रायगढ़

तमनार के निस्तारी तालाब में शावक हाथी की मौत – हादसा नहीं, व्यवस्था की चूक?…

रायगढ़। तमनार वन परिक्षेत्र के ग्राम गौरमुडी के निस्तारी तालाब में सोमवार तड़के लगभग एक वर्ष के एक हाथी शावक का शव मिलने की घटना ने क्षेत्र में सनसनी फैला दी है। घटनास्थल पर पहुंचकर वन विभाग ने प्राथमिक रूप से पोस्टमार्टम कराकर मौत का कारण डूबना बताया है।

शावक की उम्र लगभग एक वर्ष बताई जा रही है और शव तालाब में पाया गया। वन परिक्षेत्र अधिकारी के अनुसार यह तालाब जंगल से लगभग दो किलोमीटर दूर है।  जानकारी के मुताबिक रात 3 से 4 बजे के बीच शावक पानी में फिसलकर डूब गया; उसी रात आस-पास 34 हाथियों का एक बड़ा झुंड मौजूद था और वन विभाग का फील्ड स्टाफ झुंड की गतिविधियों की रिपोर्ट दे रहा था। वरिष्ठ अधिकारियों ने पोस्टमार्टम के बाद शव का सुरक्षित दफन कराया।

बड़ी तस्वीर – यह अकेली घटना नहीं : रायगढ़ में पिछले कुछ महीनों/सालों में तालाब/जलाशयों और करंट एक्सीडेंट से हाथियों की मौत की कई घटनाएँ सामने आ चुकी हैं – कई रिपोर्टों में ऐसे मामलों की आवृत्ति दिखाई देती है, जिससे यह एक “एहतियाती” समस्या बनती जा रही है। (इन्हीं पिछले मामलों में कुछ बार करंट लगना और तालाबों में डूबना कारण बताए गए हैं)।

सवाल जो उठ रहे हैं :

    1. निगरानी कितनी प्रभावी थी? – जब रातभर फील्ड स्टाफ झुंड की गतिविधियाँ रिकार्ड कर रहा था, तब शावक कैसे अकेला प्यास/नहानें के लिए इतना जोखिम भरे स्थान तक पहुँच गया? क्या निगरानी कागजी थी या जमीन पर पर्याप्त गश्त की जा रही थी?
    2. खतरनाक जलाशयों का मानचित्र/सीमांकन क्यों नहीं? -जिस तालाब तक हाथियों की पहुंच थी, उस पर स्थानीय प्रशासन/वन विभाग ने पूर्व चेतावनी, बैरिकेडिंग या संकेतक क्यों नहीं लगाए – खासकर जहाँ झुंड नियमित आता-जाता है।
    3. अनुसंधान और पैटर्न विश्लेषण कब तक? – एक ही रेंज/जिले में बार-बार शावकों की मौतें दिखती हों तो विभाग को केवल “घटना” बता कर टालना बंद कर देना चाहिए – आवश्यक है कि कारणों का सांख्यिकीय अध्ययन, खतरे वाले स्पॉट की सूची और त्वरित रोशन/बाधा योजना बने।

    स्थानीय प्रशासकीय कार्रवाई – क्या कहा गया और क्या होना चाहिए :

    • अधिकारियों ने कहा कि कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं मिला और यह दुर्भाग्यपूर्ण प्राकृतिक घटना है; साथ ही क्षेत्र में निगरानी बढ़ा दी गई है। पर विशेषज्ञ और स्थानीय मुखौटे पर सवाल कर रहे हैं कि क्या सिर्फ अलार्म तैनात करना ही पर्याप्त है।

    आपात सुधार-सुझाव (प्रैक्टिकल):

    1. हाथियों के नियमित रूट और पानी के स्रोतों का नक्शा बनाकर हाई-रिस्क तालाबों पर अस्थायी/स्थायी अवरोध (रैंप/ढाल/साइनबोर्ड) लगाना।
    2. रात्री निगरानी में मोबाइल गश्ती और सेंसर-आधारित अलार्म (जहाँ संसाधन हों) लागू करना; स्थानीय ग्रामीणों को भी सशक्त सूचना-जाल से जोड़ना।
    3. जलाशयों के किनारों पर खतरनाक ढलानों की पहचान कर तीव्र सुधार (रैंप, किनारा चिकनाई हटाना) ताकि युवा शावक आसानी से बाहर आ सकें।
    4. हर मौत का पैनल स्तर पर त्वरित विश्लेषण — क्या यह निगरानी-विफलता, संरचनात्मक जोखिम या अनियंत्रित करंट/मनुष्य-जनित कारण है।

    विशेषज्ञों की आवाज़ (पत्रकारीय निष्कर्ष) : वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार शावक ठंड, भय या भीड़-भाव से तालाब के गहरे हिस्सों में फिसल सकते हैं; साथ ही झुंड का व्यवहार—जैसे कि बड़े हाथी अचानक एक जगह संकुचित हो जाएँ—शावक को दबा सकता है या उसे किनारे से दूर कर सकता है। अतः प्रबंधन की जिम्मेदारी केवल “रिपोर्ट” तक सीमित नहीं होनी चाहिए।

    जवाबदेही की आवश्यकता : यह कोई तात्कालिक “प्रकृतिक हादसा” भर नहीं लगती; पिछले मामलों का पैटर्न, तालाब जैसे जोखिम-स्थलों की मौजूदगी और रिपोर्टेड निगरानी के बावजूद पुनरावृत्ति यह दर्शाती है कि व्यवस्थागत सुधार तुरंत लागू किए जाने चाहिए। एक जीवित शावक की जान की भरपाई कोई रिपोर्ट नहीं कर सकती—मगर ऐसी घटनाओं को रोकना संभव है, अगर प्रशासन और वन विभाग जमीन पर काम करें।

    Admin : RM24

    Investigative Journalist & RTI Activist

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