स्पेशल रिपोर्ट : लाल आतंक का ‘रक्ताभ’ संदेश; 2026 के ‘डेथ वारंट’ के बीच बस्तर में लोकतंत्र ‘नजरबंद’…

बीजापुर। ग्राउंड जीरो से : छत्तीसगढ़ में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के “मार्च 2026 तक नक्सल मुक्त भारत” के ऐलान और बस्तर के जंगलों की जमीनी हकीकत के बीच खून की एक नई और गहरी लकीर खींच दी गई है। बीजापुर के पामेड़ इलाके में रविवार (7 दिसंबर 2025) को एक सड़क ठेकेदार का गला रेतकर नक्सलियों ने यह साफ कर दिया है कि ‘माड़’ (नक्सलियों का गढ़) में भले ही सुरक्षाबल घुस चुके हों, लेकिन सड़कों और बस्तियों में अब भी उनकी ‘समानांतर सरकार’ का खौफ जिंदा है।
यह रिपोर्ट सिर्फ एक हत्या की नहीं, बल्कि उस दहशत की है जहाँ एक भाई अपने मृतक भाई की तस्वीर दीवार पर टांगने से डरता है, और सत्ताधारी पार्टी के नेता रात होते ही ‘शरणार्थी’ बनकर सीआरपीएफ कैंप की शरण लेते हैं।
जंगल में ‘कंगारू कोर्ट’ : वफादारी की कीमत ‘सिर’ देकर चुकाई – बीजापुर के पामेड़ थाना क्षेत्र में सन्नाटा उस वक्त चीख में बदल गया, जब सड़क ठेकेदार इम्तियाज अली का क्षत-विक्षत शव जंगल में मिला।
- बर्बरता की हद : नक्सलियों ने पहले सड़क निर्माण में लगे जेसीबी मुंशी (सुपरवाइजर) का अपहरण किया। आमतौर पर दहशत के मारे लोग भाग जाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश निवासी ठेकेदार इम्तियाज अली अपने कर्मचारी को मौत के मुंह से निकालने के लिए खुद जंगल की ओर चले गए।
- नतीजा : नक्सलियों ने मुंशी को तो छोड़ दिया, लेकिन ‘विकास’ का चेहरा बने इम्तियाज अली को नहीं बख्शा। पहले उन्हें बंधक बनाकर पीटा गया और फिर गला रेतकर हत्या कर दी गई।
- संदेश : यह हत्या सुरक्षाबलों के लिए सीधी चुनौती है- “अगर सड़क बनाओगे, तो कफन तैयार रखना।” पुलिस ने शव बरामद कर सर्च ऑपरेशन तेज कर दिया है, लेकिन डर अपनी जगह कायम है।
‘हिट लिस्ट’ का खौफ : 30 महीनों में 20 हत्याएं : आंकड़े गवाह हैं कि नक्सलियों ने अब अपनी रणनीति बदल दी है। सीधे सुरक्षाबलों से लड़ने (जिसमें उन्हें भारी नुकसान हो रहा है) के बजाय वे अब ‘सॉफ्ट टारगेट’ (Soft Targets) चुन रहे हैं।
- टार्गेटेड किलिंग : पिछले ढाई सालों (2023-2025) में बस्तर संभाग में 10 भाजपा नेताओं और 10 शिक्षादूतों की हत्या की गई है।
- प्रमुख शिकार: नीलकंठ कक्केम, सागर साहू, रतन दुबे, और अर्जुन काका जैसे जमीनी नेताओं को उनके घरों या बाजारों में मौत के घाट उतारा गया। मकसद साफ है- राजनीतिक नेतृत्व को खत्म कर दो, विकास और लोकतंत्र अपने आप घुटने टेक देगा।
आवापल्ली का ‘पॉलिटिकल नाइट शेल्टर’ : जहाँ रात काटने आते हैं नेता – बीजापुर से 35 किमी दूर आवापल्ली में सड़क किनारे बना एक टिन का शेडनुमा मकान इस समय बस्तर की राजनीति का सबसे लाचार प्रतीक है। यह घर जिला पंचायत अध्यक्ष जानकी कोरसा का है, जो ठीक CRPF कैंप के सामने है।
- सूरज ढलते ही बदलता है मंजर : जैसे ही शाम होती है, इलाके के भाजपा मंडल अध्यक्ष, महामंत्री और सक्रिय कार्यकर्ता अपने आलीशान पक्के मकानों को गांवों में सूना छोड़कर यहाँ जमा होने लगते हैं।
- शरणार्थी जैसी रातें : दिन में जिस नेता के पीछे भीड़ चलती है, वही नेता रात को यहाँ चटाई पर या दीवार से टेक लगाकर सोता है। उनकी नींद सिर्फ सामने खड़े संतरी के भरोसे होती है।
- हकीकत : गांव में उनका घर ‘मौत का पिंजरा’ है, जबकि यह टिन का शेड ‘जीवन की उम्मीद’।
खौफ का मनोविज्ञान : “भाई की तस्वीर भी हटा दी” – नक्सली दहशत किस कदर दिलों में घर कर गई है, इसकी बानगी पेंकरम गांव में मिलती है।
- घटना : 5 फरवरी 2023 को भाजपा नेता नीलकंठ कक्केम की हत्या उनकी पत्नी और बच्चों के सामने कुल्हाड़ी से काटकर की गई थी।
- आज का सच : उनके भाई गजेंद्र कक्केम ने घर की दीवार से नीलकंठ की तस्वीर तक उतार दी है। “भाई की याद आती है तो छुपकर आवापल्ली जाकर फोटो देख लेता हूं। घर में फोटो रखने की हिम्मत नहीं है। डर है कि नक्सली अगर दोबारा आए और फोटो देखी, तो कहेंगे तुम अब भी उसे याद करते हो… और फिर पूरे परिवार को मार देंगे।” – गजेंद्र (मृतक का भाई)
- उन्हें ‘X’ श्रेणी की सुरक्षा मिली है और घर के बाहर 5 जवान 24 घंटे तैनात रहते हैं।
- लेकिन यह सुरक्षा उन्हें आजाद नहीं करती। अगर उन्हें पार्टी के काम से किसी अंदरूनी गांव में जाना हो, तो 24 घंटे पहले पुलिस मुख्यालय को सूचना देनी पड़ती है।
- रायडू कहते हैं, “हम बुलेटप्रूफ जैकेट तो पहन सकते हैं, लेकिन डर हमारे मन के अंदर बैठा है। 2016 में मेरे ही घर में नक्सलियों ने मेरे भाई को मार डाला था।”
2026 की जंग और आज का रक्तपात : बस्तर इस समय एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। एक तरफ ‘ऑपरेशन कगार’ के तहत सुरक्षाबल नक्सलियों को उनकी मांद में घुसकर मार रहे हैं (दिसंबर की शुरुआत में ही 7-8 नक्सली ढेर हुए), तो दूसरी तरफ बौखलाए नक्सली ‘मरता क्या न करता’ की तर्ज पर इम्तियाज अली जैसे निहत्थे लोगों का गला रेत रहे हैं।
सरकार का दावा है कि मार्च 2026 तक नक्सलवाद खत्म हो जाएगा। लेकिन बीजापुर के जंगलों से आती बारूद की गंध और भाजपा नेताओं की ये ‘शरणार्थी वाली रातें’ बताती हैं कि यह लड़ाई अभी लंबी और और भी खूनी हो सकती है।
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