“हिंदी दिवस : मंचों पर महिमा, हकीकत में बेबसी – 77 साल बाद भी राजभाषा का अपमान?…”

लेख : ऋषिकेश मिश्रा (स्वतंत्र पत्रकार)
देशभर में रविवार को हिंदी दिवस बड़े धूमधाम से मनाया गया। सरकारी दफ्तरों से लेकर विश्वविद्यालयों तक कार्यक्रम आयोजित हुए। मंचों पर नेताओं और अधिकारियों ने हिंदी को आत्मा, संस्कृति और जनमानस की भाषा बताते हुए लंबे भाषण दिए। लेकिन जैसे ही समारोह समाप्त हुए, वही नेता और अफसर अंग्रेज़ी में फाइलें निपटाने और नोटिस जारी करने में जुट गए। सवाल यह है कि क्या हिंदी दिवस केवल औपचारिकता और दिखावे तक सिमटकर रह गया है?
हिंदी का ‘दिवस’, पर 364 दिन उपेक्षा : संविधान की धारा 343 के अनुसार हिंदी को 14 सितंबर 1949 को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। लेकिन आज़ादी के 77 साल बाद भी हिंदी अपनी ही मातृभूमि में उपेक्षित है।
- संसद और मंत्रालयों के अहम दस्तावेज़ अंग्रेज़ी में तैयार होते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में कार्यवाही अंग्रेज़ी में होती है, जिससे आम नागरिक न्याय की भाषा तक नहीं समझ पाता।
- UPSC सहित अधिकांश प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेज़ी का वर्चस्व कायम है।
यानी, हिंदी दिवस पर सम्मान और साल भर अपमान का सिलसिला जारी है।
नेताओं का दोहरा चेहरा : मंच से हिंदी प्रेम का ढोल पीटने वाले नेता निजी जीवन और सरकारी कामकाज में अंग्रेज़ी का रौब दिखाते हैं।
- सरकारी आदेश और नोटिस अक्सर अंग्रेज़ी में जारी होते हैं।
- अफसर हिंदी में लिखी फाइलों को देखकर असहज हो जाते हैं।
- विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में हिंदी माध्यम के छात्रों को ‘कमतर’ समझा जाता है।
देश के करोड़ों हिंदीभाषी यह सवाल पूछ रहे हैं कि जब हिंदी बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है, तो यह भाषा दोयम दर्जे की क्यों है? क्यों बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ाने पर ही आधुनिक माना जाता है? क्या भाषा की यह हीनभावना हमें हमारी जड़ों से काट नहीं रही?
विशेषज्ञों का मानना है कि हिंदी को सिर्फ सांस्कृतिक नहीं, बल्कि प्रशासनिक और न्यायिक भाषा के रूप में स्थापित करना होगा।
- न्यायपालिका में हिंदी: सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में हिंदी में फैसले और बहस हों।
- शिक्षा में समान अवसर: इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य उच्च शिक्षा में हिंदी माध्यम को बराबरी का दर्जा मिले।
- सरकारी तंत्र में प्राथमिकता: मंत्रालयों और दफ्तरों में हिंदी को प्राथमिक भाषा बनाया जाए।
- जनजागरूकता: समाज को अपने बच्चों को हिंदी से जोड़ने और इसे हीनभावना से मुक्त करने की पहल करनी होगी।
हिंदी दिवस का असली मकसद तभी पूरा होगा जब यह रस्मी कार्यक्रम न होकर भाषाई आंदोलन का रूप ले। जब हिंदी को रोजगार, शिक्षा और न्याय की वास्तविक भाषा बनाया जाएगा, तभी यह दिवस सार्थक होगा।
आज का हिंदी दिवस हमें एक बार फिर आईना दिखाता है—हिंदी केवल भाषणों और पोस्टरों की भाषा नहीं, बल्कि हमारी पहचान और आत्मसम्मान है। इसे बचाना और मजबूत करना हम सभी की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।