रायगढ़ में रेत माफिया की खुली धांधली – प्रशासन की नीरसता और बीजेपी सरकार की जवाबदेही सवालों के घेरे में…

रायगढ़। जिले में रेत का अवैध कारोबार खुलेआम फल-फूल रहा है। घरघोड़ा क्षेत्र से रात में रेत ले जा रहे एक भारी वाहन (हाइवा) को घरघोड़ा पुलिस ने नाके के दौरान पकड़ा। वाहन में लदी रेत के वैध कागजात न होने पर चालक को थाने लाया गया और वाहन पर कानूनी कार्रवाई की जा रही है। घटना के आधार पर पुलिस खनिज विभाग को कार्रवाई के लिए सूचना दे रही है। (स्थानीय पुलिस के अनुसार कार्रवाई जारी है)।
यह घटना अकेली नहीं – छत्तीसगढ़ में अवैध खनन, परिवहन और भंडारण की शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं। 2024 में राज्य में अवैध खनन से संबंधित हजारों मामलों का रिकॉर्ड सामने आया है, जो इस समस्या की ज्वलंतता दर्शाता है।
स्थानीय स्तर पर मिली जानकारी और लोगों की शिकायतों से लगता है कि यह नेटवर्क सिर्फ तस्करी तक सीमित नहीं है बल्कि परिवहन, भंडारण और बिक्री के जाल तक फैला हुआ है – और यह जाल राजनीतिक-सामाजिक संरक्षण से भी जुड़ा दिखता है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि नगर पंचायत से जुड़े कुछ प्रभावशाली लोग और स्थानीय राजनीतिक आकाओं का संरक्षण इस अवैध कारोबार को बेधड़क चलने में मदद कर रहा है – जिससे न सिर्फ राज्य को राजस्व हानि हो रही है बल्कि एनजीटी एवं पर्यावरण नियमों का भी उल्लंघन हो रहा है। कई बार ऐसे आरोपों में पुलिस-खनिज तंत्र के कुछ घटक भी संलिप्त होने की बात उठती रही है।
इन तस्वीरों के बीच सवाल उठता है – प्रदेश की प्रमुख नीतिगत जिम्मेवारी किसने निभानी है? केंद्र या राज्य द्वारा नियम बदले जाने, निगरानी तंत्र व अभियान चलाने की घोषणाएँ होती रही हैं, पर जमीन पर अमल और त्वरित कड़ी कार्रवाई का अभाव अवैध कारोबार के लिए हवा देने जैसा साबित हुआ है। हाल ही में खनन नियमों में बदलाव और सख्ती की घोषणाएँ हुई हैं, पर धरातल पर माफियाओं के निशान कम नहीं हुए।
स्थानीय पीड़ितों और राजस्व के नुकसान के अलावा अवैध खनन से नदियों, खेतों और पर्यावरण को जो क्षति होती है उससे भी प्रशासनिक उदासीनता की कीमत समाज को चुकानी पड़ती है – यह केवल तकनीकी उल्लंघन नहीं, बल्कि रणनीतिक दुर्भाग्य भी है। सुप्रीम कोर्ट/एनजीटी और राज्य हाईकोर्ट ने भी सख्ती बरतने के निर्देश दिए हैं, पर ठोस नतीजे देर से आते हैं या आंशिक रहते हैं।
अवैध तस्करी को राजनीतिक संरक्षण मिलने के आरोपों पर प्रशासन और सरकार को अभी पारदर्शी प्रक्रिया दिखानी होगी – कौन-कौन से कदम उठाए जा रहे हैं, किसके खिलाफ एफआईआर/पदनाम करने की प्रक्रिया शुरू हुई और राजस्व की वसूली की वर्तमान स्थिति क्या है। नागरिक और मीडिया दोनों को उम्मीद है कि पकड़े गए वाहनों और गिरफ्तार आरोपियों के मामलों में नियमों के अनुसार शीघ्र और प्रभावी कार्रवाई होगी।
रायगढ़ की यह घटना सिर्फ एक सूचना नहीं – यह बड़े सवालों की तरफ इशारा करती है: जब रेत जैसी रोजमर्रा की वस्तु का अवैध बाजार राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण का विषय बन जाए, तो शासन की जवाबदेही और जनता का नुकसान किसे पूछेगा? सरकार को चाहिए कि वह न केवल बयानबाजी बल्कि जमीन पर निगरानी, पारदर्शी जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई दिखाकर जनता का भरोसा बहाल करे।
(अतिरिक्त संदर्भ: छत्तीसगढ़ में अवैध खनन और उससे जुड़ी कार्रवाई/नियमों पर हालिया रिपोर्ट और कोर्ट-निर्देशों के लिये स्रोत देखे गए हैं।)