पत्थलगांव राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार का अनोखा खेल : एसडीएम का ड्राइवर बना ‘राजस्व बाबू’, सत्ता और सिस्टम के बीच भ्रष्टाचार का सेतु!…

जशपुर। पत्थलगांव का राजस्व विभाग एक बार फिर सुर्खियों में है — वजह वही पुरानी, भ्रष्टाचार, दबाव और सिस्टम की खामोश मिलीभगत!
यहां एक ड्राइवर, जी हां, एसडीएम का ड्राइवर लम्बोदर यादव, खुलेआम राजस्व विभाग का ‘बाबू’ बनकर फाइलें निपटा रहा है, वसूली कर रहा है और आदेश तक लिखवाने की ताकत दिखा रहा है।

ड्राइवर या दरबारी? सिस्टम की सच्चाई उजागर करती कहानी! सूत्रों के अनुसार, पत्थलगांव एसडीएम कार्यालय में पदस्थ ड्राइवर लम्बोदर यादव लंबे समय से चर्चाओं में है। कभी जमीन डायवर्सन के नाम पर वसूली का आरोप, तो कभी पेशी और फाइल पास कराने के नाम पर मोटी रकम लेने की बात सामने आई है। आम नागरिकों से लेकर पेशकारों तक का कहना है कि “ड्राइवर बाबू बिना पैसे के कलम नहीं चलाते, और बिना ‘इशारे’ के कोई काम नहीं होता!”
लगातार शिकायतें -पर कार्रवाई शून्य! : कई बार शिकायतें होने के बावजूद प्रशासनिक कार्रवाई का अभाव यह बताने के लिए काफी है कि
“ड्राइवर बाबू पर किसी बड़े अफसर का हाथ है।” एसडीएम कार्यालय में एक ड्राइवर का इस कदर दबदबा होना न केवल विभागीय मर्यादा के खिलाफ है, बल्कि शासन की साख पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।
लोग पूछ रहे हैं –
“क्या मुख्यमंत्री के गृह जिले जशपुर में कानून सिर्फ आम जनता के लिए है? अफसरों के दरबारी अछूत क्यों हैं?”
सवालों के घेरे में पूरा तंत्र :
- आखिर कौन है एसडीएम का ‘निडर ड्राइवर’?
- किस अधिकारी का हाथ है इस ड्राइवर बाबू के सिर पर?
- किसके संरक्षण में एक ड्राइवर राजस्व फाइलें निपटा रहा है?
- कब खुलेगी अधिकारियों की आंखों पर बंधी पट्टी?
- आम आदमी कब तक भ्रष्ट ड्राइवर बाबू के सामने नतमस्तक रहेगा?
- मुख्यमंत्री के गृह जिले में क्यों बेखौफ घूम रहा है यह ‘ड्राइवर-बाबू’?
वर्जन – लम्बोदर यादव (ड्राइवर)
“मेरे ऊपर लगाए गए सभी आरोप बेबुनियाद हैं। मैंने किसी से कोई वसूली नहीं की है।”
वर्जन – रितुराज सिंह बिसेन (एसडीएम, पत्थलगांव)
“मुझे इस संबंध में पहली बार आपके माध्यम से जानकारी मिली है। ऑफिस पहुंचने के बाद ही मैं स्थिति स्पष्ट कर पाऊंगा।”
वर्जन – रुद्र कुमार यादव (आवेदक)
“हमारे जमीन डायवर्सन के नाम पर एसडीएम के ड्राइवर लम्बोदर यादव ने 60 हजार रुपए की मांग की थी।
हमने इसकी लिखित शिकायत कलेक्टर साहब से की। उन्होंने कहा कि पैसा नहीं लगेगा, काम हो जाएगा।
सबूत के तौर पर वीडियो या रिकॉर्डिंग नहीं थी, इसलिए कलेक्टर ने कहा कि आप जाइए, आपका काम हो जाएगा- और सच में काम हो गया।”
प्रशासनिक मर्यादा का मज़ाक : जब राजस्व विभाग का ड्राइवर ही ‘बाबू’ बन जाए,
जब शिकायतें भी “अफसरों के कानों में सरक जाएं”,
तो सवाल उठना लाजमी है –
“क्या पत्थलगांव का राजस्व कार्यालय वसूली केंद्र बन चुका है?”
“क्या अफसरों की निगरानी सिर्फ फाइलों तक सीमित है?”
अब जनता पूछ रही है – मुख्यमंत्री के गृह जिले जशपुर में एक ड्राइवर प्रशासन को कैसे चला रहा है?
क्या शासन की “शुद्ध प्रशासन, पारदर्शी शासन” की नीति सिर्फ नारे बनकर रह गई है?
यदि जांच नहीं हुई तो पत्थलगांव का यह मामला छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक छवि पर गहरा धब्बा छोड़ सकता है।
जनता अब यह देख रही है कि क्या शासन इस “ड्राइवर बाबू राज” पर लगाम लगाएगा या फिर चुप्पी ही भ्रष्टाचार की नई परिभाषा बनेगी।