
फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। शहर के सागर हॉस्पिटल में उजागर हुई गंभीर खामियों के बावजूद “स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी” ने अब विवाद खड़ा कर दिया है। 15 अप्रैल 2025 को मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने अस्पताल प्रशासन को तीन दिनों के अंदर कमियों को दूर करने और आवश्यक दस्तावेज जमा करने का कड़ा निर्देश जारी किया था। लेकिन आज तक न तो कोई सुधार नजर आया है और न ही कोई सख्त कदम उठाया गया। यह निष्क्रियता न केवल विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठा रही है, बल्कि स्थानीय लोगों, प्रभावित मरीजों और सामाजिक संगठनों में गुस्से को भी हवा दे रही है। उनका मानना है कि यह या तो विभाग की कमजोर इच्छाशक्ति का परिणाम है या फिर कुछ प्रभावशाली ताकतों के दबाव में जानबूझकर की गई अनदेखी।

इस मामले की जड़ें 11 महीने पुरानी जांच रिपोर्ट में हैं, जो अब तक धूल फांक रही है। 01 जनवरी 2025 को शुरू हुई जांच के नतीजे 21 जनवरी 2025 को सामने आए थे, जिसमें अस्पताल की कई खतरनाक अनियमितताएं सामने आईं। रिपोर्ट के अनुसार, अस्पताल में एक भी एमबीबीएस योग्य डॉक्टर नहीं था, फिर भी बीएएमएस चिकित्सकों द्वारा सिजेरियन जैसी जटिल सर्जरी की जा रही थीं। नर्सिंग होम एक्ट का खुला उल्लंघन हो रहा था, जहां पंजीकरण प्रमाणपत्र कहीं प्रदर्शित नहीं था। साथ ही, न तो डॉक्टरों की योग्यता की जानकारी उपलब्ध थी और न ही स्टाफ की कोई आधिकारिक डिटेल्स। ये सभी कमियां मरीजों की जान जोखिम में डालने वाली थीं और कानूनी रूप से गंभीर अपराध के दायरे में आती हैं।

कानूनन, ऐसी स्थिति में अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर उसे तत्काल सील करने का प्रावधान है। लेकिन एक साल बीतने के बावजूद सबकुछ वैसा ही है। स्थानीय निवासी अब आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं, जबकि सामाजिक कार्यकर्ता विभाग पर पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री से भी इसकी शिकायत की जा चुकी है, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी लापरवाही से न केवल मरीजों का भरोसा टूटता है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की नींव भी कमजोर होती है। विभाग को तुरंत जांच समिति गठित कर कार्यवाही करनी चाहिए, वरना मामला कोर्ट तक पहुंच सकता है। यह घटना छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य ढांचे की कमजोरियों को उजागर करती है, जहां नियमों का पालन करने के बजाय राजनीतिक हित प्राथमिकता पा रहे हैं।

स्वास्थ्य विभाग की खामोशी: मौन या संरक्षण?
जांच रिपोर्ट में सागर हॉस्पिटल की गंभीर अनियमितताएं सिद्ध हो चुकी हैं, फिर भी स्वास्थ्य विभाग चुप्पी साधे है। सीएमएचओ ने 15 अप्रैल 2025 को अल्टीमेटम जारी किया था, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं। स्थानीय नागरिक, पीड़ित और कार्यकर्ता लगातार शिकायतें कर रहे हैं, मगर सब व्यर्थ। सबसे बड़ा सवाल: कार्यवाही क्यों ठप? क्या विभाग दबाव में है? अस्पताल संचालकों की कथित पहुंच विभाग को कमजोर तो नहीं कर रही? या फाइलें सिर्फ नोटशीटों और चेतावनियों में दबकर रह गईं? यह उदासीनता न केवल न्याय की उम्मीद तोड़ रही, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खतरा बन रही। विभाग को तत्काल स्पष्टता देनी चाहिए, वरना संदेह गहरा जाएगा।

