
बेमेतरा। सिख धर्म के चौथे गुरु गुरु रामदास जी का 444वां ज्योति-जोत दिवस आज श्रद्धा और भावपूर्ण स्मरण के साथ मनाया जा रहा है। गुरु रामदास जी ने 1 सितंबर, 1581 को गोइंदवाल (गोविंदवाल) में अपना नश्वर शरीर त्यागकर ज्योति-जोत समा गए थे। यह दिन उनके अद्वितीय योगदान, आध्यात्मिक शिक्षाओं और मानव कल्याण के लिए किए गए कार्यों को स्मरण करने का अवसर है।
छत्तीसगढ़ सिख समाज के जिला प्रमुख अध्यक्ष स. हरदीप सिंह राजा छाबड़ा ने कहा— “गुरु रामदास जी ने मानवता को सत्संग, सेवा और श्रद्धा का मार्ग दिखाया। उन्होंने सिख धर्म को एक मजबूत आधार दिया और अमृतसर व हरमंदिर साहिब जैसी धरोहर की स्थापना कर सिख इतिहास में अमिट छाप छोड़ी।”
गुरु वाणी का संदेश : गुरु रामदास जी ने कहा- “हे मेरे सतगुरु, हे मेरे हरि, मेरी स्थिति तू स्वयं जानता है। मैं रुलता-फिरता था, कोई मेरी पूछ नहीं करता था। परंतु सतगुरु ने मुझे अपने चरणों में स्थान दिया और मेरे सभी दुख व संताप दूर हो गए।” यह वाणी आज भी श्रद्धालुओं को जीवन में समर्पण, धैर्य और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
जीवन परिचय और योगदान:
- जन्म: 24 सितंबर, 1534, लाहौर (बचपन का नाम भाई जेठा जी)
- गुरु गद्दी: गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी और गुरु अमरदास जी के बाद चौथे सिख गुरु बने।
- अमृतसर की स्थापना: गुरु रामदास जी ने अमृतसर नगर की स्थापना की और आगे चलकर हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) का आधार रखा, जो आज विश्वभर के सिखों का प्रमुख तीर्थ है।
- धार्मिक योगदान: उन्होंने लावा (गुरबाणी की पंक्तियाँ) रचकर सिख विवाह संस्कार आनंद कारज को परिभाषित किया। आज भी प्रत्येक सिख विवाह में गुरु ग्रंथ साहिब की हजूरी में लावा का पाठ होता है।
गुरु रामदास जी ने सिख धर्म को न केवल आध्यात्मिक ऊँचाई दी, बल्कि सामाजिक जीवन में सेवा, विनम्रता और समानता की परंपरा स्थापित की। उनकी शिक्षाएं आज भी सूर्य की किरणों की तरह संसार को आलोकित कर रही हैं।
👉 आज का दिन गुरु रामदास जी की शिक्षाओं को आत्मसात कर समाज और मानवता की सेवा के लिए समर्पित करने का दिन है।