शिक्षक दिवस : गुरु को समर्पित लेख… (ऋषिकेश मिश्रा)

रायगढ़। हर वर्ष 5 सितम्बर को हम शिक्षक दिवस मनाते हैं। यह दिन भारत के द्वितीय राष्ट्रपति और महान दार्शनिक-शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के रूप में समर्पित है। उनका मानना था कि “शिक्षक का पद सम्मानित हो, तभी शिक्षा का वास्तविक अर्थ समाज तक पहुँच सकता है।”
आज के दिन हम न केवल अपने गुरुजनों का सम्मान करते हैं, बल्कि उस परंपरा को भी प्रणाम करते हैं, जिसने “गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः” कहकर शिक्षक को देवत्व के समान स्थान दिया।
“गुरु का उजाला”
गुरु ही पथ के दीपक हैं,
जो अंधियारा हर जाते हैं।
ज्ञान-सरिता के उस तट से,
जीवन के सागर तक ले जाते हैं।
उनके शब्द हैं अमृतधारा,
उनका स्पर्श है साधना।
उनकी डाँट भी दुलार बनकर,
ढालती है सच्ची मानवता।
कभी कठोर पत्थर-सा अनुशासन,
कभी स्नेह की छाँव निराली।
गुरु बिना अधूरी है शिक्षा,
गुरु से ही खिलती है लाली।
समाज में शिक्षक की भूमिका :
- संस्कारदाता : परिवार के बाद समाज का निर्माण सबसे अधिक शिक्षक करते हैं। वे केवल पढ़ाई ही नहीं, जीवन जीने का सही तरीका भी सिखाते हैं।
- मार्गदर्शक : अच्छे शिक्षक वह होते हैं जो छात्र को केवल पाठ्यपुस्तक नहीं, बल्कि भविष्य का रास्ता भी दिखाते हैं।
- राष्ट्र निर्माता : किसी भी राष्ट्र का भविष्य उसकी शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की सोच पर टिका होता है।
अगर गुरु न होते जीवन में,
तो पथ अंधकारमय होता।
हर सफलता, हर उपलब्धि का,
स्रोत वहीं से होता।
गुरुजन के चरणों में जो,
श्रद्धा का दीप जलाते हैं।
वही जीवन में सच्चे अर्थों में,
सफलता और शांति पाते हैं।
शिक्षक दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि यह हमें यह स्मरण कराता है कि शिक्षा का अर्थ नौकरी या डिग्री तक सीमित नहीं, बल्कि यह चरित्र निर्माण है।
इस अवसर पर हम सभी को यह प्रण लेना चाहिए कि अपने गुरुओं का सम्मान करें, उनकी सीख को अपने जीवन में उतारें और समाज में उनके बताए मूल्यों को आगे बढ़ाएँ।