नागरिकों की मांग: त्वरित और पारदर्शी कार्यवाही!
स्वास्थ्य विभाग से क्षेत्रवासियों की पुकार है — सागर हॉस्पिटल मामले में न्याय सुनिश्चित हो:
- पारदर्शिता सुनिश्चित करें: अब तक की सभी कार्यवाहियों का विस्तृत सार्वजनिक विवरण तत्काल जारी किया जाए, ताकि जनता को सच्चाई पता चले।
- कानूनी दंड लागू करें: नर्सिंग होम एक्ट के सख्त प्रावधानों के अनुरूप दंडात्मक उपाय बिना विलंब उठाए जाएं, अस्पताल को जवाबदेह बनाएं।
- गहन जांच प्रारंभ करें: अवैध सर्जरी के गंभीर आरोपों पर उच्च-स्तरीय, स्वतंत्र जांच समिति गठित हो, तथ्यों का खुलासा हो।
- जिम्मेदारी तय करें: संबंधित अधिकारियों की भूमिका की निष्पक्ष समीक्षा हो, लापरवाही पर उचित कार्रवाई सुनिश्चित हो।
ये मांगें न केवल न्याय की दिशा में हैं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी। विभाग तुरंत संज्ञान ले!
लोगों का कहना है कि यदि स्वास्थ्य विभाग ही अनियमितताओं पर चुप्पी साध ले, तो आम जनता किसके भरोसे अपनी और अपने परिवार की जान सौंपे? इंतजार के चलते किसी के जान पर ना बन आये! अब जनता का सवाल बिल्कुल साफ है सागर हॉस्पिटल पर कार्यवाही आखिर कब?
क्या जिला स्वास्थ्य अधिकारी को प्राप्त शक्तिया इस कार्यवाही के लिए कम है या फिर जनता को किसी दैवीय शक्ति का इंतजार करना होगा? जाँच रिपोर्ट के बाद भी कार्यवाही क्यों नहीं? क्या नियमों से ऊपर है अस्पताल संचालक की पहुँच?
जब कानून मौजूद है, रिपोर्ट मौजूद है, शिकायत मौजूद है— तो कार्यवाही सिर्फ फाइलों में क्यों कैद है? यदि सिर्फ अनुभव से काम चलता है तो प्रदेश के समस्त मेडिकल कालेजो पऱ ताले लगवा दे और अनुभवो से काम चलाये!

सागर हॉस्पिटल: स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी से जनता का भरोसा डगमगाया
लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है – अगर स्वास्थ्य विभाग खुद अनियमितताओं पर आंखें मूंद ले, तो साधारण नागरिक अपनी और अपनों की सेहत किस पर छोड़े? लंबे इंतजार से किसी की जान पर बन न जाए! सागर हॉस्पिटल पर कार्रवाई कब होगी, यह जनता का सीधा सवाल है।
क्या जिला स्वास्थ्य अधिकारी के पास सख्ती दिखाने की ताकत कम पड़ रही है, या जनता को किसी चमत्कारी हस्तक्षेप का इंतजार करना पड़ेगा? जांच रिपोर्ट साफ-साफ उल्लंघन बता चुकी है, फिर भी कदम क्यों ठप? क्या अस्पताल मालिकों की कथित पहुंच नियमों से ऊपर है?
कानून तैयार है, रिपोर्ट तैयार है, शिकायतें दस्तावेजी हैं – तो कार्यवाही फाइलों की धूल में क्यों सड़ रही? अगर सिर्फ अनुभव से काम चलेगा, तो छत्तीसगढ़ के सभी मेडिकल कॉलेजों पर ताला जड़ दो और पुराने तरीकों से ही चलाओ! यह लापरवाही न केवल मरीजों को खतरे में डाल रही, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा रही। विभाग को जागना होगा, वरना जन आंदोलन अनिवार्य हो जाएगा।




