सूरजपुर

सात साल पुरानी फाइलों का तांडव : तीन-तीन आदेश, एक ही वसूली!…फाइलों से निकली ‘नई गड़बड़ी’, लेकिन बड़े अफसरों पर कार्रवाई शून्य…

• नया खुलासा : विभाग ने एक ही मामले में तीन अलग-अलग तारीखों पर तीन आदेश जारी किए!…

सूरजपुर। जिले के भैयाथान जनपद द्वारा जारी आदेश 15 अक्टूबर, 31 अक्टूबर और 6 नवंबर 2025 के तीन अलग-अलग आदेशों ने पूरे इलाके में तहलका मचा दिया है। तीनों आदेशों में एक ही व्यक्ति =ग्राम बरौधी के तत्कालीन सचिव संजय गुप्ता को ₹1,11,900 की वसूली का नोटिस जारी किया गया है।

सबसे चौंकाने वाली बात-
तीनों आदेशों में भाषा अलग है, क्रमांक अलग है, तारीख अलग है,
लेकिन राशि वही है, आरोप वही हैं, और निशाना भी वही।

यह प्रशासनिक कार्रवाई है या केवल दबाव बनाने की रणनीति?सात साल तक फाइलें धूल खाती रहीं… और अब एक साथ तीन-तीन नोटिस? जनता पूछ रही – यह जांच है या उत्पीड़न?…

नरेगा वर्ष 2017–18 के सामाजिक अंकेक्षण के आधार पर विभाग ने दावा किया है कि फर्जी उपस्थिति भरकर भुगतान किया गया।
पर बड़ा सवाल—

अगर घोटाला था, तो सात साल तक विभाग कहाँ सो रहा था? – सात साल पहले हुए काम की जांच, सत्यापन, स्वीकृति, भुगतान—
सब कुछ अधिकारियों की परतों से होकर पास हुआ था। लेकिन सात साल तक किसी अफसर को गड़बड़ी नहीं दिखी?

अब अचानक-
15 अक्टूबर को पहले नोटिस,
फिर 31 अक्टूबर को दूसरा,
और 6 नवंबर को तीसरा नोटिस?

क्या सचमुच सात साल बाद अचानक ‘न्याय का भाव जाग गया’,
या फिर किसी स्तर पर बचाव करते-करते अब सचिव को ही आसान लक्ष्य बना दिया गया है?

तीनों आदेशों से उजागर- विभाग की घोर लापरवाही या सुनियोजित दबाव? – तीनों पत्रों में एक जैसा लिखा गया है:

  • सामाजिक अंकेक्षण में फर्जी मजदूर उपस्थिति पाई गई
  • ₹1,11,900 की वसूली की जानी है
  • पांच दिन के भीतर राशि जमा करनी होगी
  • SBI रायपुर के खाते में राशि जमा न करने पर कार्रवाई

लेकिन तीन आदेश क्यों?

  • क्या पहला आदेश गलत था?
  • क्या दूसरा आदेश दबाव के लिए था?
  • क्या तीसरा आदेश किसी अदृश्य हाथ की देन है?

सबसे बड़ा सवाल : सत्यापन और स्वीकृति पर बैठे अफसर कहाँ हैं?
उनकी जिम्मेदारी कौन तय करेगा? –  नरेगा कार्य प्रक्रिया में :

  • उपयंत्री
  • कार्यक्रम अधिकारी
  • तकनीकी सहायक
  • जनपद स्तरीय अधिकारी
  • SDO
  • सीईओ जनपद

इन सबकी मुहर के बिना एक भी रुपया जारी नहीं हो सकता।

तो सवाल उठते हैं:

  • माप पुस्तिका किसने भरी?
  • सत्यापन किसने किया?
  • भुगतान को किसने पास किया?
  • किस अधिकारी ने सात साल तक फाइलें दबाकर रखीं?
  • और अब केवल सचिव से ही वसूली क्यों?

तीनों नोटिसों में अधिकारियों के नाम नहीं-
अधिकारियों की जिम्मेदारी नहीं-
सिर्फ एक लाइन में लिखा है: “आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।”

क्या विभाग के लिए ‘जिम्मेदारी’ सिर्फ सचिवों के लिए ही आरक्षित है?

जनपद और जिला स्तर की भूमिका संदिग्ध— पर विभाग खामोश क्यों? – तीनों आदेशों में कहीं भी यह नहीं बताया गया कि:

  • सामाजिक अंकेक्षण टीम ने किस अधिकारी की गलती पाई
  • किसने गलत सत्यापन किया
  • किसने भुगतान स्वीकृत किया
  • किस अफसर की लापरवाही से सात साल तक कार्रवाई नहीं हुई

सबसे हैरानी की बात- तीनों आदेशों में एक भी वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई का जिक्र तक नहीं।

क्या विभाग केवल कमजोर कर्मचारियों पर कार्रवाई करके
ऊपर की परतों में छिपे असली जिम्मेदारों को बचा रहा है?

तीन आदेशों का सीधा संकेत— सचिव को बलि का बकरा बनाया जा रहा!

तीन आदेश
एक ही मामला
एक ही राशि
एक ही लक्ष्य

यह बताता है कि :

  • ➤ विभाग दबाव बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहा है
  • ➤ वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका को जानबूझकर छिपाया जा रहा है
  • ➤ जांच निष्पक्ष नहीं, दिशाहीन दिखाई देती है
  • ➤ निचले कर्मचारियों पर हथौड़ा, बड़े अफसरों पर सन्नाटा

जब तक जांच में हर स्तर का अफसर शामिल नहीं होगा, यह वसूली न्याय नहीं-एक ‘परंपरा’ बनती जाएगी।

जनता पूछ रही, साहब कब जागोगे :

  • “क्या सचिव ही हमेशा विभागीय लापरवाही का बोझ उठाता रहेगा?”
  • “क्या तीन-तीन आदेशों के पीछे कोई अदृश्य धंधेबाज़ दबाव काम कर रहा है?”
  • “क्या विभाग बड़ी मछलियों को बचाकर छोटी कड़ियों पर ही वसूली थोपता रहेगा?”

Admin : RM24

Investigative Journalist & RTI Activist

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!