
✍️ ऋषिकेश मिश्रा (स्वतंत्र पत्रकार)
नई दिल्ली। 26/11 सिर्फ आतंक नहीं था, यह भारत की संप्रभुता को चुनौती देने की एक साजिश थी। समुद्र के रास्ते आए दस आतंकी- लेकिन निशाना 140 करोड़ भारतीयों का हौसला। गोलीबारी की हर गूंज में एक ही संदेश था कि दुश्मन भारत की आत्मा पर वार करने आया है।
लेकिन भारत झुका नहीं। टूटा नहीं। बिखरा नहीं।बल्कि वह और ज्यादा एकजुट हुआ, और ज्यादा अडिग खड़ा हुआ।
ताज की जलती दीवारें, और भीतर खड़े वे वीर—जिन्होंने मौत से आंख मिलाई : ताज होटल की आग सिर्फ एक इमारत की आग नहीं थी; वह इस बात का प्रमाण थी कि आतंक कितना भी खूनी क्यों न हो,
भारतीय वीरता की दीवार उसे कभी पार नहीं करने देगी। कंस्ट्रक्शन की ईंटें टूट सकती थीं, लेकिन भारत के जवानों की रीढ़ नहीं टूट सकती।
हेमंत करकरे, अशोक कामटे, विजय सालस्कर—ये सिर्फ नाम नहीं, भारत की ढाल हैं : ये वे योद्धा थे जिन्होंने गोलियों की बौछारों में भी आगे बढ़ना नहीं छोड़ा। जो अपनी अंतिम सांस तक लड़ते रहे ताकि भारत सांस ले सके। जिनकी वर्दी पर खून के दाग नहीं,भारत के सम्मान की मुहर लगी थी।
एनएसजी कमांडो – जिनकी रफ्तार ने आतंक की हड्डियाँ हिला दीं : वे उतरे नहीं—मानो आसमान ने उन्हें भारत की रक्षा के लिए भेजा हो।कमरों में धांय-धांय करती गोलियों के बीच, धुआं, आग, चीखें… और फिर भी कमांडो का एक-एक कदम देश के भरोसे की तरह अटल।
भारत ने उस रात साबित कर दिया – हम बदला लेने वाला देश नहीं, न्याय देने वाली सभ्यता हैं।
26/11 ने हमें कमजोर नहीं किया,
इसने हमारी सुरक्षा, हमारी नीतियों और हमारे संकल्प को
लोहे की तरह मजबूत कर दिया।
दुनिया ने देखा कि भारत आतंक को सिर्फ निंदा से नहीं,
कड़ी कार्रवाई से जवाब देता है।
26/11 का संदेश – भारत को कोई डराकर नहीं रोक सकता।
आतंकी आए… दहशत फैलाने…
लेकिन लौटे क्या?
भारत की शक्ति और एकता का सबक लेकर।
वे सोचते थे भारत टूटेगा, लेकिन भारत और अधिक अखंड, अधिक सजग और अधिक एकजुट हो उठा।
आज 26/11 की बरसी पर – सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं, संकल्प भी जरूरी है। यह संकल्प कि-
- आतंक का कोई रंग नहीं, कोई धर्म नहीं—और कोई माफी नहीं।
- भारत के शहीदों की कुर्बानी को कभी राजनीति की धूल नहीं लगने देंगे।
- भारत की सीमाएं, सुरक्षा और संप्रभुता पर कोई समझौता नहीं होगा।
- और हर भारतीय, चाहे आम नागरिक हो या वर्दीधारी,
राष्ट्र-रक्षा में एकजुट रहेगा।
अंत में…
26/11 की पीड़ा हमारी नसों में दौड़ती है, लेकिन इसी पीड़ा से जन्म लेता है वह भारत जो हर हमले के बाद और ज्यादा शक्तिशाली उठ खड़ा होता है।
भारत अपने शहीदों को सिर्फ याद नहीं करता – उन्हें अपनी आत्मा में धारण करता है।




