“पेड़ नहीं, परंपरा कट रही है! कोयले की भूख में जल रहा आदिवासियों का वजूद – गारे पेलमा सेक्टर-2 बना मौत का ब्लॉक?…”

रायगढ़। छत्तीसगढ़ की धरती पर कॉरपोरेट कब्जे का नया नाम है गारे पाल्मा सेक्टर-2 कोल ब्लॉक, जहां अडानी इंटरप्राइजेस अब पेड़ नहीं, लोकतंत्र, जनजीवन और जनजमीर काट रहा है! हजारों साल पुराना जंगल, सैकड़ों साल पुरानी संस्कृति और संविधान द्वारा दिए गए अधिकार — सब कुछ सरकारी संरक्षण में चंद उद्योगपतियों के हवाले किया जा रहा है।
पेड़ की टहनी नहीं, आदिवासियों की रीढ़ तोड़ी जा रही है : ग्राम मुड़ागांव में जब ग्रामीणों ने पेड़ों की कटाई का विरोध किया, तो उन्हें जेल में ठूंसा गया।
विधायक विद्यावती सिदार जैसी जनप्रतिनिधि को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। यह सामान्य प्रशासन नहीं, कॉरपोरेट सेना है, जो अडानी के लिए बर्बर अभियान चला रही है।
- क्या अब जंगल बचाना जुर्म है?
- क्या विधायक की आवाज भी अवैध हो गई?
- क्या ताकतवर का कोयला, कमजोर की कब्र बन चुका है?
पेड़ कट रहे हैं, और साथ में कट रही है संविधान की आत्मा :
- 1500 हरे पेड़ों की बलि, बरसात के मौसम में जब पौधे लगाए जाते हैं।
- बिना ग्रामसभा, बिना पंचायत अनुमति, बिना नोटिस एकदम तानाशाही आदेश!
- 50 से ज्यादा ग्रामीण गिरफ्तार, जैसे वे कोई अपराधी हों, सिर्फ अपनी जमीन की रक्षा कर रहे थे।
दीपक बैज (पीसीसी अध्यक्ष) का बयान अब चेतावनी बन चुका है :-
“जल-जंगल-जमीन बंदूक की नोक पर अडानी को सौंपा जा रहा है। यह लड़ाई अब सड़क से विधानसभा तक जाएगी। यह सिर्फ जंगल नहीं, जनसंहार की भूमिका है।”
एनजीटी का फैसला कूड़ेदान में, अडानी के लिए सब माफ :जनवरी 2024 में एनजीटी ने पर्यावरणीय मंजूरी रद्द की थी। कहा गया –
“जनसुनवाई में धांधली, झूठ और पक्षपात। आदिवासी जनता को बोलने तक नहीं दिया गया।”
लेकिन 13 अगस्त 2024 को केंद्र सरकार ने अडानी के लिए मंजूरी बहाल कर दी। यह साफ संकेत है –
“जो जनता बोले वो राष्ट्रद्रोही, जो पूंजीपति बोले वो राष्ट्रभक्त!”
गारे पेलमा सेक्टर : कोयला नहीं, आदिवासी लाशों का ब्लास्ट फर्नेस :-
- 1059.29 मिलियन टन कोयला, और उसके नीचे दबी है – 14 गांवों की सांसें।
- 2583.487 हेक्टेयर खदान, जिसमें 214.869 हेक्टेयर जंगल
- 23.6 मिलियन टन/वर्ष का कोयला उत्पादन
यह खदान नहीं, आदिवासियों के अस्तित्व पर गिरती काल की छाया है।
अडानी की दलाली में, भाजपा सरकार का खुला समर्थन! यूंका नेता अब्राहम टोप्पो फट पड़े –
“ये सरकार अब आदिवासी नहीं, अडानी की है! विधायक को गिरफ्तार कर लोकतंत्र का गला घोंटा गया है। जंगलों की यह कटाई नहीं रुकी, तो हर ग्राम पंचायत आंदोलन का रणक्षेत्र बनेगा।”
यह आवाज अब रुकेगी नहीं – जल, जंगल, जमीन के लिए जंग तय है :
“हम पेड़ हैं – जड़ से उखाड़ दोगे तो भी बीज बनकर उगेंगे।
हम आदिवासी हैं – डराओगे तो बगावत करेंगे!”