रायगढ़

“खून से लिखा अल्टीमेटम: NHM कर्मियों का 20 वर्षों का संघर्ष सरकार की परीक्षा”

रायगढ़, 6 सितंबर 2025। छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य तंत्र इन दिनों गहरी जद्दोजहद से गुजर रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) कर्मचारियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल 20वें दिन में प्रवेश कर चुकी है, और अब यह केवल सेवा शर्तों का प्रश्न नहीं, बल्कि कर्मचारियों की आत्मसम्मान और सरकार की जवाबदेही का विषय बन गया है।

इस आंदोलन ने नया मोड़ तब लिया जब कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और वित्त मंत्री को “खून से लिखा पत्र” भेजकर अपनी 10 सूत्रीय मांगों को दोहराया। यह प्रतीकात्मक कदम न केवल उनके संघर्ष की गहराई को दर्शाता है, बल्कि सरकार की संवेदनशीलता पर भी सवाल खड़ा करता है।

कर्मचारियों ने स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को संबोधित पत्र में कहा कि: “पिछले दो दशकों में 170 से अधिक ज्ञापन दिए गए, अनगिनत धरने-प्रदर्शन हुए, लेकिन हमारी मूलभूत मांगें अधूरी हैं। आप कहते हैं 10 में से 5 मांगें मान ली गई हैं, किंतु धरातल पर उसका कोई क्रियान्वयन दिखाई नहीं देता।”

वित्त मंत्री को संबोधित करते हुए कर्मचारियों ने स्मरण कराया कि: “आपने स्वयं हमारे मंच से कहा था कि 100 दिनों के भीतर नियमितीकरण होगा। आज दो वर्ष बीत चुके हैं, परंतु कोई ठोस कदम नहीं दिखा। क्या यह केवल चुनावी घोषणा थी?”

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से कर्मचारियों ने विनम्र परंतु दृढ़ स्वर में आग्रह किया कि: “राज्य का विकास तभी संभव है जब जनता को सशक्त स्वास्थ्य सेवाएं मिलें। 16,000 से अधिक कर्मचारियों के इस्तीफे स्वास्थ्य तंत्र के लिए गंभीर संकट हैं। इस स्थिति में आपका तत्काल हस्तक्षेप अनिवार्य है।”

खून से लिखी मांगें 20 वर्षों की पुकार – NHM कर्मचारियों की दस प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं :

  1. सेवाओं का नियमितीकरण/स्थायीकरण
  2. पब्लिक हेल्थ कैडर की स्थापना
  3. ग्रेड पे निर्धारण
  4. लंबित 27% वेतन वृद्धि का क्रियान्वयन
  5. कार्य मूल्यांकन में पारदर्शिता
  6. नियमित भर्ती में आरक्षण का अनुपालन
  7. अनुकम्पा नियुक्ति की व्यवस्था
  8. मेडिकल एवं अन्य अवकाश का प्रावधान
  9. पारदर्शी स्थानांतरण नीति
  10. 10 लाख रुपये का कैशलेस स्वास्थ्य बीमा

हड़ताल के चलते राज्य में कई आवश्यक सेवाएं प्रभावित हुई हैं –

  • बच्चों का टीकाकरण ठप है,
  • पोषण केंद्र बंद हैं,
  • आपातकालीन सेवाएं भी प्रभावित हो रही हैं।

इसके बावजूद, कर्मचारियों का कहना है: “हमारी लड़ाई किसी एक वर्ग की नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करने की है। जब तक मांगें पूरी नहीं होंगी, आंदोलन जारी रहेगा।”

सरकार अब दो विकल्पों के बीच खड़ी है :

  1. संवाद और समाधान का मार्ग चुनना, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं में स्थिरता लौटे।
  2. या फिर कठोर निर्णय और टकराव की राह, जिससे संकट और गहरा हो सकता है।

यह आंदोलन केवल रोजगार और वेतन का नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य की सुरक्षा और शासन की विश्वसनीयता का प्रश्न बन चुका है।

अब देखने की बात यह है कि सरकार इस “खून से लिखी पुकार” को संवेदनशीलता के साथ स्वीकार करती है या इसे नज़रअंदाज़ कर संघर्ष को और लंबा खींचती है।

Admin : RM24

Investigative Journalist & RTI Activist

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