रायपुर

अंबिकापुर से रायपुर तक – एक पत्रकार का सफ़र, एक साज़िश की पटकथा…

विशेष रिपोर्ट | सत्ता बनाम कलम
“रायपुर सेंट्रल की दीवारें – सत्ता की सबसे बड़ी साज़िश”
लेखक: कुमार जितेन्द्र
(आधारित सन् 2022 की घटनाओं पर)

अध्याय 4 :

“अंबिकापुर की दीवारों ने मुझे सच दिखाया था, रायपुर की दीवारों ने मुझे सिस्टम की रूह दिखाई।”
— कुमार जितेन्द्र

सन् 2022 की शुरुआत छत्तीसगढ़ में उम्मीदों और असंतोष, दोनों के संग हो रही थी। 2021 में पुलिस परिवारों के संघर्ष ने सरकार को झुकाया था – करीब दो हज़ार सहायक आरक्षकों को आरक्षक पद पर सम्मिलित करने की माँग आखिरकार पूरी हुई थी। उस वक्त “भारत सम्मान” की टीम ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुखता से उठाया था।
लेकिन 2022 में वही टीम, वही कलम और वही जज़्बा – अब सत्ता की आँखों में चुभने वाला कांटा बन चुका था।

“शांत मौसम से पहले का तूफ़ान” : नई सुबहें उम्मीदों से भरी थीं, पर सत्ता के गलियारों में कुछ और पक रहा था। फोन की रिंग्स कम होने लगीं, चेहरे ठंडे पड़ने लगे, और अचानक जैसे हवा में कोई अदृश्य डर तैरने लगा। कुमार जितेन्द्र समझ चुके थे –

“अबकी बार खेल राजधानी में होगा।”

और हुआ भी।

10 जनवरी 2022 – आंदोलन की गूंज और सत्ता का डर : रायपुर में छत्तीसगढ़ पुलिस परिवार की 10 सूत्रीय मांगों को लेकर विशाल प्रदर्शन का आह्वान हुआ। पत्रकार कुमार जितेन्द्र पहले से सूचित थे। वे एक न्यायिक अधिकारी के निजी मकान में ठहरे थे, जिनके भाई हाईकोर्ट में अधिवक्ता थे।

लेकिन रात ढाई बजे इतिहास ने करवट ली।
दरवाज़ा खुला – और 15–20 पुलिसकर्मी अंदर घुस आए
कोई वारंट नहीं, कोई सवाल नहीं। बस आदेश और गिरफ्तारी।

“चलो।” -यही एक शब्द बोला गया।

बाहर 25–30 पुलिस गाड़ियाँ, आंदोलन से जुड़े चेहरे,
– उज्ज्वल दीवान, संतोष, नवीन, संजीव मिश्रा –
सभी को अलग-अलग वाहनों में बैठाया जा रहा था।
दृश्य बिल्कुल किसी फ़िल्मी छापे जैसा था,
बस फर्क इतना था — यहाँ निर्देशक सत्ता थी और स्क्रिप्ट डर की।

“अबकी बार जेल निश्चित है” : अलग-अलग थानों में बाँटने के बाद एक वकील मित्र ने कान में कहा –

“सरकार रैली को कुचलना चाहती है।
आपको इसलिए उठाया गया है, ताकि आवाज़ न बने।”

थोड़ी देर बाद उन्हें छोड़ दिया गया, लेकिन कुमार जितेन्द्र वहीं रोक लिए गए।
शाम होते मेडिकल हुआ –
और यह तय हो गया कि अब मंज़िल रायपुर सेंट्रल जेल है।

“तब भी सच के कारण जेल गया था…
आज भी सच ही साथ है।”

रायपुर सेंट्रल जेल – सत्ता की दीवारों के पीछे का खेल : जेल का लोहे का दरवाज़ा खुला, नाम पुकारा गया – और वे एक बार फिर कैद में थे। लेकिन इस बार कैद सिर्फ दीवारों में नहीं, सत्ता की नज़रों में थी।

