“सरपंच को डराओ, धमकाओ, और चुप करा दो – क्या यही है छत्तीसगढ़ का ‘नया विकास’?”…

रायगढ़। जिले के धरमजयगढ़ विकासखंड के भालूपखना गांव में निर्माणाधीन धनवादा जलविद्युत परियोजना से जुड़े विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया है। जनप्रतिनिधियों पर दबाव बनाने और डराने-धमकाने की घटनाएं अब खुलकर सामने आने लगी हैं। इसी कड़ी में जनपद पंचायत की नव निर्वाचित अध्यक्ष लीनव राठिया खुद भालूपखना पहुंचीं और सरपंच पति से मुलाकात कर वस्तुस्थिति की जानकारी ली।
क्या है पूरा मामला : 3 अप्रैल 2025 को चिड़ोडीह पंचायत के सरपंच पति ने नायब तहसीलदार उज्ज्वल पाण्डेय के खिलाफ रैरूमाखुर्द पुलिस चौकी में शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप था कि नायब तहसीलदार ने गाली-गलौच करते हुए उन्हें सरपंच पद से हटाने की धमकी दी। मामला गर्म होते ही परियोजना से जुड़ी कंपनी धनवादा ने भी धरमजयगढ़ थाने में एक युवक और सरपंच पति के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की मांग कर दी।
“रात भर सो नहीं पाया…” जनपद अध्यक्ष से बातचीत में सरपंच पति ने दर्द बयां किया – “मैं बहुत तनाव में था, रात भर नींद नहीं आई। तहसीलदार की धमकी के बाद हर ओर से फोन आने लगे – केस वापस ले लो, मामला खत्म कर दो। सरपंच संघ अध्यक्ष से लेकर सीईओ और एसडीएम तक सबने यही कहा। आखिर मैं क्या करता? आवेदन वापस लेना पड़ा।”
सरपंच संघ की चुप्पी सवालों के घेरे में : सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जनप्रतिनिधि को धमकी मिलने के बावजूद सरपंच संघ ने उसका साथ देने के बजाय मामले को “निपटाने” की सलाह दी। सवाल उठता है – जब एक सरपंच ग्रामीणों के हित में खड़ा होता है, और उसका यही साहस उसके खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है, तब सरपंच संघ की भूमिका क्या सिर्फ दिखावटी है?
ग्रामीणों की आवाज को कुचलने की साजिश? : भालूपखना में जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की पोल खोलता है जो कंपनियों के हित में जनप्रतिनिधियों को भी बलि का बकरा बना रही है। यहां जो जनप्रतिनिधि ग्रामीणों के पक्ष में खड़ा होता है, उसे डराकर, धमकाकर चुप कराना अब आम बात बन गई है।
जनता पूछ रही है – क्या यही लोकतंत्र है? : धरमजयगढ़ की जनता सवाल कर रही है – अगर चुने हुए प्रतिनिधियों को ही इस तरह डराया जाएगा, तो वे जनता की आवाज कैसे बन पाएंगे? और अगर जनप्रतिनिधि ही डर गए, तो ग्रामीणों की लड़ाई कौन लड़ेगा?