
• श्रम न्यायालय में पेश हुए चालान, मजदूर सुरक्षा नियमों की धज्जियाँ उड़ाने का आरोप…
रायगढ़, 2 अक्टूबर। रायगढ़ के बड़े उद्योग एक बार फिर मज़दूरों की सुरक्षा और कानूनी प्रावधानों को ताक पर रखकर मुनाफ़ाखोरी में डूबे नज़र आ रहे हैं। औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग की सख़्त कार्रवाई में जेएसपीएल, एनआर इस्पात, जेएसडब्ल्यू, स्काईएलॉयज, एसएस स्टील एंड पावर, सिंघल स्टील और सालवी इंटरप्राइजेज सहित कुल छह उद्योगों के खिलाफ लेबर कोर्ट रायगढ़ में प्रकरण दर्ज किए गए हैं।
उप संचालक राहुल पटेल ने बताया कि कारखानों में हुई दुर्घटनाओं और निरीक्षण के दौरान सामने आए गंभीर उल्लंघनों पर यह कार्रवाई की गई है। आरोप है कि इन कंपनियों ने कारखाना अधिनियम 1948, छत्तीसगढ़ कारखाना नियमावली 1962 और भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार अधिनियम 1996 की धाराओं का जमकर उल्लंघन किया।
किस उद्योग पर क्या आरोप? –
- जेएसपीएल (Unit-2): अधिभोगी सब्यसाची बन्द्योपाध्याय और प्रबंधक ललित गोयल पर कारखाना अधिनियम 1948 की धारा 112 और नियम 131(2) के उल्लंघन का आरोप।
- एसएस स्टील एंड पावर, पाली: अधिभोगी अशोक अग्रवाल और प्रबंधक आयुष अग्रवाल पर धारा 7ए(2)(C), 32, 33 और धारा 6-7 के तहत कार्रवाई।
- एनआर इस्पात एंड पावर, गौरमुड़ी: मोहित मिश्रा पर धारा 7A(2)(A), धारा 41 व नियम 73(1) का उल्लंघन।
- स्काईएलॉयज एंड पावर, टेमटेमा: विकास अग्रवाल पर धारा 7A(2)(D), 7A(2)(A), धारा 41 सहपठित नियम 73(1)।
- जेएसडब्ल्यू स्टील, नाहरपाली: गजराज सिंह राठौर व राजकुमार पटेल पर धारा 7A(2)(D), 7A(2)(A), 41, 7A(2)(C) के तहत मामला।
- सिंघल स्टील एंड पावर, तराईमाल और सालवी इंटरप्राइजेज, प्रयागराज: संचालकों पर भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार अधिनियम 1996 की धारा 40, 44 और नियम 42 के उल्लंघन का आरोप।
सवाल खड़े करती लापरवाही : रायगढ़ के इन उद्योगों में मज़दूरों की मौत और दुर्घटनाएँ कोई नई बात नहीं। बार-बार हादसों के बावजूद प्रबंधन सुरक्षा उपायों को लागू करने के बजाय नियमों की अनदेखी करता रहा। ताज़ा कार्रवाई ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बड़े उद्योग मज़दूरों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं और सरकारी नियम इनके लिए सिर्फ़ कागज़ी औपचारिकता रह गए हैं।
अगली सुनवाई में तय होगी जवाबदेही : अब देखना होगा कि लेबर कोर्ट की कार्यवाही में इन उद्योगपतियों और प्रबंधकों की ज़िम्मेदारी कैसे तय होती है और क्या मज़दूरों को न्याय मिलेगा या यह कार्रवाई भी खानापूर्ति बनकर रह जाएगी।




