पत्रकारों पर नोटिस, धमकी और अपमान – जनसम्पर्क अधिकारी नूतन सिदार का विवादित रवैया उजागर?…

जशपुरनगर। पत्रकारों को डराने और उनकी आवाज़ दबाने की नयी साजिश का खुलासा हुआ है। जनसम्पर्क अधिकारी नूतन सिदार ने अपने कर्मचारी रविन्द्र द्वारा थाने और पुलिस अधीक्षक कार्यालय में दी गई शिकायत को आधार बनाकर पत्रकारों के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई शुरू कर दी है।
पत्रकारों पर दबाव बनाने के लिए एक-एक करोड़ रुपये के मानहानि नोटिस भेजे गए। इससे भी गंभीर बात यह कि फ़ोन करके आत्महत्या कर फंसाने तक की धमकी दी गई। यह कदम सीधे-सीधे पत्रकारों को मानसिक रूप से तोड़ने और उनकी कलम रोकने की कुत्सित कोशिश है।
पत्रकारों को अपराधी बताने की साजिश : नोटिस भेजने के साथ ही पत्रकारों का सार्वजनिक अपमान किया गया और उन्हें अपराधी करार देते हुए एफआईआर दर्ज कराने तक की प्रक्रिया शुरू की गई। इतना ही नहीं, उक्त नोटिस को जनसंपर्क ग्रुप में डालकर खुलेआम लिखा गया – “कोई पोर्टल वाला छूटा तो नहीं?”। हैरानी की बात यह है कि इस अमर्यादित पोस्ट को ग्रुप में मौजूद कुछ कथित पत्रकारों ने ‘लाईक’ भी किया।

जनसंपर्क ग्रुप का निजीकरण : शासकीय जनसंपर्क ग्रुप, जहां प्रशासनिक अधिकारी समाचार साझा करते हैं, अब पूरी तरह निजी स्वार्थ का शिकार हो चुका है। जनसम्पर्क अधिकारी नूतन सिदार अपने चहेतों को ही ग्रुप में बनाए रखती हैं और उनके माध्यम से लाभ उठाती हैं।
जो पत्रकार उनकी मनमर्जी के अनुसार नहीं चलते, उन्हें धीरे-धीरे ग्रुप से बाहर कर दिया जा रहा है। हाल ही में एक निजी चैनल के पत्रकार को भी मनमाने ढंग से ग्रुप से हटा दिया गया। जबकि किसी पत्रकार को ग्रुप से हटाने का अधिकार शायद जनसम्पर्क अधिकारी के पास नहीं है।
प्रशासनिक चुप्पी पर सवाल : सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस ग्रुप में स्वयं कलेक्टर रोहित व्यास भी शामिल हैं और इसका स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। माना जा रहा है कि यही कारण है कि पूरा मामला और भी संवेदनशील हो गया है, फिर भी प्रशासन चुप्पी साधे बैठा है।
यह घटनाक्रम केवल कुछ पत्रकारों पर हमले तक सीमित नहीं है, बल्कि पत्रकारिता की गरिमा और स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है। जनसम्पर्क जैसे शासकीय मंच को निजी स्वार्थ और धमकी का अड्डा बना देना लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरे का संकेत है।…
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