
• “8 दिसंबर को धौराभांटा बनेगा ‘कुरुक्षेत्र’ ! प्रशासन ने लिखी पटकथा, लेकिन क्लाइमेक्स लिखेगी जनता!”…
रायगढ़/तमनार (अंडरग्राउंड रिपोर्ट) : कल 8 दिसंबर 2025 का सूरज रायगढ़ में रोशनी लेकर नहीं, बल्कि बारूद की गंध लेकर उगेगा। धौराभांटा की जिस पवित्र धरती पर किसान हल चलाते थे, वहां कल जिंदल और प्रशासन मिलकर संविधान की धज्जियां उड़ाने का ‘लाइव शो’ करने जा रहे हैं।

यह महज एक जनसुनवाई नहीं है, यह ‘खाकी’ और ‘खादी’ का ‘कॉरपोरेट’ के साथ हुआ वो नापाक गठबंधन है, जिसने तमनार के जल-जंगल-जमीन की नीलामी तय कर दी है।
“प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल : यह ‘जन-राज’ है या ‘कंपनी-राज’?” रायगढ़ कलेक्ट्रेट अब कलेक्ट्रेट नहीं रहा, वह ‘जिंदल पावर लिमिटेड’ का एक्सटेंशन काउंटर बन चुका है।
- सीधी ललकार : जिन अधिकारियों की तनख्वाह जनता के टैक्स से आती है, वे आज कंपनी के ‘बाउसर्स’ की तरह क्यों बर्ताव कर रहे हैं?
- जनसुनवाई रद्द होने के बाद दोबारा उसी जिद के साथ जनता के सीने पर मूंग दलने आना बताता है कि सिस्टम की आंखों का पानी मर चुका है। कल धौराभांटा में अधिकारी ‘जनता की सुनने’ नहीं, बल्कि ‘मालिक का हुक्म बजाने’ आ रहे हैं।
पुलिसिया बूटों तले ‘पेसा कानून’ : संविधान की 5वीं अनुसूची? पेसा कानून? ग्राम सभा का अधिकार? सब झूठ है!
धौराभांटा में कल कानून का राज नहीं, बल्कि ‘डंडे का राज’ चलेगा। गांव को पुलिस छावनी बनाकर, लोहे की जाली और कंटीले तारों से घेरकर यह कैसी जनसुनवाई?
- क्या ग्रामीणों को अपनी ही जमीन पर जाने के लिए वीजा लेना पड़ेगा?
- यह जनसुनवाई नहीं, यह ‘ओपन जेल’ है जहां आदिवासियों को कैद करके उनकी जमीन छीनी जाएगी।
“कफन बांधकर निकलेंगे, पर इंच भर जमीन नहीं देंगे” : तमनार के हर घर से अब एक ही आवाज आ रही है- “जान ले लो, पर जमीन मत मांगना।”
जिंदल की चिमनियों से निकलने वाला काला धुआं अब लोगों के फेफड़ों में नहीं, बल्कि उनके खून में आक्रोश बनकर दौड़ रहा है।
- गारे पेलमा सेक्टर-1 सिर्फ एक खदान नहीं, बल्कि इस क्षेत्र के विनाश का वारंट है। और कल ग्रामीण इस वारंट को प्रशासन के मुंह पर फाड़कर फेंकने के लिए तैयार हैं।
जिंदल की ‘भूख’ और प्रशासन की ‘चुप्पी’ : कंपनी को मुनाफा चाहिए, प्रशासन को वाहवाही चाहिए, और जनता को क्या मिलेगा? सिर्फ राख, बीमारी और विस्थापन की ठोकरें!
- यह विकास का मॉडल नहीं है, यह ‘भस्मासुर’ है जो पूरे रायगढ़ को निगल जाएगा। प्रशासन को लगता है कि वह डराकर जीत जाएगा, लेकिन वे भूल गए हैं कि “जब सड़कों पर अवाम आती है, तो बड़े-बड़े तख्त हिल जाते हैं।”
अंतिम चेतावनी : कल इतिहास लिखा जाएगा – 8 दिसंबर को धौराभांटा में अगर एक भी लाठी उठी, अगर एक भी ग्रामीण का अपमान हुआ, तो उसकी गूंज रायपुर से लेकर दिल्ली तक जाएगी।
- प्रशासन कान खोलकर सुन ले: यह 2025 है, 1857 नहीं। जनता अपना हक मांगना जानती है और छीनना भी।
कल फैसला होगा – कि रायगढ़ ‘जनता’ का है या ‘जिंदल’ का!
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