चोरी का पानी : वार्ड 15 में सरकारी हैंडपंप को लेकर भ्रष्टाचार और फिर भी नगर पालिका की अनदेखी

फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। जिले के दल्ली राजहरा नगर पालिका परिषद के नियोगी नगर, वार्ड क्रमांक 15 में पिछले कांग्रेस कार्यकाल के दौरान आरके मायने के घर निर्माण के लिए अस्थाई सरकारी हैंडपंप खोलकर उसमें सबमर्सिबल पंप लगाने की अनुमति दी गई थी। यह अस्थाई अनुमति पिछली कांग्रेस सरकार के समय स्थायी होती चली गई, जिससे भ्रष्टाचार की परतें छुपी हुई हैं।
वार्ड 15 के पार्षद तरुण साहू और वार्ड वासियों के विरोध के बावजूद, नगर पालिका परिषद के अधिकारी इस मामले में आंखें बंद किए हुए हैं। आपको बता दें कि आरके मायने, साईं शिशु मंदिर के संचालक हैं और उनके घर के लिए जो हैंडपंप खोलने की अनुमति मिली, वह पहले अस्थाई थी पर अब स्थायी रूप से प्रयोग में आ गई है।
नियोगी नगर वार्ड पार्षद और स्थानीय निवासी पिछले 02 अप्रैल 2025 को इस मामले को लेकर नगर पालिका अध्यक्ष तोरण साहू को हस्ताक्षर युक्त शिकायत पत्र सौंप चुके हैं, लेकिन करीब पांच महीने बीत जाने के बाद भी कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है।
इस मामले में वार्ड के नागरिकों में रोष व्याप्त है और वे नगर पालिका परिषद से उचित जवाबदेही की मांग कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के बावजूद जिम्मेदार अभी तक इस समस्या को हल करने में नाकाम हैं।

वार्ड 15 से डीडी मानिकपुरी दिलीप मेश्राम, राजू सिंह राजपूत, लोकेश, पुनित राम, मोहन राजपूत, लालू यादव, राजू यादव, देवाराम साहू, विष्णुरामू मण्डावी, उमा बाई राजपूत, यशवन्त कुमार सिन्हा, श्रीमती निर्मला सिन्हा, श्रीमती देवकी बाई, तरुण साहू, नोहर सिंह, शिवप्रसाद सिन्हा, श्रीमती विद्या देशमुख, श्रीमती यामिनी मेश्राम, श्रीमती दिलेश्वरी, रामदास साहू तथा अन्य वार्डवासियों ने दल्ली राजहरा नगर पालिका परिषद में शिकायत की लेकिन नगर पालिका के जिम्मेदारों के द्वारा मामले को लगातार टाला जा रहा है।
नगर पालिका परिषद के अधीन आने वाले सार्वजनिक संसाधनों, जैसे सरकारी हैंडपंप या बोर, का व्यक्तिगत लाभ के लिए स्थायी उपयोग गंभीर अनियमितता और प्रशासनिक दुरुपयोग की श्रेणी में आता है। छत्तीसगढ़ की नगर पालिका परिषद के कार्यों, अधिकारों और उत्तरदायित्वों को “छत्तीसगढ़ नगर पालिका अधिनियम, 1961” तथा संबंधित जल प्रबंधन एवं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) विभाग के नियमों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। जिसमें सरकारी हैंडपंप से अवैध रूप से पानी निकालने व स्थाई रूप से कब्जा कर लेने की स्थिति अनियमितताओं और दंडात्मक प्रावधानों के अंतर्गत आती है जिनमें छत्तीसगढ़ नगर पालिका अधिनियम, 1961 के अंतर्गत धारा 187 – अनधिकृत जल उपयोग या नल कनेक्शन। कोई भी व्यक्ति नगरपालिका की अनुमति के बिना जल स्रोत से जल नहीं ले सकता। ऐसा करने पर जुर्माना, जल कनेक्शन की कृत्रिम समाप्ति एवं दंडात्मक कार्यवाही की जा सकती है। धारा 292 – नगरपालिका की संपत्ति के दुरुपयोग पर दंड। सार्वजनिक संसाधन (जैसे हैंडपंप) का व्यक्तिगत उपयोग दंडनीय है। धारा 308 – लोक सेवक या अधिकारी द्वारा कर्तव्य का उल्लंघन। किसी नगर पालिका अधिकारी द्वारा जानबूझकर अनुमति देना, दुर्व्यवहार व अनियमितता की श्रेणी में आता है। इनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है।
धारा 223 – सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा के तहत नगरपालिका की संपत्ति का अनधिकृत उपयोग अपराध है। दोषी पाए जाने पर अधिकारियों या नागरिकों पर जुर्माना तथा आपराधिक कार्यवाही हो सकती है। धारा 187 – जल प्रदाय व्यवस्था का दुरुपयोग के तहत नगरपालिका द्वारा स्थापित किसी जल स्रोत (जैसे हैंडपंप) का अनधिकृत रूप से उपयोग करना दंडनीय अपराध है। इसमें पानी की चोरी, बर्बादी या निजी उपयोग शामिल है।
लोक सेवक द्वारा कदाचार – भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत यदि किसी अधिकारी ने जानबूझकर किसी को लाभ पहुंचाने हेतु अनुमति को अस्थाई से स्थाई कर दिया, तो यह लोक सेवक के दुरुपयोग की श्रेणी में आएगा। दोषी पाए जाने पर आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है। आपराधिक दायित्व (आईपीसी) धारा 409 लोक सेवक द्वारा संपत्ति का आपराधिक न्यासभंग – 10 वर्ष तक की सजा। धारा 120 बी आपराधिक साजिश (यदि कई लोग शामिल हों)।
ऐसे मामले पर प्रशासन द्वारा जांच आदेश जारी किया जा सकता है। जिसमें पीएचई विभाग के इंजीनियर या जल निरीक्षक द्वारा भौतिक निरीक्षण किया जाता है। तत्काल प्रभाव से अवैध कनेक्शन की समाप्ति की जाती है। पानी के अवैध उपयोग की अवधि अनुसार जुर्माना व वसूली की जाती है। नगर पालिका अधिनियम व सेवा नियमों के तहत जिम्मेदार अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है।
“शहर में ऐसी अनियमितता और भ्रष्टाचार के कई और मामले है जहां पर सरकारी बोर का निजी उपयोग पिछले कई वर्षों से किया जा रहा है और नगर पालिका परिषद के जिम्मेदारों के मुंह पर ताला लगा हुआ है।”
यह मामला स्थानीय प्रशासन व्यवस्था की जवाबदेही पर सवाल उठाता है और दर्शाता है कि पारदर्शिता व जिम्मेदारी की कमी से आम जनता कितनी प्रभावित हो रही है। नागरिकों की आवाज दबाना नगर विकास की राह में बाधा बनता जा रहा है।