कुछ कैदी फुसफुसाए –

“ये वही पत्रकार है…”

एक जेल अधिकारी धीमे स्वर में बोला –

“पहचानता हूँ आपको… सुरक्षा दूँगा, लेकिन यहाँ खेल बड़ा है। सावधान रहिए।”

कुमार समझ गए –
यहाँ नज़रें भी आदेश में बंधी हैं, और खामोशी भी साज़िश का हिस्सा है।

झूठ का साम्राज्य – जब कलम अपराध बन जाए

कुमार के खिलाफ धारा 151, 107/16 लगाई गई –
जन आंदोलन को अपराध बताने का सरकारी खेल।

“जिस कागज़ पर मेरी हाज़िरी लेनी थी,
उसमें सच्चाई नहीं, सत्ता की स्याही से लिखा झूठ था।”

उन पर आरोप था कि उन्होंने पुलिस परिवारों के आंदोलन को भड़काया।
लेकिन असल मकसद था – उनकी कलम तोड़ना, आवाज़ बंद करना।

“यह जेल राजनीति से सांस लेती है” : रातें लंबी थीं, और सन्नाटा भी सोचा-समझा हुआ।
एक कैदी ने चेताया –

“यहाँ ज्यादा बोलना ख़तरे में डाल देता है।”

कुमार ने फैसला किया –

“बोलना कम, लिखना ज़्यादा।
चाहे दीवारों पर ही क्यों न लिखना पड़े।”

सत्ता का सबसे बड़ा हथियार यहाँ था –
मनोवैज्ञानिक हमला
ना गोली, ना बंदूक – बस डर, और चुप्पी की व्यवस्था।

रिहाई- लेकिन कहानी खत्म नहीं हुई

14 जनवरी 2022 – अदालत से जमानत मिली।
जेल से बाहर निकलते ही उन्हें लगा –
“हवा तक आज़ाद है।”

दोस्तों ने कहा –

“अब छोड़ दो ये सब। बहुत हो गया।”

उन्होंने हँसकर जवाब दिया –

“अगर सच बोलने की सज़ा जेल है,
तो मिशन सही है।”

बाहर आकर पता चला –
सरकार ने अन्य आंदोलनकारियों पर पुलिस विद्रोह अधिनियम की धारा 3 लगा दी है।
उन्हें भी फँसाने की पूरी योजना थी, लेकिन तभी अंतरराष्ट्रीय मंच पर भूचाल आ गया।

दुनिया ने देखा और सत्ता को झुकना पड़ा : अमेरिका स्थित संस्था Committee to Protect Journalists (CPJ) ने कुमार जितेन्द्र की गिरफ्तारी को “अवैध और प्रेस-फ्रीडम का उल्लंघन” बताया।

इस रिपोर्ट के बाद
देशभर के प्रमुख अंग्रेज़ी मीडिया,
जैसे The Hindu, Indian Express, The Wire, Scroll, Times Now आदि ने खबर को उठाया।
सोशल मीडिया पर पत्रकार संगठनों, राजनीतिक दलों और नागरिकों ने विरोध जताया।

सत्ता को झुकना पड़ा –
और उन्हें रिहा करना पड़ा।

“क्योंकि कलम चुप नहीं थी,
और जनता गवाह थी।”

लेकिन साज़िश का दूसरा अध्याय बाकी था…

8 अप्रैल 2022
दरवाज़े फिर खुले, साज़िश फिर लौटी,
और कुमार जितेन्द्र फिर जेल की ओर बढ़े।

यह शुरुआत थी उस अध्याय की
जहाँ उन्होंने लिखा –

“इस बार मैं बंदी नहीं, इंसानों से मिला।”

⚖️ क्रमशः…

अगला अध्याय
“फिर से जेल जहाँ बंदी नहीं, इंसान मिले”
वर्ष 2022 की दूसरी कैद की कहानी –
जहाँ मन टूटा नहीं, बल्कि और मज़बूत हुआ।

Admin : RM24

Investigative Journalist & RTI Activist

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