तमनार में ‘अघोषित आपातकाल’ : किसानों की आवाज कुचलने पर आमादा प्रशासन, जारी किया तुगलकी फरमान!…

रायगढ़। क्या तमनार में लोकतंत्र खत्म हो चुका है? क्या अब किसानों को अपने हक के लिए आवाज उठाने की भी आजादी नहीं रही? यह सवाल आज तब खड़ा हो गया जब तमनार के कार्यपालिक दंडाधिकारी ने एक तानाशाही फरमान जारी कर धौराभांठा में जुटने वाले किसानों को खुली धमकी दे डाली।

शनिवार (06.12.2025) को जारी इस आदेश ने साबित कर दिया है कि शासन-प्रशासन किसानों के आंदोलन से किस कदर डरा हुआ है। धौराभांठा के बाजार में अपने हकों की लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट होने वाले किसानों और आम नागरिकों को प्रशासन ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 223 का डर दिखाया है।
कलम की नोक से आंदोलन कुचलने की साजिश : प्रशासन का यह पत्र (क्रमांक 463/2025) कोई सामान्य आदेश नहीं, बल्कि किसानों के संवैधानिक अधिकारों पर सीधा हमला है। ‘शांति व्यवस्था’ की आड़ में प्रशासन ने साफ कह दिया है कि बिना अनुमति सभा या प्रदर्शन किया तो जेल भेज देंगे। सवाल यह है कि जब किसान अपनी जमीनों, अपने मुआवजे और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, तो प्रशासन उनकी बात सुनने के बजाय उन्हें अपराधी घोषित करने पर क्यों तुला है?
जानकारों का कहना है कि यह आदेश कॉर्पोरेट और रसूखदारों के दबाव में लिया गया फैसला है, ताकि किसानों की एकजुटता को तोड़ा जा सके। प्रशासन ने पुलिस को आगे कर दिया है, लेकिन क्या डंडे के जोर पर किसानों के असंतोष को दबाया जा सकेगा?
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