
जांजगीर-चांपा। जिले का परिवहन कार्यालय जनता की सेवा का केंद्र बनने के बजाय भ्रष्टाचार और दलाली का गढ़ बन चुका है। स्थिति इतनी भयावह है कि बिना दलालों की जेब गर्म किए यहां एक साधारण कार्य भी कराना लगभग असंभव हो गया है।
दलालों की जकड़ में व्यवस्था : कार्यालय में ऐसा मजबूत नेटवर्क तैयार हो चुका है कि सीधा आवेदन करने वाला आवेदक महीनों तक चक्कर काटता रह जाता है। पहली बार लाइसेंस बनाने पहुंचे युवाओं को लंबी कतारों, कागजी पेचिदगियों और जानबूझकर खींची गई प्रक्रियाओं में उलझाकर थका दिया जाता है। वहीं, दलालों की जेब में चढ़ावा चढ़ाते ही वही काम चुटकियों में निपटा दिया जाता है।
गरीब और ग्रामीण सबसे बड़ी ठगी के शिकार : गांव और दूर-दराज़ से आने वाले लोग इस भ्रष्ट तंत्र का सबसे बड़ा शिकार बनते हैं। एक साधारण ड्राइविंग लाइसेंस, जिसके लिए सरकार ने तयशुदा फीस निर्धारित कर रखी है, दलालों के कारण दोगुनी-तिगुनी कीमत पर बन रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के युवा दलालों की जेब भरने को मजबूर हैं।
सरकारी तंत्र पर अविश्वास : कई बार चक्कर लगाने के बाद हार मानकर लोग दलालों की शरण में जाते हैं। यह मजबूरी न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है बल्कि जनता के मन में सरकारी तंत्र के प्रति गहरा अविश्वास भी पैदा कर रही है।
प्रशासन की खामोशी – सबसे बड़ा सवाल :सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि परिवहन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस सब पर आंख मूंदे बैठे हैं। दलाल खुलेआम कार्यालय परिसर में सक्रिय हैं, फिर भी जिम्मेदार अफसरों की चुप्पी इस बात का सबूत है कि बिना मिलीभगत के इतना बड़ा खेल संभव ही नहीं। सवाल यह है कि जब अवैध गतिविधियां खुलेआम हो रही हैं, तो प्रशासन क्यों मौन है?
तुरंत कार्रवाई की मांग :
- दलालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
- ऑनलाइन प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी और सरल बनाया जाए।
- ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाकर दलाल प्रथा पर रोक लगाई जाए।
- दोषी कर्मचारियों की जवाबदेही तय कर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
जिला जांजगीर-चांपा परिवहन कार्यालय में दलालों का बोलबाला जनता की जेब पर डाका और युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ है। जब तक दलाल प्रथा खत्म नहीं होगी, तब तक पारदर्शी और भ्रष्टाचारमुक्त व्यवस्था की उम्मीद करना बेमानी है। अब सवाल यह है कि प्रशासन कब जागेगा और जनता को राहत कब मिलेगी?




