
फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्र डौंडीलोहारा में शुक्रवार को एक अभूतपूर्व दृश्य उभरा, जो लोकतंत्र की नींव को झकझोर गया। हमेशा सच्चाई की तलवार बने पत्रकारों ने आज भ्रष्टाचार पर प्रशासन की उदासीनता के विरुद्ध सड़कों पर उतरकर मौन जुलूस निकाला। यह खामोशी न केवल उनकी निराशा का प्रतीक थी, बल्कि समाज की चुपचाप दबी पीड़ा की भी। पत्रकारिता, जो जनता की आवाज बनकर प्रशासनिक लापरवाहियों को उजागर करती रही है, आज खुद न्याय की बाट जोह रही है। ठोस प्रमाणों के बावजूद कोई कार्यवाही न होने से पत्रकारों का यह मौन आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कड़ा संदेश बन गया।

पत्रकार संगठनों का कहना है कि शासन-प्रशासन अब खबरों की गहराई से कहीं अधिक भ्रष्टाचार को संरक्षण देने में लगा है। दस्तावेजी सबूतों और जांच रिपोर्टों के साथ किए गए खुलासे धूल चाट रहे हैं, जबकि जनहित के मुद्दे अनदेखे पड़ रहे हैं। जब सत्य को कुचलने की साजिश रचने लगे और न्याय की किरणें मद्धम पड़ जाएं, तब पत्रकारों का यह मौन जुलूस लोकतंत्र की धड़कन बन जाता है। यह चुप्पी शब्दों से कहीं अधिक प्रभावशाली है, जो प्रशासन की कमजोरियों को बेनकाब करती है। डौंडीलोहारा की सड़कों पर चले इस जुलूस ने न सिर्फ पत्रकारिता की गरिमा को रेखांकित किया, बल्कि समाज के हर वर्ग की एकजुटता को भी प्रदर्शित किया। सामाजिक संगठन, राजनीतिक दलों और गैर-राजनीतिक समूहों ने इसे पूर्ण समर्थन दिया, जो दर्शाता है कि भ्रष्टाचार अब व्यक्तिगत नहीं, सामूहिक लड़ाई का विषय बन चुका है।

इस मौन प्रदर्शन में प्रमुख भूमिका निभाने वालों में ओबीसी महासभा के नेता यज्ञदेव पटेल, प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. अशोक आकाश, गोंडवाना गोंड महासभा के बालोद जिलाध्यक्ष प्रेम लाल कुंजाम, सर्व आदिवासी समाज के बालोद जिला प्रमुख डॉ. तुकाराम कोर्राम, प्रेस रिपोर्टर क्लब के प्रदेश अध्यक्ष संजय सोनी शामिल थे। रायपुर से आए वरिष्ठ पत्रकार राजू गुप्ता, शशिकांत देवांगन, दुर्ग के गोपाल निर्मलकर और कई स्थानीय, जिला – स्तरीय पत्रकारों ने भी इस आंदोलन को मजबूती प्रदान की। स्थानीय पत्रकारों ने स्पष्ट चेतावनी दी, “भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष कभी थमेगा नहीं।” उन्होंने कहा कि यदि ईमानदार पत्रकारिता को दबाया गया, तो कलम अपनी स्याही के बजाय खामोशी से भी इतिहास रचेगी। यह जुलूस पत्रकारों का अकेला प्रयास नहीं था, बल्कि पूरे समाज की संवेदनशीलता का आईना था।
डौंडीलोहारा का यह मौन मार्च स्पष्ट संकेत देता है कि मीडिया लोकतंत्र की सबसे मजबूत खंभे में से एक है। जब यह खंभा सत्ता की अनदेखी से हिलने लगे, तो जनता की रक्षा भी संकट में पड़ जाती है। पत्रकारों ने अपनी चुप्पी में वह ज्वाला छिपाई थी, जो भ्रष्टाचार की हर संरचना को भस्म कर सकती है। यह मात्र एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि सत्य को यदि बांधा गया, तो उसकी प्रतिध्वनि और भी प्रबल होकर लौटेगी। प्रशासन को अब जागना होगा, वरना जनाक्रोश अनियंत्रित रूप धारण कर लेगा। यह घटना छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल में नैतिकता और पारदर्शिता की मांग को नई ऊंचाई देगी।




