बिलासपुर : न्याय करते समय निष्पक्षता और पारदर्शिता आवश्यक – चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा

बिलासपुर | बदलते समय में न्यायपालिका की भूमिका और तकनीकी के महत्व को ध्यान में रखते हुए बिलासपुर के न्यू सर्किट हाउस सभागार में संभागीय डिविजनल सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार में बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा, मुंगेली और जांजगीर-चांपा जिले के 107 न्यायाधीशों ने भाग लिया। सेमिनार का उद्घाटन छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने दीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर न्यायमूर्ति रजनी दुबे, न्यायमूर्ति रविंद्र अग्रवाल और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की गरिमामयी उपस्थिति रही।
न्यायपालिका में तकनीकी और पारदर्शिता की आवश्यकता : मुख्य न्यायाधिपति रमेश सिन्हा ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि “न्याय केवल किया ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि न्याय होते हुए भी दिखना चाहिए।” उन्होंने कहा कि आधुनिक न्याय प्रणाली में फॉरेंसिक विज्ञान और डिजिटल साक्ष्यों की भूमिका लगातार बढ़ रही है, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। न्यायिक प्रक्रिया में डिजिटल और वैज्ञानिक साक्ष्यों का प्रयोग निर्णयों को अधिक सटीक और निष्पक्ष बनाने में मदद कर सकता है।
उन्होंने कहा कि फॉरेंसिक विज्ञान परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की हमारी समझ को पूरी तरह से बदल रहा है और यह अत्यंत सटीक विधि के रूप में उभर रहा है। ऐसे में, न्यायाधीशों के लिए इसका सावधानीपूर्वक उपयोग और उचित ज्ञान आवश्यक है। इसी प्रकार, डिजिटल साक्ष्यों की जटिलताओं को समझना भी जरूरी है ताकि इनका न्यायोचित और निष्पक्ष विश्लेषण किया जा सके।
न्यायाधीश की पहचान उसके निर्णयों की सटीकता से होती है : न्यायाधीशों की भूमिका पर चर्चा करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा, “एक न्यायाधीश केवल अपने वस्त्र या बाहरी आवरण से परिभाषित नहीं होता, बल्कि उसकी गहन बुद्धिमत्ता और निर्णय की सटीकता ही उसकी वास्तविक पहचान होती है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायाधीशों को अपने ज्ञान और क्षमता को निरंतर परिष्कृत करने की आवश्यकता है।
न्यायिक प्रक्रिया में संसाधनों का बेहतर उपयोग आवश्यक : मुख्य न्यायाधिपति सिन्हा ने कहा कि छत्तीसगढ़ में न्यायिक अधिकारियों को आधुनिक तकनीकी संसाधनों से सुसज्जित किया जा रहा है। न्यायपालिका को मजबूत बनाने के लिए न्यायाधीशों को आधुनिक लीगल डेटा बेस, आईपैड और लैपटॉप जैसी सुविधाएं प्रदान की गई हैं। उन्होंने न्यायिक अधिकारियों से इन संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने और लंबित मामलों के निपटारे में तेजी लाने की अपील की।
उन्होंने यह भी कहा कि न्यायपालिका को आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। इसके लिए न्यायाधीशों को निरंतर सीखते रहना होगा और नई तकनीकों को अपनाना होगा।
न्यायमूर्ति रजनी दुबे का संबोधन: “निरंतर सीखना आवश्यक”
बिलासपुर जिले की पोर्टफोलियो न्यायाधीश एवं कमेटी टू मॉनिटरिंग द फंक्शनिंग ऑफ सीएसजेए की अध्यक्ष न्यायमूर्ति रजनी दुबे ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि न्यायिक अधिकारियों को हमेशा अपने ज्ञान को परिष्कृत और अद्यतन करते रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इस सेमिनार में परिसीमा विधि, डीएनए फॉरेंसिक साइंस, डिजिटल साक्ष्य, सुपुर्दनामा विधि और विनिर्दिष्ट अनुपालन अधिनियम जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल किए गए हैं। इससे न्यायाधीशों को आधुनिक विधिक अवधारणाओं की गहरी समझ विकसित करने का अवसर मिलेगा।
सेमिनार में हुई विशेषज्ञों की प्रस्तुति : सेमिनार के दौरान प्रधान जिला न्यायाधीश सिराजुद्दीन कुरैशी ने स्वागत भाषण दिया, जबकि परिचयात्मक उद्बोधन संतोष कुमार आदित्य (डायरेक्टर, छत्तीसगढ़ ज्यूडिशियल एकेडमी) ने दिया।
कार्यक्रम में न्यायाधीशों द्वारा डीएनए फॉरेंसिक साइंस, डिजिटल एविडेंस, विनिर्दिष्ट अनुपालन अधिनियम, लिमिटेशन एक्ट और सुपुर्दनामा विधि पर विस्तृत प्रस्तुति दी गई। विशेषज्ञों ने इन विषयों पर गहन चर्चा की और न्यायाधीशों को इन विषयों की बारीकियों से अवगत कराया।
न्यायिक प्रणाली को और अधिक मजबूत बनाने पर जोर : इस संभागीय सेमिनार में भाग लेने वाले 107 न्यायाधीशों ने कानूनी प्रक्रियाओं में तकनीकी नवाचारों को अपनाने की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की।
मुख्य न्यायाधिपति रमेश सिन्हा के इस संदेश के साथ सेमिनार का समापन हुआ कि “हमें न्यायपालिका को और अधिक सशक्त बनाना होगा, ताकि समाज को त्वरित और निष्पक्ष न्याय मिल सके।” इस आयोजन ने न्यायाधीशों को नई विधिक चुनौतियों और आधुनिक तकनीकी नवाचारों के प्रति जागरूक किया, जिससे न्याय प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने में सहायता मिलेगी।