रायगढ़

गमेकेला में हाथी का खूनी तांडव ! दो महिलाओं की कुचलकर हत्या, एक गंभीर ; वन विभाग की लापरवाही से आदिवासी गांव फिर शोकग्रस्त…

रायगढ़। क्या आदिवासियों के प्राणों की कोई कीमत नहीं है? क्या रायगढ़ प्रशासन तब तक मौन रहेगा जब तक हर गांव श्मशान न बन जाए? बीती रात धरमजयगढ़ वनमंडल के लैलूंगा रेंज अंतर्गत गमेकेला गांव में जो कुछ घटित हुआ, वह केवल एक प्राकृतिक दुर्घटना नहीं, बल्कि सरकारी निष्क्रियता से घटित मानवीय त्रासदी है। एक जंगली हाथी गांव में घुसा और दो महिलाओं को निर्ममता से कुचलकर मार डाला। एक पुरुष गंभीर रूप से घायल है। परंतु वन विभाग की प्रतिक्रिया वही पुरानी—”घटना के बाद उपस्थिति, और आश्वासन की घिसी-पिटी पंक्तियाँ।”

पहला हमला : नींद में सो रही महिला को कुचलकर मार डाला – रात्रि लगभग 11:30 बजे, सुनीला लोहरा नामक महिला अपने घर के बाहर सो रही थी, जब अचानक एक जंगली हाथी ने उस पर हमला कर दिया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमले के दौरान हाथी ने महिला को पैरों से रौंद दिया। परिजन उसे अस्पताल ले गए, परंतु डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

दूसरा हमला : मोहल्ला बदलते ही फिर से हमला, महिला की मृत्यु, पति गंभीर – पहली घटना के कुछ ही समय बाद हाथी गांव के दूसरे मोहल्ले की ओर बढ़ा, जहां सुशीला यादव (30) और उनके पति घसियाराम यादव बाहर सो रहे थे। हाथी ने एक बार फिर हमला किया। सुशीला की मौके पर ही मृत्यु हो गई, जबकि घसियाराम गम्भीर रूप से घायल हैं और अस्पताल में उपचाराधीन हैं।

गांव में शोक और भय : लगातार दो मौतों के बाद गमेकेला गांव में मातम और भय का माहौल व्याप्त है। लोग घरों से बाहर निकलने में डर रहे हैं। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों में विशेष रूप से भय व्याप्त है। ग्रामीणों का कहना है कि हाथियों की गतिविधियों की जानकारी पहले से वन विभाग को थी, परंतु न तो अलर्ट जारी किया गया, न ही कोई सुरक्षा उपाय किए गए। यह लापरवाही अब जानलेवा साबित हो रही है।

वन विभाग की प्रतीकात्मक उपस्थिति, जवाबदेही नदारद : घटना की सूचना मिलते ही लैलूंगा रेंज के वन अमले ने गांव का दौरा किया, पीड़ित परिवारों को सांत्वना दी और मुआवजा देने की प्रक्रिया शीघ्र आरंभ करने का आश्वासन दिया। किंतु ग्रामीणों ने स्पष्ट रूप से आरोप लगाया कि वन विभाग को पहले से हाथियों की आवाजाही की जानकारी थी, फिर भी कोई अग्रिम चेतावनी जारी नहीं की गई।

धरमजयगढ़-लैलूंगा क्षेत्र बना मौत का गलियारा : यह कोई पहली घटना नहीं है। धरमजयगढ़ और लैलूंगा रेंज में हाथियों के हमलों से विगत वर्षों में अनेक जानें जा चुकी हैं। बावजूद इसके, न तो सोलर फेंसिंग की व्यवस्था की गई, न निगरानी हेतु ड्रोन या गश्ती दल तैनात किए गए। यह आपराधिक स्तर की लापरवाही नहीं तो और क्या है?

सरकार और प्रशासन से सीधे सवाल : 

  • कब बनेगा स्थायी वन्यजीव निगरानी तंत्र?
  • कब तक आदिवासी बस्तियां यूं ही असुरक्षित रहेंगी?
  • कब लगेगा चेतावनी अलार्म सिस्टम और रात्रिकालीन गश्ती दल?
  • क्या आदिवासी नागरिक केवल मुआवजा पाने के लिए जीवित हैं?

गमेकेला के ग्रामीणों ने स्पष्ट संकेत दिया है—यदि शासन-प्रशासन और वन विभाग अब भी नहीं जागे, तो गांववासी स्वयं सुरक्षा घेरा बनाएंगे, चौकसी दल गठित करेंगे और आवश्यकता पड़ने पर आंदोलनात्मक रास्ता अपनाएंगे। यह केवल वन्यजीव संघर्ष नहीं, अब अस्तित्व और सम्मान की लड़ाई बन चुकी है।

Ambika Sao

( सह-संपादक : छत्तीसगढ़)

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