रायगढ़

जनता की हुंकार से हिल गया तमनार – जिंदल कोल खदान की लोक सुनवाई अचानक स्थगित!…

रायगढ़ | विशेष रिपोर्ट | रायगढ़ के तमनार क्षेत्र में जनता की गर्जना ने आखिरकार सरकार को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
जिंदल पावर लिमिटेड की विवादित Gare Palma Sector-I कोल माइंस परियोजना पर होने वाली लोक सुनवाई, जो 14 अक्टूबर को तय थी, सरकार ने “अपरिहार्य कारणों” का हवाला देकर अचानक स्थगित कर दी है।

लेकिन असली सवाल यही है –
👉 क्या “अपरिहार्य कारण” जनता का उबाल था?
👉 या फिर सरकार और कंपनी के बीच पर्दे के पीछे कोई “कॉर्पोरेट सौदा”?

तमनार की जनता बोली – “जमीन नहीं देंगे, जंगल नहीं कटेगा!”

तमनार और उसके आसपास के गांव — बुढियाझर, अमगांव, खुरसुलेंगा, धौराभाठा, बिजिन, लिबरा, महलोई, बघारी, झिकाबहाल, तिलईपारा, झरमा और तंगरगढ़
पिछले कई दिनों से विरोध के स्वर में एकजुट थे।
हर चौपाल, हर आंगन, हर पेड़ के नीचे एक ही आवाज़ थी —

“जिंदल की खदान नहीं चलेगी, जंगल रहेगा तो जीवन रहेगा!”

गांवों में महिलाएँ ढोल-नगाड़ों के साथ प्रदर्शन कर रही थीं, युवा हाथों में तख्तियाँ लेकर नारे बुलंद कर रहे थे।
स्थानीय संगठनों का कहना है —
“सरकार को डर था कि लोक सुनवाई के दिन तमनार में जनसैलाब उमड़ पड़ेगा।”
इसी डर ने सरकार को सुनवाई टालने पर मजबूर कर दिया।

“अपरिहार्य कारण” या जनता का प्रहार? – छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल ने अपने आदेश में केवल लिखा —

“लोक सुनवाई अपरिहार्य कारणों से स्थगित की जाती है।”

बस, न कोई कारण बताया गया, न नई तारीख़।

पर तमनार की जनता जानती है कि “अपरिहार्य कारण” असल में जनता का आक्रोश था,
जिसे प्रशासन अब “प्रक्रियागत स्थगन” का नाम देकर ढकने की कोशिश कर रहा है।

3020 हेक्टेयर में ‘विकास’ नहीं, विनाश की पटकथा : जिंदल पावर लिमिटेड की इस कोयला परियोजना में 15 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
लेकिन इसका सीधा असर 14 गांवों के जंगल, खेती, नदियों और जीवन पर पड़ेगा।
यह वही तमनार है, जहाँ पहले से कोयले की धूल, जलस्रोतों के सूखने और विस्थापन का दर्द हर घर में बसा है।

गांवों के लोग कह रहे हैं –

“हमने पहले भी देखा है कि विकास के नाम पर सिर्फ़ खदानें मिलती हैं, रोज़गार नहीं।”
“जो सरकार जनता की नहीं सुनती, उसे चुनाव में जवाब मिलेगा।”

स्थगन जनता की जीत – लेकिन लड़ाई अब और तेज़ होगी

स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है –

“यह जनता की पहली जीत है, लेकिन आख़िरी नहीं।
जिंदल की खदान जनता के प्रतिरोध से अब नहीं चल सकेगी।”

तमनार अब सिर्फ़ एक इलाका नहीं, जनसंघर्ष का प्रतीक बन चुका है।
यहाँ के लोग कहते हैं —

“हम ज़मीन के नहीं, ज़मीन हमारे हैं।”

आख़िरी सवाल – सरकार जनता की है या जिंदल की?

जब कोई सरकार जनता की आवाज़ से डरकर लोक सुनवाई टालती है,
तो यह सिर्फ़ तारीख़ का स्थगन नहीं होता — यह जनता के धैर्य की जीत और सत्ता की पराजय होती है।

अब तमनार की जनता खुले शब्दों में कह रही है —

अगर जंगल जला, तो कुर्सियाँ भी नहीं बचेंगी।”

Admin : RM24

Investigative Journalist & RTI Activist

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