
रायपुर। छत्तीसगढ़ का स्कूल शिक्षा विभाग इन दिनों एक बार फिर विवादों में है। वरिष्ठ प्राचार्य और सहायक विकासखंड शिक्षा अधिकारियों की अनदेखी करते हुए बड़ी संख्या में व्याख्याताओं और प्रधान पाठकों को प्रभारी विकासखंड शिक्षा अधिकारी (BEO) बना दिया गया है। विभाग का यह कदम अनुभव और सेवा समर्पण के नाम पर साहसिक बताया जा रहा है, लेकिन यह फैसला न तो विभागीय नियमों से मेल खाता है और न ही अदालत की टिप्पणियों से।
दरअसल, छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा सेवा भर्ती एवं पदोन्नति नियम 2019 साफ कहता है कि बीईओ बनने के लिए कम से कम पांच वर्ष की सेवा प्राचार्य वर्ग-2 या सहायक बीईओ के पद पर अनिवार्य है। व्याख्याताओं को यह पात्रता प्राप्त ही नहीं है। इसके बावजूद शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव के कार्यकाल के शुरुआती महीने में ही नियमों को ताक पर रखकर यह प्रभारवाद थोप दिया गया।
अदालत की स्पष्ट टिप्पणी के बावजूद अनदेखी : तारीखें गवाह हैं कि 18 सितंबर 2024 को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने दयाल सिंह व्याख्याता बनाम राज्य शासन (WPS 8178/2022 व अवमानना याचिका 779/2023) में साफ कहा था कि व्याख्याताओं की नियुक्ति शैक्षणिक कार्यों के लिए है, न कि प्रशासनिक दायित्वों के लिए। न्यायालय ने विभाग से शपथ पत्र मांगते हुए पूछा था कि इस विसंगति से शिक्षा स्तर पर क्या नुकसान हुआ और उसे दूर करने के लिए कौन-से कदम उठाए जा रहे हैं।
इतना ही नहीं, उच्च न्यायालय ने डी.एन. मिश्र, फूलसाय मरावी, बी.एस. बंजारे, मुकेश मिश्रा, महेंद्र धर दीवान, अमर सिंह धृत लहरे, जी.पी. बनर्जी, आलोक सिंह, संतोष सिंह और रमाकांत देवांगन जैसे कई मामलों में भी साफ कर दिया है कि व्याख्याताओं को प्रभारी बीईओ बनाने का निर्णय नियम विरुद्ध है।
सुप्रीम कोर्ट में भी राज्य की ही गवाही : यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी राज्य शासन ने स्पष्ट किया है कि शैक्षणिक और प्रशासनिक दो अलग-अलग कैडर हैं। SLP (C) CC No. 3449/2015, विनोद यादव बनाम छत्तीसगढ़ शासन में शासन ने शपथ पत्र देकर कहा था कि एक कैडर का अधिकारी दूसरे कैडर में नहीं जा सकता। लेकिन विडंबना यह है कि वही शासन अब अपने ही वचनों और नियमों का उल्लंघन कर रहा है।
शिक्षा मंत्री पर उठते सवाल : गजेंद्र यादव पहली बार विधायक बने और अभी एक महीने पहले ही मंत्री। उनके पास विधि-विधायी कार्य मंत्रालय भी है, इसलिए उम्मीद थी कि उनके विभागीय फैसले ज्यादा परखे-तौले होंगे। लेकिन प्रभारवाद का यह नया प्रयोग उनके कार्यकाल की साख पर शुरुआती दाग की तरह चिपक गया है।
वरिष्ठ प्राचार्य और सहायक बीईओ फिलहाल चुप हैं, लेकिन विभाग के भीतर असंतोष गहरा है। वहीं व्याख्याताओं से प्राचार्य पदोन्नति की काउंसलिंग और उच्च वर्ग शिक्षकों की पदोन्नति पहले से ही विवादों में है। अब व्याख्याताओं को प्रभारी बीईओ बनाने का कदम सीधे-सीधे अदालत की चौखट तक मामला ले जाने वाला है।
जशपुर समेत प्रदेश भर की हालत : मुख्यमंत्री के गृह जिले जशपुर सहित कई जिलों में शिक्षा व्यवस्था पहले से चरमराई हुई है। व्याख्याताओं की कमी बनी हुई है, मिशन और प्रशासनिक कामकाज में पहले ही बड़ी संख्या में इन्हें प्रतिनियुक्त किया जा चुका है। नई भर्ती से भी यह कमी पूरी होने की संभावना नहीं है। ऐसे में जब अदालत बार-बार चेतावनी दे चुका है, तब भी विभाग का वही गलती दोहराना सवालों के घेरे में है।
एक तरफ सरकार ‘मोदी गारंटी’ बनाम ‘भूपेश मॉडल’ की राजनीतिक बहस में उलझी है, दूसरी ओर शिक्षा विभाग अपने ही बनाए नियमों पर ठोकर खा रहा है। प्रभारवाद का यह खेल अगर जारी रहा तो मंत्री की पहली बड़ी परीक्षा अदालत में होगी, और छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था को एक और बड़ा झटका लग सकता है।
👉 सवाल यही है कि जब अदालत और सुप्रीम कोर्ट तक साफ कर चुके हैं कि व्याख्याताओं को प्रभारी बीईओ बनाना नियम विरुद्ध है, तो क्या स्कूल शिक्षा मंत्री जानबूझकर विभाग को बार-बार कानूनी संकट में धकेल रहे हैं?




