रायगढ़ से PMO तक गूंजा मामला : जनसंपर्क अधिकारी ने पत्रकार को भेजा 1 करोड़ का नोटिस, बिना कोर्ट के ही लिखित में घोषित किया ‘क्रिमिनल’…

रायगढ़। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में ‘अफसरशाही’ और ‘पत्रकारिता’ के बीच टकराव का एक बेहद गंभीर मामला सामने आया है, जिसकी गूंज अब दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) तक पहुंच गई है। एक स्वतंत्र पत्रकार ने आरोप लगाया है कि विभागीय भ्रष्टाचार और एक पीड़ित कर्मचारी की आवाज उठाने पर, एक महिला राजपत्रित अधिकारी ने अपने पद का घोर दुरुपयोग करते हुए उन्हें लिखित में “अपराधी” घोषित कर दिया और डराने के लिए 1 करोड़ रुपये का मानहानि नोटिस भेज दिया।
मामला सहायक संचालक (जनसंपर्क) श्रीमती नूतन सिदार और स्वतंत्र पत्रकार ऋषिकेश मिश्रा से जुड़ा है। पत्रकार ने अब इस मामले में प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और डीजीपी छत्तीसगढ़ को पत्र लिखकर अधिकारी के खिलाफ एफआईआर (FIR) दर्ज करने की मांग की है।

अधिकारी ही बन गईं ‘जज’, कलेक्टर के ग्रुप में ‘साइबर मानहानि’ – पत्रकार ऋषिकेश मिश्रा द्वारा उच्चाधिकारियों को भेजे गए शिकायती आवेदन के अनुसार, सहायक संचालक नूतन सिदार ने दिनांक 02/09/2025 को थाना लैलूंगा में दिए गए एक आवेदन में न्यायिक मर्यादा को ताक पर रखकर उन्हें दो बार लिखित रूप में “अपराधी” (Criminal) शब्द से संबोधित किया। पत्रकार का तर्क है कि भारतीय कानून में दोष सिद्ध हुए बिना किसी नागरिक को अपराधी घोषित करना गंभीर अपराध है।
आरोप है कि अधिकारी ने पद की गरिमा को लांघते हुए इस अपमानजनक पत्र को ‘जनसंपर्क जशपुर’ के उस ऑफिसियल व्हाट्सएप ग्रुप में वायरल कर दिया, जिसके एडमिन स्वयं जिला कलेक्टर जशपुर हैं। पत्रकार ने इसे एक जिम्मेदार प्रशासनिक मंच का दुरुपयोग और ‘साइबर मानहानि’ बताया है।
सच बोलने की कीमत : 1 करोड़ का नोटिस और धमकियां – शिकायत में बताया गया है कि यह संपूर्ण द्वेषपूर्ण कार्यवाही इसलिए की जा रही है क्योंकि पत्रकार ने जशपुर जनसंपर्क कार्यालय के एक पीड़ित कर्मचारी (रविन्द्रनाथ राम) की व्यथा और भ्रष्टाचार को उजागर किया था। आरोप है कि सच को दबाने और पत्रकार को मानसिक रूप से तोड़ने के लिए 1 करोड़ रुपये का मानहानि नोटिस भेजा गया है। इसके अतिरिक्त, उन्हें “आत्महत्या के झूठे प्रकरण में फंसाने” की अप्रत्यक्ष धमकियां देकर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भयभीत करने का प्रयास किया जा रहा है।
पुलिस पर जानकारी छिपाने का आरोप : पत्रकार मिश्रा ने पुलिस प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि जब उन्होंने इस षड्यंत्र के दस्तावेज सूचना का अधिकार (RTI) के तहत मांगे, तो जानकारी देने में अनावश्यक विलंब किया गया। पुलिस अधीक्षक कार्यालय के निर्देश के बावजूद थाने स्तर से जानकारी नहीं दी गई, जिसके चलते उन्हें राज्य सूचना आयोग में अपील करनी पड़ी।
PMO से हस्तक्षेप की मांग : पत्रकार ने अपने आवेदन में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मांग की है कि एक पत्रकार के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जाए। उन्होंने बिना दोष-सिद्धि के ‘अपराधी’ कहने, शासकीय व्हाट्सएप ग्रुप का दुरुपयोग कर छवि धूमिल करने और 1 करोड़ का नोटिस भेजकर डराने-धमकाने के कृत्य के लिए श्रीमती नूतन सिदार के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता (BNS) एवं आई.टी. एक्ट की सुसंगत धाराओं में FIR दर्ज कर वैधानिक कार्यवाही करने की गुहार लगाई है।
अब देखना होगा कि ‘सुशासन’ का दावा करने वाली सरकार अपनी ही अधिकारी के इस कथित मनमाने रवैये पर क्या एक्शन लेती है।




