रिसदी तालाब : मासूमों का कब्रिस्तान, प्रशासन का मौन महाकुंभ…??

कोरबा। तालाब में नहाना बच्चों का शौक होता है, लेकिन कोरबा का रिसदी तालाब तो सीधे श्मशान घाट का शॉर्टकट बन गया है। शुक्रवार को इस तालाब ने एक साथ तीन मासूम जिंदगियां निगल लीं। तीनों किसी आम घर के नहीं, बल्कि पुलिसकर्मियों के बेटे थे। अब पूरा पुलिस महकमा ग़मगीन है, लेकिन प्रशासन अब भी ‘गंभीरता’ की नींद सो रहा है।
मौत का तालाब, जीवन रक्षक इंतजाम नदारद : स्थानीय लोग कहते हैं कि रिसदी तालाब इतना गहरा है कि मौत सीधी गोद में बैठा लेती है। फिर भी सुरक्षा इंतजाम के नाम पर तालाब की दीवारों पर “शांति और सौंदर्य” की झील दिखाई देती है।
न चेतावनी बोर्ड, न बैरिकेडिंग, न चौकीदार—बस लापरवाही की लहरें और प्रशासन की चुप्पी।
तीन मासूम, प्रशासन की बेपरवाही के शिकार :
- युवराज सिंह ठाकुर (9),
- प्रिंस जगत (12),
- आकाश लकड़ा (13)
तीनों दोस्त खेलते-खेलते तालाब में उतरे और तालाब ने उन्हें हमेशा के लिए निगल लिया। गोताखोर और बचाव दल जब तक पहुंचे, तालाब ने अपना काम पूरा कर दिया था।
प्रशासन का फार्मूला : हादसा → शोक → अपील
हर हादसे की तरह इस बार भी वही कहानी दोहराई गई।
एसपी साहब पहुंचे, अफसरों ने आंखें पोंछीं, और फिर जनता को उपदेश दिया-
“बच्चों को तालाब, नदी-नालों में न जाने दें।”
वाह! क्या जिम्मेदारी है! तालाब तो खुलेआम मौत का फंदा लगा रहा है, और गुनाहगार घोषित कर दिया गया है –बच्चे और उनके माता-पिता।
तालाब की आदत और प्रशासन की परंपरा : रिसदी तालाब की आदत है कि वह लोगों को डुबो देता है।
प्रशासन की परंपरा है कि वह हर मौत के बाद ‘मूल्यांकन बैठक’ कर लेता है।
फिर सब भूलकर अगली मौत का इंतजार करता है।
सवाल वही – जवाब कौन देगा?
तीन पुलिसकर्मियों के बेटे मर गए, प्रशासनिक तंत्र शर्मिंदा होने की बजाय फिर वही घिसा-पिटा बयान दोहरा रहा है। सवाल उठता है—
- तालाब पर सुरक्षा क्यों नहीं?
- चेतावनी बोर्ड क्यों नहीं?
- बचाव दल मौके पर पहले से क्यों नहीं?
लेकिन जवाब का इंतजार मत कीजिए, क्योंकि यहां मौतें मुफ्त हैं और जिम्मेदारी महंगी।