रायगढ़ : तमनार में ट्रेलर की टक्कर से युवक की मौत, सड़क पर बिछी लाश और सवालों से घिरी शासन की चुप्पी…

रायगढ़। औद्योगिक विकास की चमक के पीछे लहूलुहान होती ज़िंदगियां अब सिर्फ आँकड़े नहीं रहीं। तमनार थाना क्षेत्र के बुड़िया गांव के निवासी जेल सिंह सिदार की मौत एक बार फिर यही कड़वा सच सामने ला रही है। शुक्रवार रात क़रीब 9 बजे, दशकर्म से लौट रहे जेल सिंह की बाइक को एक तेज़ रफ्तार ट्रेलर ने कुचल दिया। टक्कर इतनी भयानक थी कि उन्होंने मौके पर ही तड़पते हुए दम तोड़ दिया।
रोष की ज्वाला: शव के साथ चक्काजाम, प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी – हादसे के बाद गांव वालों का गुस्सा फूट पड़ा। परिजनों और ग्रामीणों ने शव को सड़क पर रखकर चक्काजाम कर दिया। देखते ही देखते प्रगति से जलते इस क्षेत्र में उबाल सा आ गया। लोगों ने औद्योगिक वाहनों की मनमानी और प्रशासन की लापरवाही के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। लोगों का कहना था, “यह कोई पहली मौत नहीं है, पर हर बार प्रशासन सो जाता है और अगली लाश का इंतज़ार करता है।”
विधायक, जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में भी ‘आश्वासन’ का वही घिसा-पिटा ढोल : घटना स्थल पर पहुंची लैलूंगा विधायक विद्यावती सिदार ने पीड़ित परिवार को मुआवजा दिलाने और ट्रैफिक नियंत्रण के लिए प्रशासन से बातचीत की। जनपद सदस्य रमेश बेहरा ने भी मौके पर पहुंचकर शासन से त्वरित न्याय और मुआवजे की मांग की। लेकिन लोगों का सवाल है—“क्या नेताओं की संवेदनाएं सिर्फ लाश देखने के बाद ही जागती हैं?”
तमनार बना मौत का गलियारा : कौन ज़िम्मेदार : तमनार क्षेत्र में कोयला, बिजली और खनन परियोजनाओं की वजह से हज़ारों भारी वाहन हर दिन सड़कों पर दौड़ते हैं। लेकिन इन सड़कों पर न तो स्पीड ब्रेकर हैं, न सिग्नल, और न ही कोई ठोस ट्रैफिक प्रबंधन। क्या ये क्षेत्र औद्योगिक नक्शों में चमकता रहेगा और आम आदमी सड़क पर यूँ ही दम तोड़ता रहेगा?
ग्रामीणों की मांगें: अब नहीं चाहिए आश्वासन, चाहिए कार्रवाई –
- सड़क सुरक्षा की गारंटी: हर संवेदनशील स्थान पर स्पीड ब्रेकर और ट्रैफिक सिग्नल की व्यवस्था की जाए।
- मुआवजा और पुनर्वास: मृतक के परिवार को तत्काल समुचित मुआवजा और सहायता प्रदान की जाए।
- दोषियों पर सख़्त कार्रवाई: ट्रेलर चालक और वाहन स्वामी के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का मामला चले।
- औद्योगिक वाहनों पर नियंत्रण: इनकी आवाजाही के लिए निश्चित समय और मार्ग निर्धारित किया जाए।
शासन की खामोशी = जनआक्रोश का न्योता : अब तक न तो किसी उच्च अधिकारी ने घटनास्थल का दौरा किया, न ही कोई ठोस कार्रवाई सामने आई है। क्या प्रशासन तब जागेगा जब और लाशें गिरेंगी? जनता की पीड़ा को बार-बार अनसुना करने की इस रवैये ने अब असंतोष को विद्रोह में बदलना शुरू कर दिया है।
विकास या विनाश : विकास की आँधी में अगर लोगों की जान उड़ रही है, तो इसे विकास नहीं, ‘विनाश’ कहा जाएगा।
प्रशासन और कंपनियों को समझना होगा कि सड़कें सिर्फ माल ढुलाई के लिए नहीं, इंसानों की ज़िंदगी के लिए भी होती हैं।