दुर्ग : जिला अस्पताल की लापरवाही से बदले नवजात, DNA टेस्ट के बाद असली माता-पिता को मिले बच्चे…

दुर्ग। जिला अस्पताल में नवजात शिशुओं की अदला-बदली की गुत्थी आखिरकार डीएनए टेस्ट के जरिए सुलझ गई। अस्पताल की लापरवाही के कारण एक हिंदू परिवार के नवजात को मुस्लिम परिवार के पास भेज दिया गया, जबकि मुस्लिम परिवार का बच्चा हिंदू परिवार को सौंप दिया गया था। शबाना कुरैशी की सतर्कता और प्रशासन की सक्रियता के चलते आठ दिनों बाद असली माता-पिता को उनके बच्चे मिल सके।
कैसे हुआ खुलासा? 23 जनवरी को शबाना कुरैशी (पति – अल्ताफ कुरैशी) और साधना सिंह ने जिला अस्पताल में कुछ मिनटों के अंतराल पर अपने-अपने बेटों को जन्म दिया। अस्पताल में नवजातों की पहचान के लिए उनके हाथ में मां के नाम का टैग लगाया गया था और तस्वीरें भी खींची गई थीं।
शबाना और उनके परिवार को तब शक हुआ जब उन्होंने ऑपरेशन के तुरंत बाद ली गई तस्वीरों को देखा। उन्होंने पाया कि जिस बच्चे को वे लेकर आए हैं, उसके चेहरे पर तिल का निशान है, जबकि उनकी डिलीवरी के समय जो बच्चा था, उसके चेहरे पर कोई तिल नहीं था। शक गहराने पर उन्होंने अस्पताल प्रशासन से शिकायत की और मामले की जांच की मांग की।
डीएनए टेस्ट से सुलझी गुत्थी : शबाना ने अपने संदेह के आधार पर बच्चे को जिला अस्पताल में ही डॉक्टरों को सौंप दिया और जब तक मामला सुलझ नहीं गया, तब तक अस्पताल में ही भर्ती रहीं। कलेक्टर ऋचा प्रकाश चौधरी के निर्देश पर एक विशेष टीम का गठन किया गया, जिसने डीएनए टेस्ट की प्रक्रिया पूरी की। रिपोर्ट आने के बाद पुष्टि हुई कि शबाना के पास साधना का बच्चा था और साधना के पास शबाना का बच्चा था।
माता-पिता को सौंपे गए नवजात : डीएनए रिपोर्ट आते ही बाल कल्याण समिति ने बच्चों को उनके वास्तविक माता-पिता को सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दी। देर शाम दोनों माताओं को उनके असली बच्चे सौंप दिए गए। बच्चों को गोद में लेकर दोनों परिवारों की आंखें नम हो गईं।
अस्पताल प्रशासन पर उठे सवाल : इस घटना ने जिला अस्पताल की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि, डीएनए टेस्ट के जरिए मामला सुलझा लिया गया, लेकिन नवजात शिशुओं की सुरक्षा और पहचान के लिए अस्पतालों को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। इस तरह की लापरवाही भविष्य में किसी भी परिवार के लिए भावनात्मक आघात का कारण बन सकती है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या अस्पताल प्रशासन इस लापरवाही की जिम्मेदारी लेगा? क्या भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे?
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