रायगढ़

रायपुर की फैक्ट्री में भीषण आग : लापरवाही की चिंगारी ने निगल ली करोड़ों की मेहनत! उद्योग जगत की “सुरक्षा” फिर सवालों के घेरे में…

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का उरला औद्योगिक क्षेत्र शनिवार सुबह उस वक्त दहशत के धुएं में लिपट गया, जब एक फैक्ट्री में भीषण आग भड़क उठी। आग ऐसी कि चंद मिनटों में लौ ने लोहा लील लिया और ज्वलनशील सामग्री से भरा गोदाम धधकता हुआ तबाही की तस्वीर बन गया।

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, फैक्ट्री के भीतर ज्वलनशील पदार्थ ऐसे बेतरतीब ढंग से रखे गए थे मानो आग का न्योता खुद ही दिया जा रहा हो। सुरक्षा मानकों का कोई नामोनिशान नहीं—जैसे नियम केवल कागज़ों की शोभा बढ़ाने के लिए हों!

दमकल विभाग की गाड़ियाँ मौके पर जरूर पहुंचीं, लेकिन तब तक आग विकराल हो चुकी थी। आग बुझाने में घंटों मशक्कत करनी पड़ी, और अब भी पूरी तरह से उस पर काबू नहीं पाया जा सका है।

सवाल ये है:

  • क्या फैक्ट्री में फायर सेफ्टी ऑडिट हुआ था?
  • ज्वलनशील सामग्री को सुरक्षित तरीके से क्यों नहीं रखा गया?
  • क्या नियमानुसार अग्निशमन यंत्र उपलब्ध थे?
  • और अगर थे, तो क्या वे चालू हालत में थे?

प्रशासन के आला अधिकारी, नगर निगम की टीम, और पुलिस बल घटनास्थल पर जरूर पहुंचे, लेकिन यह “तत्परता” हर बार आग लगने के बाद ही क्यों दिखती है? जब तक लपटें उठती नहीं, तब तक फाइलें धूल क्यों फांकती हैं?

जनहानि नहीं, पर उद्योग का जनविश्वास जला
सौभाग्य से श्रमिक समय रहते बाहर निकाल लिए गए, वरना यह हादसा किसी नरसंहार में भी बदल सकता था। लेकिन फैक्ट्री को जो नुकसान हुआ है, वह केवल संपत्ति तक सीमित नहीं—यह उस भरोसे का अंत है जो मजदूर, उद्योग और व्यवस्था के बीच कभी मौजूद था।

प्रारंभिक जांच में शॉर्ट सर्किट को आग का कारण बताया गया है—एक घिसा-पिटा बहाना जो हर हादसे के बाद रटा जाता है। मगर असलियत है कि ये आग शॉर्ट सर्किट से नहीं, शॉर्ट विजन और लॉन्ग लापरवाही से लगी है।

आखिर कब चेतेंगे हम?
हर हादसे के बाद प्रशासन आश्वासन देता है, “सख्त कदम उठाए जाएंगे”, “जांच की जाएगी”, “दोषी नहीं बचेंगे”… लेकिन अगली आग फिर वहीं से भड़कती है जहां पिछली बुझी थी।

उद्योग चलाइए, मुनाफा कमाइए—but मजदूरों की जान की कीमत पर नहीं। नियमों को धता बताकर बनाई गई फैक्ट्रियाँ तबाही के कारखाने हैं, जो किसी भी दिन धधक उठती हैं और फिर शासन सिर्फ राख के ढेर पर बयान देता रह जाता है।

अब वक्त है, लापरवाही के खिलाफ एक नई फायर सेफ्टी क्रांति की।
वरना अगली बार लपटों में सिर्फ फैक्ट्री नहीं जलेगी—हमारा भरोसा भी राख हो जाएगा।

Ambika Sao

( सह-संपादक : छत्तीसगढ़)

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