/डौंडी। जिले में स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों में संविदा शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया इन दिनों विवादों के घेरे में आ गई है। पारदर्शिता की कमी, पक्षपात और भाई-भतीजावाद के गंभीर आरोपों ने इस भर्ती की विश्वसनीयता पर सवाल उठा दिए हैं। भाजपा शासनकाल में हुई इस भर्ती पर न केवल शिक्षा जगत के जानकार, बल्कि बेरोजगार युवा भी नाराज नजर आ रहे हैं।
इसे और गंभीर बनाने वाला मामला चयन समिति के नोडल अधिकारी डीपी कोसरे से जुड़ा है। आरोप है कि उन्होंने नियमों की अवहेलना करते हुए स्वयं अपनी पुत्री आकांक्षा कोसरे को स्वामी आत्मानंद विद्यालय, घोठिया में सामाजिक विज्ञान व्याख्याता पद पर नियुक्त कर दिया। खास बात यह है कि डीपी कोसरे आरक्षित वर्ग से संबंधित हैं, जबकि उनकी बेटी को अनारक्षित वर्ग में नियुक्त किया गया है। यह स्थिति भर्ती प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गहरा सवाल खड़ा करती है।

शिक्षा विभाग के नियमों के अनुसार चयन समिति का कोई सदस्य अपने परिवार के सदस्य को भर्ती प्रक्रिया में शामिल नहीं कर सकता। अगर कोई संबंध होता है, तो अधिकारी को पूर्व में शपथ पत्र देकर खुद को प्रक्रिया से अलग करना होता है। लेकिन डीपी कोसरे ने न तो इस संबंध में कोई सूचना दी और न ही खुद को चयन प्रक्रिया से अलग किया। इस पूरे मामले से ये संदेह पैदा होता है कि नियुक्ति पहले से ही तय थी।
भर्ती के दौरान नियमों का उल्लंघन युक्तिकरण के नाम पर भी हुआ है। सूत्र बताते हैं कि कई योग्य उम्मीदवारों को “युक्तिकरण” का तर्क देकर चयन से बाहर रखा गया, जबकि कुछ अपात्र लोगों को जान-बूझ कर सूची में शामिल किया गया। आश्चर्य की बात यह है कि डीपी कोसरे की पत्नी को प्रक्रिया से बाहर रखा गया, लेकिन उनकी बेटी को नियुक्ति की मंजूरी दे दी गई। इससे भर्ती की निष्पक्षता पर गम्भीर विवाद खड़ा हो गया है।
दिनांक 08 सितंबर 2025 को इंटरव्यू संपन्न होने के बाद परिणाम सूची जारी होनी थी, लेकिन इसे कई दिनों तक रोक दिया गया। इस बीच इंटरव्यू के दो-तीन सेट बदले गए। कई चयन समिति सदस्यों पर अभ्यर्थियों से व्यक्तिगत संपर्क और इंटरव्यू सीट बदलने के आरोप भी लगे हैं। ये घटनाएं भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता और गोपनीयता दोनों पर संदेह पैदा करती हैं।
इन अनियमितताओं के चलते कई योग्य अभ्यर्थी चयन सूची से बाहर हो गए, जिससे बेरोजगारों में गुस्सा है। उन्होंने पूरी सूची रद्द कर पुनः निष्पक्ष और पारदर्शी भर्ती कराने की मांग उठाई है। इसके अलावा, भर्ती के दौरान लाखों रुपये की कथित अवैध उगाही के आरोप भी लगाए जा रहे हैं।
इस मामले ने जिला प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। अब तक किसी प्रकार की जांच या जवाब नहीं मिला है। स्थानीय लोग और अभ्यर्थी उच्च स्तरीय और निष्पक्ष जांच की मांग कर जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान कर कड़ी कार्यवाही की उम्मीद कर रहे हैं।
इस भर्ती घोटाले ने शिक्षा विभाग की छवि को धूमिल कर दिया है, जबकि युवा वर्ग रोजगार के लिए गंभीर आशाएं लगाए बैठा है। प्रशासन की सक्रियता और पारदर्शिता के अभाव में जिला प्रशासन तथा शिक्षा विभाग पर जनविश्वास कमजोर होता जा रहा है। इस मामले की निष्पक्ष जांच ही अब समाधान का मार्ग दिखाती है।
क्या कहते हैं नियम?
- चयन समिति का कोई भी सदस्य अपने परिजन या रिश्तेदार को भर्ती प्रक्रिया में शामिल नहीं कर सकता।
- किसी भी सरकारी चयन प्रक्रिया में हितों के टकराव (कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट) को रोकने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश मौजूद हैं।
- इंटरव्यू प्रक्रिया में पारदर्शिता, गोपनीयता और निष्पक्षता अनिवार्य है।
इस संबंध में डीईओ से संपर्क करने का प्रयास किया गया, किंतु उनसे संपर्क नहीं हो सका।




