
फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। जिले के दल्ली राजहरा शहर के गांधी चौक और पंडर दल्ली इलाकों में अवैध सट्टा बाजार फल-फूल रहा है, जहां कुख्यात सटोरिए बड़े नेताओं के कथित संरक्षण में बेखौफ कारोबार चला रहे हैं। स्थानीय पुलिस की ढीली कार्यवाही के चलते हजारों लोग अपनी कमाई गंवा रहे, परिवार बर्बाद हो रहे हैं— कई बेघर, पागल या आत्महत्या के शिकार। यह सामाजिक विपदा न केवल कानून का अपमान है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं पर भी चोट करती है। भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि शहर के नए कोतवाल के आने के बावजूद हालात जस के तस बने हुए हैं। सट्टे की इस महामारी पर तत्काल अंकुश लगाना जरूरी है, वरना शहर की युवा पीढ़ी का भविष्य दांव पर लगता रहेगा।
जानकारी के मुताबिक, वार्ड नंबर 20 के गांधी चौक में खिलावन नामक सटोरिया खुलेआम सट्टे का धंधा चला रहा है। यहां शानो-शौकत से लाखों का दांव लगता है, लेकिन खिलावन पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होती। अखबारों और टीवी चैनलों में बार-बार खबरें छपने के बावजूद, वह बेफिक्र है। स्थानीय निवासी, दबी जुबान में बताते हैं कि खिलावन के कांग्रेस और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से गहरे रिश्ते हैं। इसी राजनीतिक छतरी के कारण छत्तीसगढ़ पुलिस का रडार इस इलाके में ठप हो जाता है। पुलिस अधिकारी सटोरियों के गिरेबान तक पहुंचने से कतराते हैं, जो भ्रष्टाचार की बदौलत संभव है। शहरवासी उम्मीद बांधे हैं कि नया कोतवाल सट्टे के इस जाल को तोड़ेगा, लेकिन हकीकत में कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा।
इसी तरह, पंडर दल्ली क्षेत्र में रज्जू का सट्टा अड्डा बदनाम है। जब भी राजहरा थाना पुलिस छापा मारने पहुंचती है, रज्जू हवा में गायब हो जाता है। यह साफ जाहिर करता है कि विभाग में ही उसका मुखबिर बैठा है, जो पहले ही सटोरिए को खबर कर देता है। ऐसी नाकामी पुलिस की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है और अपराधियों को खुली छूट देती है। सट्टे के कारोबारियों के लिए यह खेल मजेदार लग सकता है, लेकिन हकीकत क्रूर है। रोजाना हजारों लोग गांधी चौक और पंडर दल्ली में अपनी किस्मत आजमाते हैं, नतीजा— घर बिक जाते हैं, परिवार टूटते हैं। कई बेघर सड़कों पर भटक रहे, कुछ मानसिक रूप से विक्षिप्त हो चुके, तो कई ने जहर खाकर जान दे दी। राजहरा के इन इलाकों में सट्टे ने सैकड़ों परिवारों को तबाह कर दिया है, जो हृदयविदारक है।
यह अवैध कारोबार न केवल आर्थिक नुकसान पहुंचाता है, बल्कि सामाजिक संरचना को खोखला कर रहा है। छत्तीसगढ़ में सट्टा निषेध अधिनियम 1960 के तहत ऐसी गतिविधियों पर कड़ी सजा का प्रावधान है, लेकिन अमल की कमी से अपराधी बेलगाम हैं। स्थानीय लोग चुपचाप त्रस्त हैं, क्योंकि विरोध करने पर धमकियां मिलती हैं। हाल ही में राज्य स्तर पर सट्टा माफिया के खिलाफ अभियान चले, लेकिन दल्ली राजहरा जैसे छोटे शहर नजरअंदाज हो रहे। विशेषज्ञों का मानना है कि राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना सट्टे पर लगाम कसना मुश्किल है। प्रशासन को अपने घर में छिपे मुखबिरों की जांच करनी चाहिए और पारदर्शी कार्यवाही सुनिश्चित की जानी चाहिए। सट्टे का यह काला बाजार बंद हो, तभी राजहरा सुरक्षित बनेगा।




