रेत कारोबार में पारदर्शिता या पूंजीपतियों के लिए नया खेल? – रायगढ़ में ई-नीलामी प्रक्रिया शुरू, पाँच खदानों पर टिकी नज़र…

रायगढ़। छत्तीसगढ़ शासन ने रेत कारोबार में पारदर्शिता लाने के नाम पर ई-नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी है। शासन के नए खनिज (रेत) प्रबंधन नियम 2025 के तहत अब जिले में रेत खदानों का आवंटन पूरी तरह ऑनलाइन माध्यम एमएसटीसी पोर्टल से होगा। रायगढ़ जिले में पहले चरण में 5 रेत खदानों को नीलामी के लिए खोला गया है, जिनमें बरभौना (खरसिया), बायसी (धरमजयगढ़), कंचनपुर (घरघोड़ा), लेबड़ा (रायगढ़) और पुसल्दा (छाल) की खदानें शामिल हैं।
खनिज विभाग का दावा है कि नई प्रक्रिया से पारदर्शिता बढ़ेगी और अवैध उत्खनन पर रोक लगेगी, लेकिन स्थानीय स्तर पर यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या यह नीति वाकई स्थानीय युवाओं, ग्राम पंचायतों और माटी के हकदार लोगों के हित में है, या फिर बड़े ठेकेदारों और बाहरी कंपनियों के लिए नया अवसर?
ई-नीलामी की प्रक्रिया और शर्तें
खनिज अधिकारी रायगढ़ ने बताया कि निविदा की विस्तृत जानकारी विभागीय वेबसाइटों और पंचायत भवनों के सूचना पटल पर उपलब्ध है।
ऑनलाइन निविदा 10 अक्टूबर 2025 को जारी की गई है और 31 अक्टूबर सुबह 10 बजे से 6 नवम्बर शाम 5:30 बजे तक आवेदन जमा किए जा सकेंगे।
आवेदकों को डिजिटल सिग्नेचर (क्लास-3), बैंक खाता, निवास प्रमाण पत्र, जीएसटी नंबर, पैन, आधार कार्ड और दो शपथ पत्र जैसे दस्तावेज़ अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करने होंगे।
बिलासपुर में प्रशिक्षण, कंपनियों पर निगाह
नीलामी प्रक्रिया से संबंधित संभागीय प्रशिक्षण 13 अक्टूबर को दोपहर 2 बजे जल संसाधन विभाग, बिलासपुर में आयोजित होगा। इसमें इच्छुक व्यक्ति, कंपनियां, फर्म या सहकारी समितियों के प्रतिनिधि शामिल हो सकते हैं।
सूत्रों के अनुसार, प्रशिक्षण में पहले से ही कई बड़े कॉन्ट्रैक्टर समूहों ने भाग लेने की तैयारी कर ली है, जबकि कई पंचायत प्रतिनिधि और स्थानीय मजदूर संगठनों ने चिंता जताई है कि “ऑनलाइन नीलामी की तकनीकी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि ग्रामीण स्तर के आवेदक शुरू से ही पिछड़ जाएंगे।”
पारदर्शिता या औपचारिकता?
सरकार का उद्देश्य स्पष्ट है ‘रेत उत्खनन में पारदर्शिता और अवैध खनन पर नियंत्रण’, पर जमीनी हालात बताते हैं कि रेत खदानों की बंदरबांट में स्थानीय हित अक्सर हाशिये पर चले जाते हैं।
धरमजयगढ़, घरघोड़ा और छाल क्षेत्र के आदिवासी ग्रामों से यह आवाज़ उठ रही है कि उन्हें न तो रेत खदानों के पर्यावरणीय प्रभाव का सही आकलन बताया गया, न ही पंचायतों की राय ली गई।
जनता के सवाल अब भी कायम
- क्या ग्राम सभाओं से अनुमति लेकर ही खदानों का आवंटन होगा?
- क्या स्थानीय मजदूरों और ट्रांसपोर्टरों को प्राथमिकता दी जाएगी?
- क्या अवैध खनन रोकने के लिए जिला प्रशासन के पास पर्याप्त निगरानी तंत्र है?
- और सबसे अहम — क्या यह ‘ऑनलाइन पारदर्शिता’ की आड़ में फिर एक बार रेत माफियाओं का राज नहीं बन जाएगी?
ई-नीलामी की यह नई प्रक्रिया छत्तीसगढ़ में रेत कारोबार की दिशा बदल सकती है या फिर, यह भी सिर्फ़ ‘नया नियम, पुराने खिलाड़ी’ वाली कहानी साबित हो सकती है। आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि क्या शासन की यह पहल धरातल पर न्याय और पारदर्शिता ला पाएगी, या फिर आम जनता को सिर्फ लिंक और पोर्टल के चक्कर में उलझा देगी।




