तमनार में अडानी का तानाशाही कब्ज़ा : फर्जी ग्राम सभा, नेताओं की सौदेबाज़ी और लोकतंत्र की बेरहमी से हत्या…

रायगढ़। तमनार की आदिवासी धरती पर गुरुवार को लोकतंत्र शर्मसार हो गया। ग्रामीणों के विरोध, अदालतों की सुनवाई और राजनीतिक पार्टियों के नारे सब बेमानी साबित हुए जब अडानी कंपनी ने अपने अधिकारियों और गुर्गों की फौज के साथ मिलकर मुड़ागांव में जबरन कोयला खदान का भूमिपूजन कर दिया। यह सिर्फ खदान की शुरुआत नहीं, बल्कि जनता की आवाज़ को कुचलकर कॉरपोरेट माफिया राज की उद्घोषणा थी।
फर्जी ग्राम सभा का खेल, जंगल काटने का षड्यंत्र : ग्रामीणों ने साफ कहा है कि खदान के लिए जिस ग्राम सभा का हवाला दिया जा रहा है, वह पूरी तरह फर्जी है। किसी भी प्रभावित गांव में विधिवत ग्राम सभा बुलाई ही नहीं गई। कंपनी ने अपने ही लोगों को “ग्रामीण” बनाकर कागज़ों पर समर्थन दिलवाया और विभागों में पेश कर दिया। यही नहीं, जंगल काटने से पहले भी यही नाटक हुआ और अब खदान का भूमिपूजन भी उसी फर्जीवाड़े की नींव पर हुआ।

नेताओं का दोहरा खेल, जनता के साथ विश्वासघात : शुरुआत में भाजपा नेताओं ने विरोध जताया, फिर जुलाई में कांग्रेस ने प्रदेश स्तर पर बड़ा आंदोलन किया। लेकिन इनका विरोध सिर्फ मंच और मीडिया तक सीमित रहा। धीरे-धीरे अडानी कंपनी ने नेताओं को अपने हिसाब से “सेट” कर लिया। विरोध के नाम पर चल रही राजनीति अब सौदेबाज़ी में बदल गई। नतीजा यह हुआ कि आज जो खदान के खिलाफ सबसे आगे खड़े होने चाहिए थे, वे मौन साधे बैठे हैं।
ग्रामीणों पर दमन, आंदोलन पर हमला : वास्तविक विरोध सिर्फ उन आदिवासी ग्रामीणों का बचा है जिनका घर, खेत और जंगल उजड़ रहा है। अडानी कंपनी ने इन्हीं पर सबसे ज्यादा दमन ढाया है –
- जनचेतना मंच और ग्रामीणों पर फर्जी एफआईआर दर्ज की गई।
- विरोध करने वालों को डराया-धमकाया गया।
- जिन नेताओं और प्रतिनिधियों ने खुलकर विरोध किया, उन्हें पैसे और सत्ता के लालच से चुप करा दिया गया।
यह साफ है कि कंपनी का नियम सिर्फ एक है— “जो बिके नहीं, उसे तोड़ो और कुचल दो।”
तमनार बना माफिया राज की प्रयोगशाला : 9 ग्राम पंचायतों और 14 गांवों में फैला यह कोयला ब्लॉक महाराष्ट्र की बिजली कंपनी महाजेनको को आबंटित हुआ है, जिसका खनन अडानी कंपनी कर रही है। लेकिन इस पूरे क्षेत्र में जो दृश्य सामने है, वह लोकतंत्र नहीं बल्कि कॉरपोरेट माफिया राज है। जंगल कटे, झूठे दस्तावेज़ बने, विरोध कुचला गया और अब फर्जी भूमिपूजन करके कंपनी ने दिखा दिया कि उसके लिए कानून और लोकतंत्र की कोई हैसियत नहीं है।
ग्रामीण पूछ रहे हैं-
- जब सत्ता, विपक्ष और पंचायतें तक विरोध कर चुकी हैं, तो आखिर किसके दम पर कंपनी जबरन खदान शुरू कर रही है?
- क्या आदिवासियों का संवैधानिक हक़—ग्राम सभा की सहमति—अब सिर्फ कागज़ की औपचारिकता रह गया है?
- क्या यह घटना साबित नहीं करती कि सरकारें बदलती हैं, लेकिन असली सत्ता कॉरपोरेट घरानों के हाथ में है?
लोकतंत्र की कब्र पर भूमिपूजन : तमनार में जो हुआ, वह सिर्फ कोयला खदान की शुरुआत नहीं थी। यह लोकतंत्र, संवैधानिक अधिकारों और आदिवासी अस्तित्व की कब्र पर किया गया भूमिपूजन था।
👉 यहां साफ है-
- न अदालत की परवाह,
- न ग्राम सभा की मान्यता,
- न जनता की सहमति।
सिर्फ पैसे, ताक़त और गुंडागर्दी के दम पर अडानी कंपनी ने यह संदेश दे दिया है कि अब भारत में जनता नहीं, कॉरपोरेट ही असली मालिक हैं।




