रायगढ़

“लैलूंगा के जंगल में पुलिस की दहाड़ : तस्करों की टोली धराशायी, 44 मवेशियों को मौत की कतार से खींच लाई वर्दी की वीरता…”

रायगढ़। तारीख दर्ज की जानी चाहिए 4 मई 2025, जब जंगलों में चल रही मूक हत्या यात्रा को लैलूंगा पुलिस ने अपने साहसिक अभियान से तोड़ डाला। वर्दी की लाठी नहीं, यह तो पशुधन की पीड़ा की पुकार थी, जिसने 44 बेजुबान जानवरों को बूचड़खाने की ओर ले जा रहे दो हैवानों के इरादों को मटियामेट कर दिया।

कत्ल से पहले क़ैद, क़ैद से पहले कराह – यही थी तस्करी की कहानी : जंगल के रास्ते हो रही यह तस्करी कोई मामूली अपराध नहीं, यह एक संगठित बर्बरता थी। भूखे-प्यासे, खाल तक सूखी, आंखों में दहशत और पीठ पर लाठियों की चोट – ऐसे मवेशी जिनका हर कदम मौत के मुंह की ओर था। लेकिन पुलिस ने वक़्त रहते शिकारियों को शिकार बना दिया।

मिशन लीड किया इन जांबाज़ों ने : 

  • एसपी दिव्यांग पटेल – जिन्होंने न सिर्फ कार्रवाई के आदेश दिए, बल्कि संदेश दिया: कानून बेजुबानों की भी सुनता है।
  • एसडीओपी सिद्धांत तिवारी – जिनकी रणनीति ने जंगल की सन्नाटी रात को गूंजते न्याय में बदला।
  • उप निरीक्षक इगेश्वर यादव – जिनकी टीम ने पत्तों की आहट में भी अपराध सूंघ लिया।

तस्कर बोले – “हां, हम ले जा रहे थे बूचड़खाने”

गिरफ्त में आए –
दिनेश राम सिदार (42) और ओमप्रकाश सिदार (20)
(निवासी – सिंगीबहार, थाना तपकरा, जशपुर)
ना कागज़, ना परमिशन। केवल लालच की आग और हिंसा की लाठी।

कृषि की रीढ़ को बचाया गया -अनुमानित कीमत ₹4.40 लाख : यह मात्र मवेशी नहीं, किसानों की पूंजी, गांवों की जीवनरेखा, संविधान की आत्मा थे। इन 44 मवेशियों को बचाकर पुलिस ने खेतों की शान और भारतीय कृषि परंपरा की रक्षा की है।

कानूनी वार, करारा प्रहार : 

  • अपराध क्रमांक 116/2025
  • धाराएं 6, 10, 11, 12 – छत्तीसगढ़ कृषिक पशु परिरक्षण अधिनियम 2004
  • आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेजा गया

“अगर बेजुबानों पर वार होगा, तो पुलिस का प्रतिकार होगा”

यह संदेश अब हर तस्कर के दिमाग में गूंजेगा। जंगल, बॉर्डर, अंधेरा अब कोई परदा नहीं बचा जो अपराध को छुपा सके। लैलूंगा अब सिर्फ थाना नहीं तस्करों के लिए भय का नाम बन चुका है।

यह रिपोर्ट उन सभी के लिए भी चेतावनी है :

जो मवेशियों को केवल मुनाफे की चीज़ समझते हैं,
जो किसानों की पूंजी पर लाठी चलाते हैं,
जो खेतों की आत्मा को कत्लखाने तक हांकते हैं –
अरसे बाद अब वर्दी जाग गई है… और जब वर्दी जागती है, तो तस्करी की हर साँस थम जाती है।

Ambika Sao

( सह-संपादक : छत्तीसगढ़)

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