शिवनाथ में डूबी एक ज़िंदगी : बैंक कर्मचारी की मौत — यह महज़ हादसा नहीं, सिस्टम की नृशंस हत्या है!…

बेमेतरा। छत्तीसगढ़ के बेमेतरा ज़िले में शनिवार की सुबह एक भयावह हादसे ने पूरे क्षेत्र को स्तब्ध कर दिया। बैंक ऑफ इंडिया में पदस्थ अमित कोल की कार सिमगा-बेमेतरा थाना सीमा के बीच शिवनाथ नदी में जा गिरी। जब तक राहत व बचाव दल घटनास्थल पर पहुंचा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। नदी से बाहर निकाली गई कार के भीतर ही अमित कोल का शव मिला — ठंडी लाश के साथ, व्यवस्था पर सुलगते सवाल!
हादसा या हत्या? अब जवाब चाहिए :
- कहाँ थीं सड़क किनारे सुरक्षा रेलिंग?
- क्यों नहीं लगाए गए चेतावनी बोर्ड या स्पीड ब्रेकर?
- क्या ये सिर्फ एक हादसा था, या हमारी सड़कों की लचर सुरक्षा व्यवस्था की एक और शिकार ज़िंदगी?
इस दर्दनाक दुर्घटना ने प्रशासनिक सुस्ती और सड़क सुरक्षा की खस्ताहाली को फिर से उजागर कर दिया है। सड़कों पर सिर्फ वाहन नहीं, ज़िंदगियाँ चलती हैं — लेकिन अफ़सोस, यह बात सिस्टम को समझ नहीं आती।
स्थानीयों की तत्परता, प्रशासन की असमर्थता : प्रत्यक्षदर्शियों ने तत्काल पुलिस को सूचना दी। पुलिस और बचाव दल सक्रिय हुआ, क्रेन से कार बाहर निकाली गई। मगर कार के साथ अमित कोल की मृत देह भी बाहर आई — यह दृश्य किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को झकझोरने के लिए पर्याप्त था।
अमित कोल जबलपुर के मूल निवासी थे और बेमेतरा में बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत थे। वे रायपुर से जबलपुर स्थित अपने घर लौट रहे थे, जब यह हादसा हुआ।
अमित कोल: एक कर्मठ कर्मचारी, अब एक सरकारी आंकड़ा – एक युवा कर्मी, जो अपना फर्ज़ निभा रहा था, आज सिर्फ़ एक ‘मृतक संख्या’ बनकर रह गया।
कोई मुआवज़े की घोषणा नहीं, कोई ज़िम्मेदारी तय नहीं, कोई अफ़सर निलंबित नहीं।
क्या इंसानी ज़िंदगी की कीमत इतनी सस्ती हो गई है?
अब मौन नहीं, प्रतिरोध चाहिए : यह हादसा केवल अमित कोल की मृत्यु नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की हार है, जो सड़क सुरक्षा जैसे मूलभूत विषयों पर चुप्पी साधे बैठी है।
शिवनाथ में डूबा एक जीवन, हम सभी से पूछ रहा है — “अब भी चुप रहोगे?”
यह समय श्रद्धांजलि देने का नहीं, जवाब मांगने का है। प्रशासन को जवाबदेह बनाना होगा, वरना अगला नंबर किसी का भी हो सकता है।